प्रार्थना ‘आत्माका भोजन’
प्रार्थना-सभाके बाद एक वकीलने महात्मा गाँधीसे ‘आप प्रार्थनामें जितना समय व्यतीत करते हैं, पूछा, अगर उतना ही समय देश सेवामें लगाया होता, तो अभीतक कितनी सेवा हो जाती ?”
गाँधीजी गम्भीर हो गये और बोले- ‘वकील साहब, आप भोजन करनेमें जितना समय बर्बाद करते हैं, अगर वही समय कामकाजमें लगाया होता तो अभीतक आपने अनेक अतिरिक्त मुकदमोंकी तैयारी कर ली होती।’
वकील चकित होकर बोला, ‘महात्माजी ! अगर भोजन नहीं करूँगा तो मुकदमोंकी तैयारी कैसे करूँगा ?’ तब महात्मा गाँधी बोले, ‘जैसे आप भोजनके बिना मुकदमेकी तैयारी नहीं कर सकते, वैसे ही मैं बिना प्रार्थनाके देशकी सेवा नहीं कर सकता। प्रार्थना मेरी आत्माका भोजन है। इससे मेरी आत्माको शक्ति मिलती है, जिससे कि मैं देशकी सेवा कर सकूँ।’
चीज जितनी सूक्ष्म होती जाती है, उसकी दृश्यता घटती जाती है, किंतु प्रभाव बढ़ता जाता है, ठीक इसी प्रकार प्रार्थनाके सूक्ष्म प्रभावकी दृश्यता कम, किंतु प्रभाव अत्यधिक होता है।
Prayer ‘Soul Food’
After the prayer meeting, a lawyer asked Mahatma Gandhi, “The amount of time you spend in prayer, if you had spent the same amount of time in service to the country, how much service would have been done by now?”
Gandhiji became serious and said- ‘Lawyer, if you had spent the same time in work as you waste in eating, you would have prepared many additional cases by now.’
The lawyer was surprised and said, ‘Mahatmaji! If I don’t eat, how will I prepare for the cases?’ Then Mahatma Gandhi said, ‘Just as you cannot prepare for a trial without food, similarly I cannot serve the country without prayer. Prayer is the food of my soul. This gives strength to my soul, so that I can serve the country.’
As a thing becomes subtle, its visibility decreases, but its effect increases, in the same way, the subtle effect of prayer is less visible, but its effect is greater.