संत खैयास अपने शिष्यके साथ वनमें जा रहे थे। नमाजका समय हुआ और झरनेके पानीसे ‘वजू’ करके दोनोंने चद्दर बिछायी, नमाज पढ़ने खड़े हुए। इतनेमें पास ही कहींसे सिंहने गर्जना की। शिष्यके तो प्राण सूख गये। वह भागकर पासके वृक्षपर चढ़ गया और वहाँ भी थर-थर काँप रहा था।
सिंह आया और चला गया। खैयासकी ओर उसने देखातक नहीं और खैयासको ही कहाँ फुरसत थी कि सिंहकी ओर देखते। वे नमाज पढ़ रहे थे, चुपचापनमाज पढ़ते रहे। सिंहके चले जानेपर शिष्य भी पेड़से उतरा और उसने भी नमाज पढ़ी।
नमाज पूरी हुई। दोनोंने चद्दर उठायी और रास्ता पकड़ा। अचानक एक मच्छरने खैयासकी नाकपर बैठकर काटा। खैयास चीख उठे। शिष्य बोला- ‘सिंह पाससे चला गया, तब तो आपने उसकी ओर देखातक नहीं और अब नन्हे से मच्छरके काटनेसे चीख रहे हैं ?’ खैयास बोले- ‘ भाई ! उस समय मैं खुदाके साथ था और इस समय मनुष्यके (तेरे) साथ हूँ।’ –सु0 सिं0
Saint Khaiyas was going to the forest with his disciple. It was time for Namaz and after doing ‘Wuju’ with the water of the spring, both of them spread the sheet, stood up to offer Namaz. Meanwhile, a lion roared from somewhere nearby. The life of the disciple dried up. He ran and climbed a nearby tree and was trembling there too.
The lion came and went. He didn’t even look at Khaiyas and Khaiyas had no time to look at the lion. They were offering Namaz, silently kept on offering Namaz. When the lion left, the disciple also got down from the tree and he too offered Namaz.
Prayer is over. Both of them picked up the sheet and started on their way. Suddenly a mosquito bit Khayas sitting on his nose. Khayas screamed. The disciple said – ‘The lion passed by, then you didn’t even look at it and now the little one is screaming because of mosquito bites?’ Khayas said – ‘Brother! At that time I was with God and at this time I am with man (you).’ – Su 0 Sin 0