बीमारीमें भी भगवत्कृपा
बंगालके प्रसिद्ध नेता और धर्मप्राण श्रीअश्विनी कुमारदत्तके गुरुका नाम राजनारायण बसु था। ये बड़े भगवद्विश्वासी भक्त थे। जीवनके अन्तिम दिनोंमें इनको लकवा मार गया था और ये राजगृहमें रहते थे। अश्विनीकुमारजी इनके दर्शनार्थ गये और गुरुकी बीमारीके कारण गम्भीर तथा उदास मुखसे वे कमरे में घुसे। उनको प्रणाम करते देख राजनारायणजी बड़े प्रसन्न हुए और बोले ‘भैया अश्विनी! अरे, तुम बहुत दिनोंपर आये हो! आओ, आओ’ कहकर उन्होंने एक ही हाथसे उनका आलिंगन किया। दूसरे हाथमें तो लकवा मारा था।
तदनन्तर राजनारायणजी महात्माओंकी वाणी, गीता तथा उपनिषदोंके मन्त्र सुनाने लगे। दुःखका कहीं नाम – निशान भी नहीं था। बड़ा आनन्द छाया था। यों पूरा एक पहर बीत गया। समयका पता ही नहीं लगा। तदनन्तर अश्विनीबाबूने विदा माँगते हुए कहा ‘आपका स्वास्थ्य खराब सुनकर मैं मिलने आया था। मेरे मनमें बड़ी उदासी छायी थी, परंतु यहाँ तो मैंने दूसरा ही रंग देखा। कहीं दुःख मानो है ही नहीं। आप तीन महीनेसे बिछौनेपर पड़े हैं, क्या आपको कुछ भी दुःखका अनुभव नहीं होता ?’ अश्विनीबाबूकी बात सुनकर राजनारायणजीने हँसते हुए कहा- ‘भैया अश्विनी! देखो, मैं बूढ़ा हो गया। भगवान्की कृपासे अबतक कितने सुन्दर-सुन्दर दृश्य देखे, कितने सुन्दर सुख-आराम भोगे, अब उन्हींकी कृपासे मुझे कुछ दिन रोगशय्यापर सोनेमें क्या प्रसन्न नहीं होना चाहिये ? भगवत्कृपा किसी रूपमें आये सभी स्वरूप हैं तो उसीके न!’
God’s grace even in illness
Rajnarayan Basu was the famous leader of Bengal and the guru of pious Shri Ashwini Kumardatta. He was a great devotee of God. In the last days of his life, he was paralyzed and he lived in Rajgriha. Ashwini Kumarji went to see him and due to Guru’s illness, he entered the room with a serious and sad face. Seeing him bowing down, Rajnarayanji was very pleased and said, ‘Brother Ashwini! Hey, you have come for a long time! Saying ‘come, come’, he embraced him with only one hand. The other hand was paralyzed.
Thereafter, Rajnarayanji started reciting the words of Mahatmas, mantras of Gita and Upanishads. There was no name or trace of sorrow anywhere. There was great joy. A full hour passed like this. Didn’t even know the time. After that Ashwini Babu said goodbye saying, ‘ I had come to meet you after hearing about your ill health. There was a lot of sadness in my mind, but here I saw a different color. It is as if there is no sorrow at all. You have been lying on the bed for three months, don’t you feel any sorrow?’ After listening to Ashwinibabu, Rajnarayan ji said laughingly – ‘Brother Ashwini! Look, I’m old. By God’s grace, I have seen so many beautiful scenes, enjoyed so many beautiful comforts, now by His grace, should I not be happy to sleep on the sick bed for a few days? If God’s grace came in some form, then all the forms are of him, aren’t they!’