बोधकथापरक नीति-साहित्य (डॉ0 श्रीसूर्यमणिजी शास्त्री, एम0 ए0, साहित्याचार्य, पी-एच0 डी0 )
मानव जीवनमें नीतिशास्त्रका महत्त्वपूर्ण स्थान है। मानवको मानवता जन्मसे लेकर मृत्युपर्यन्त प्रवर्तमान नीतिगत आदशों तथा उसके बोधपरक सन्देशोंपर आभूत है। महान् गौरवकी बात है कि अन्य शास्त्रोंकी भाँति इस नीतिशास्त्रका भी सूत्रपात भारतकी ही धरतीपर हुआ। जैसे वेदादि शास्त्रोंमें तत्त्वज्ञानके साथ ही लोकज्ञानकी भी बहुत-सी बातें आयी हैं, वैसे ही नीति-साहित्यमें भी राजनीतिक सिद्धान्तोंके साथ-साथ अनेक बोधपरक बातें आयी हैं। नीतिशास्त्रके आदि उद्भावक भगवान् ब्रह्मा हैं, उनसे शंकरजीको फिर इन्द्र, बृहस्पति, शुक्राचार्य आदिको प्राप्त होता हुआ यह नीतिशास्त्र लोकमें व्याप्त हो गया। नीतिशास्त्र के अनेक ग्रन्थ हैं, जिनमें कथाशैलीमें प्रणीत पंचतन्त्रका इतिहास अति प्राचीन है। पंचतन्त्र नीतिकथाओंका आदर्श केन्द्र रहा है। भारतके बाद फारसमें पंचतन्त्रके ही आधारपर नीतिकथाओंका प्रचार-प्रसार हुआ। फारसके बादशाह खुसरो नौशेरवाँके दरबारी हकीम बुरजोईने 533 ई0 में पंचतन्त्रका फारसी भाषामें अनुवाद किया था। 560 ई0 में एक ईसाई पादरीने पहलवीसे सीरिअन भाषामें इसका अनुवाद किया था। सीरियनसे अरबीमें अब्दुल्ला बिन अलमुकफ्फाने 750 ई0 में किया तथा 781 ई0 में दूसरा अनुवाद अब्दुल्ला बिन हवाजीने पहलवीसे अरबीमें किया। सहल-बिन-नवरख्तने इसका अनुवाद अरबी कवितामें किया।
चीनके 668 ई0 के तैयार किये विश्वकोशमें भारतीय बोधकथाओंका उल्लेख मिलता है। इस तरह इन कथाओंके अनुवाद लैटिन, ग्रीक, जर्मन, फ्रेंच तथा स्पैनिश आदि भाषाओंमें 16वीं शताब्दीतक होते रहे।’सालोमन्स जजमेन्ट’ एवं सिकन्दरकी अन्य जितनी कथाएँ ग्रीक, अरबी, हिब्रू तथा फारसी भाषाओंमें उपलब्ध हैं, उनमें भारतीय बोधकथाओंका ही उल्लेख मिलता है। इन साक्ष्योंसे यही सिद्ध होता है कि बोधकथाओंकी नीतिशास्त्रीय परम्पराका मूलाधार भारतीय धरती ही है। यहाँ संक्षेपमें बोधपरक भारतीय नीतिकथासंग्रहोंका परिचय देते हुए उनकी नीतिशास्त्रीय परम्परा और उनमें निहित बोधपर विचार किया जा रहा है
(1) पंचतन्त्र – इसका प्राचीन संस्करण ‘तन्त्रा ख्यायिका’ नामक काश्मीरी संस्करण आज भी उपलब्ध है। वर्तमानमें इसके चार संस्करण उपलब्ध हैं
(1) पहलवी अनुवाद-सीरियन एवं अरबी अनुवादमें प्राप्य, (2) गुणाढ्यकृत बृहत्कथापर आश्रित बृहत्कथामञ्जरी एवं सोमदेवकृत कथासरित्सागर, (3) तन्त्राख्यायिका और (4) दक्षिणी पंचतन्त्रका मूल रूप ।
पंचतन्त्रमें मित्रभेद, मित्रसम्प्राप्ति, काकोलूकीय, लब्धप्रणाश एवं अपरीक्षितकारक नामक पाँच तन्त्र हैं। महिलारोप्य नगरके अमरकीर्ति नामक राजाके मूर्ख पुत्रोंको शास्त्र एवं लोकज्ञानका बोध करानेके लिये विष्णुशर्मा नामक आचार्यने यह संग्रह तैयार किया था। इस कथाके माध्यमसे राजकुमारोंमें सदाचार, नीतिपटुता एवं व्यवहारकुशलताकी प्रतिष्ठा हो गयी थी। इसमें विनोदप्रियतासे परिपूर्ण मुहावरेदार भाषाका प्रयोग किया गया है। उपदेशकी सूक्तियाँ पद्यमें हैं एवं कथानक गद्यमें। उपदेशका मूल कथ्य प्रायः प्राचीन ग्रन्थोंसे लिया गया है। बोधकथाओंके माध्यमसे व्यवहारज्ञानकी तथा लोकशिक्षाकी बात बतलानेवाला यह अनूठा ग्रन्थ है। इसकी बहुत प्रसिद्धि है।
(2) नीतिमंजरी – यह संग्रह ऋग्वेदके संवादसूक्तोंपर आधारित है। स्तुतिपरक सूक्तोंके मनोरंजक एवं शिक्षाप्रद आख्यानोंके आचार्य द्विवेदने 15वीं शताब्दीमें नीतिमञ्जरी नामक संग्रह तैयार किया। वेदार्थदीपिका एवं सायणके वेदभाष्यसे अनेक उद्धरण इसमें संगृहीत हैं।
(3) हितोपदेश- चौदहवीं शताब्दीके आस पास पंचतन्त्रके आधारपर ही नारायणपण्डितने हितोपदेश नामक ग्रन्थ बनाया। मित्रलाभ, सुहद्भेद, विग्रह एवं सन्धिनामवाले इसमें चार परिच्छेद हैं। भाषा सरल-सुबोध है। श्लोक उपदेशात्मक हैं। कथाएँ शिक्षाप्रद और सम्यक् बोध करानेवाली हैं।
(4) बृहत्कथा – संस्कृत-साहित्यकी मनोरंजक बोधकथाओंका संकलन बृहत्कथामें है। गुणाढ्य पण्डितने। प्रथम शताब्दीमें पैशाची भाषामें इसकी रचना की थी। वर्तमानमें संस्कृतमें इसके तीन रूप उपलब्ध हैं-
(1) बृहत्कथाश्लोकसंग्रह- बुधस्वामीकृत,
(2) बृहत्कथामंजरी-क्षेमेन्द्रकृत तथा
(3) कथासरित्सागर-सोमदेवकृत ।
नेपाली बृहत्कथामें संक्षेपमें कथाओंका वर्णन है। काश्मीरी बृहत्कथामें कलात्मक अंशका प्राचुर्य है। सोम देवकी रचनायें मूल वस्तुकी रक्षाका विशेष उद्योग है। .
(5) वेतालपंचविंशति-जम्भलदत्तने वेताल पंचविंशति नामक संग्रहमें वेतालकी पचीस बोधकथाओंका संग्रह तैयार किया है। इसकी भाषा गद्य है। इसकी कथाएँ रोचक, बुद्धिवर्धक एवं कौतूहलवर्धक हैं। डॉ0 हर्टलने शिवदासको इसका संग्रहकार माना है।
(6) बृहत्कथामंजरी – क्षेमेन्द्रकृत बृहत्कथा मञ्जरीमें अठारह अध्याय हैं। कथाका नायक वत्सराज उदयनका पुत्र नरवाहनदत्त है। कथाका आरम्भ उदयन एवं वासवदत्ताके संवादसे होता है।
(7) बोधिसत्त्वावदान – क्षेमेन्द्रकृत इस ग्रन्थमें भगवान् बुद्धके पारमितासूचक आख्यानोंका संग्रह है। इसमें बुद्धके शुभ चरितोंका वर्णन है।
(8) राजतरंगिणी – कल्हणकी राजतरंगिणीमें आठ तरंग हैं। इस ग्रन्थमें पौराणिक आख्यानोंकी योजना है। प्रामाणिक इतिहासकी योजना कम है। भौगोलिक विवरणके आधारपर ऐतिहासिक तथ्य-सत्य उजागर हुए हैं। बौद्ध एवं जैनधर्मोंका सामंजस्य भी इस ग्रन्थमें दिखायी देता है।
(9) विक्रमचरित – इसका प्रसिद्ध नाम सिंहासन द्वात्रिंशिका है। इसमें राजा भोजकी बत्तीस कहानियोंका संग्रह है। इस ग्रन्थकी उत्तरी और दक्षिणी दो वाचनिकाएँ मिलती हैं। विक्रमचरित पद्य एवं गद्य-इन दो स्वरूपोंमें
मिलता है।
( 10 ) शुकसप्तति—एक सुग्गा परदेश जानेवाले क पतिके प्रति सद्भाव स्थिर रखनेके लिये स्वामिनीको ने कहानियाँ सुनाता है। इसकी एक विस्तृत एवं एक | संक्षिप्त वाचनिका है।
इन बोधकथा-संग्रहोंके अतिरिक्त पुरुषपरीक्षा, प्रबन्धकोश, कथारत्नाकर, भट्टकद्वात्रिंशिका, कथारत्नाकर, प्रबन्ध-चिन्तामणि, विविधतीर्थकल्प, भोजप्रबन्ध, अवदान शतक, दिव्यावदान आदि बोधपरक नीतिकथाओंके संग्रह भी प्रसिद्ध हैं।
वेदोंको अपौरुषेयता, पौराणिक साहित्यका विस्तार, महाभारत एवं रामायणके साहित्यिक स्वरूप, उपनिषदोंकी fate परम्परा के कारण लोकजीवनको नीतिमान बनाने के लिये सरल, सहज एवं बोधगम्य भाषाकी महती आवश्यकताका अनुभव किया गया। इसकी पूर्तिके हेतु लोकजीवनके परम्परागत ज्ञानको धाराको अक्षुण्ण बनाये रखनेके लिये एक साहित्यिक स्वरूपकी आवश्यकता प्रतीत हुई। कथाओं, आख्यानों, वार्ताओं एवं संवादोंके माध्यमसे प्राच्य एवं पूर्ववर्ती बोधको साहित्यिक स्वरूप देनेके लिये नीतिके इन आख्यानसंग्रहोंका आविर्भाव हुआ। सामान्यजन भी साहित्यिक चेष्टाओंसे अपरिचित न रहें, इसमें इन नीतिपरक संग्रहोंका महत्त्वपूर्ण योगदान है। हिन्दू, जैन, बौद्ध, इस्लाम सभी धर्मोकी नीतिगत मान्यताओंको इन संग्रहोंमें मान्यता एवं प्रतिष्ठा प्राप्त हुई है। साहित्यकी प्रचुरता एवं विशालताके कारण सामान्य जन-जीवनमें इन प्रेरणाप्रद कहानियोंको प्रतिष्ठापूर्ण सम्मान एवं स्थान आजतक मिला हुआ है। भारतको इस क्षेत्रमें प्रतिष्ठित होनेका सौभाग्य इन कहानियोंके माध्यमसे भी प्राप्त हुआ है। इन ग्रन्थोंकी धार्मिक सहिष्णुता एवं सामंजस्यके कारण ही अरबी एवं आंग्ल भाषाओं में इनके अनुवाद हुए हैं। आख्यानोंके माध्यमसे गूढ़तम ज्ञानको भी उद्घाटित करना तथा व्यावहारिक ज्ञानकी प्राप्ति कराना – यह इन बोधकथाओंका तात्पर्यमूलक उद्देश्य रहा है।
बोधकथापरक नीति-साहित्य (डॉ0 श्रीसूर्यमणिजी शास्त्री, एम0 ए0, साहित्याचार्य, पी-एच0 डी0 )
मानव जीवनमें नीतिशास्त्रका महत्त्वपूर्ण स्थान है। मानवको मानवता जन्मसे लेकर मृत्युपर्यन्त प्रवर्तमान नीतिगत आदशों तथा उसके बोधपरक सन्देशोंपर आभूत है। महान् गौरवकी बात है कि अन्य शास्त्रोंकी भाँति इस नीतिशास्त्रका भी सूत्रपात भारतकी ही धरतीपर हुआ। जैसे वेदादि शास्त्रोंमें तत्त्वज्ञानके साथ ही लोकज्ञानकी भी बहुत-सी बातें आयी हैं, वैसे ही नीति-साहित्यमें भी राजनीतिक सिद्धान्तोंके साथ-साथ अनेक बोधपरक बातें आयी हैं। नीतिशास्त्रके आदि उद्भावक भगवान् ब्रह्मा हैं, उनसे शंकरजीको फिर इन्द्र, बृहस्पति, शुक्राचार्य आदिको प्राप्त होता हुआ यह नीतिशास्त्र लोकमें व्याप्त हो गया। नीतिशास्त्र के अनेक ग्रन्थ हैं, जिनमें कथाशैलीमें प्रणीत पंचतन्त्रका इतिहास अति प्राचीन है। पंचतन्त्र नीतिकथाओंका आदर्श केन्द्र रहा है। भारतके बाद फारसमें पंचतन्त्रके ही आधारपर नीतिकथाओंका प्रचार-प्रसार हुआ। फारसके बादशाह खुसरो नौशेरवाँके दरबारी हकीम बुरजोईने 533 ई0 में पंचतन्त्रका फारसी भाषामें अनुवाद किया था। 560 ई0 में एक ईसाई पादरीने पहलवीसे सीरिअन भाषामें इसका अनुवाद किया था। सीरियनसे अरबीमें अब्दुल्ला बिन अलमुकफ्फाने 750 ई0 में किया तथा 781 ई0 में दूसरा अनुवाद अब्दुल्ला बिन हवाजीने पहलवीसे अरबीमें किया। सहल-बिन-नवरख्तने इसका अनुवाद अरबी कवितामें किया।
चीनके 668 ई0 के तैयार किये विश्वकोशमें भारतीय बोधकथाओंका उल्लेख मिलता है। इस तरह इन कथाओंके अनुवाद लैटिन, ग्रीक, जर्मन, फ्रेंच तथा स्पैनिश आदि भाषाओंमें 16वीं शताब्दीतक होते रहे।’सालोमन्स जजमेन्ट’ एवं सिकन्दरकी अन्य जितनी कथाएँ ग्रीक, अरबी, हिब्रू तथा फारसी भाषाओंमें उपलब्ध हैं, उनमें भारतीय बोधकथाओंका ही उल्लेख मिलता है। इन साक्ष्योंसे यही सिद्ध होता है कि बोधकथाओंकी नीतिशास्त्रीय परम्पराका मूलाधार भारतीय धरती ही है। यहाँ संक्षेपमें बोधपरक भारतीय नीतिकथासंग्रहोंका परिचय देते हुए उनकी नीतिशास्त्रीय परम्परा और उनमें निहित बोधपर विचार किया जा रहा है
(1) पंचतन्त्र – इसका प्राचीन संस्करण ‘तन्त्रा ख्यायिका’ नामक काश्मीरी संस्करण आज भी उपलब्ध है। वर्तमानमें इसके चार संस्करण उपलब्ध हैं
(1) पहलवी अनुवाद-सीरियन एवं अरबी अनुवादमें प्राप्य, (2) गुणाढ्यकृत बृहत्कथापर आश्रित बृहत्कथामञ्जरी एवं सोमदेवकृत कथासरित्सागर, (3) तन्त्राख्यायिका और (4) दक्षिणी पंचतन्त्रका मूल रूप ।
पंचतन्त्रमें मित्रभेद, मित्रसम्प्राप्ति, काकोलूकीय, लब्धप्रणाश एवं अपरीक्षितकारक नामक पाँच तन्त्र हैं। महिलारोप्य नगरके अमरकीर्ति नामक राजाके मूर्ख पुत्रोंको शास्त्र एवं लोकज्ञानका बोध करानेके लिये विष्णुशर्मा नामक आचार्यने यह संग्रह तैयार किया था। इस कथाके माध्यमसे राजकुमारोंमें सदाचार, नीतिपटुता एवं व्यवहारकुशलताकी प्रतिष्ठा हो गयी थी। इसमें विनोदप्रियतासे परिपूर्ण मुहावरेदार भाषाका प्रयोग किया गया है। उपदेशकी सूक्तियाँ पद्यमें हैं एवं कथानक गद्यमें। उपदेशका मूल कथ्य प्रायः प्राचीन ग्रन्थोंसे लिया गया है। बोधकथाओंके माध्यमसे व्यवहारज्ञानकी तथा लोकशिक्षाकी बात बतलानेवाला यह अनूठा ग्रन्थ है। इसकी बहुत प्रसिद्धि है।
(2) नीतिमंजरी – यह संग्रह ऋग्वेदके संवादसूक्तोंपर आधारित है। स्तुतिपरक सूक्तोंके मनोरंजक एवं शिक्षाप्रद आख्यानोंके आचार्य द्विवेदने 15वीं शताब्दीमें नीतिमञ्जरी नामक संग्रह तैयार किया। वेदार्थदीपिका एवं सायणके वेदभाष्यसे अनेक उद्धरण इसमें संगृहीत हैं।
(3) हितोपदेश- चौदहवीं शताब्दीके आस पास पंचतन्त्रके आधारपर ही नारायणपण्डितने हितोपदेश नामक ग्रन्थ बनाया। मित्रलाभ, सुहद्भेद, विग्रह एवं सन्धिनामवाले इसमें चार परिच्छेद हैं। भाषा सरल-सुबोध है। श्लोक उपदेशात्मक हैं। कथाएँ शिक्षाप्रद और सम्यक् बोध करानेवाली हैं।
(4) बृहत्कथा – संस्कृत-साहित्यकी मनोरंजक बोधकथाओंका संकलन बृहत्कथामें है। गुणाढ्य पण्डितने। प्रथम शताब्दीमें पैशाची भाषामें इसकी रचना की थी। वर्तमानमें संस्कृतमें इसके तीन रूप उपलब्ध हैं-
(1) बृहत्कथाश्लोकसंग्रह- बुधस्वामीकृत,
(2) बृहत्कथामंजरी-क्षेमेन्द्रकृत तथा
(3) कथासरित्सागर-सोमदेवकृत ।
नेपाली बृहत्कथामें संक्षेपमें कथाओंका वर्णन है। काश्मीरी बृहत्कथामें कलात्मक अंशका प्राचुर्य है। सोम देवकी रचनायें मूल वस्तुकी रक्षाका विशेष उद्योग है। .
(5) वेतालपंचविंशति-जम्भलदत्तने वेताल पंचविंशति नामक संग्रहमें वेतालकी पचीस बोधकथाओंका संग्रह तैयार किया है। इसकी भाषा गद्य है। इसकी कथाएँ रोचक, बुद्धिवर्धक एवं कौतूहलवर्धक हैं। डॉ0 हर्टलने शिवदासको इसका संग्रहकार माना है।
(6) बृहत्कथामंजरी – क्षेमेन्द्रकृत बृहत्कथा मञ्जरीमें अठारह अध्याय हैं। कथाका नायक वत्सराज उदयनका पुत्र नरवाहनदत्त है। कथाका आरम्भ उदयन एवं वासवदत्ताके संवादसे होता है।
(7) बोधिसत्त्वावदान – क्षेमेन्द्रकृत इस ग्रन्थमें भगवान् बुद्धके पारमितासूचक आख्यानोंका संग्रह है। इसमें बुद्धके शुभ चरितोंका वर्णन है।
(8) राजतरंगिणी – कल्हणकी राजतरंगिणीमें आठ तरंग हैं। इस ग्रन्थमें पौराणिक आख्यानोंकी योजना है। प्रामाणिक इतिहासकी योजना कम है। भौगोलिक विवरणके आधारपर ऐतिहासिक तथ्य-सत्य उजागर हुए हैं। बौद्ध एवं जैनधर्मोंका सामंजस्य भी इस ग्रन्थमें दिखायी देता है।
(9) विक्रमचरित – इसका प्रसिद्ध नाम सिंहासन द्वात्रिंशिका है। इसमें राजा भोजकी बत्तीस कहानियोंका संग्रह है। इस ग्रन्थकी उत्तरी और दक्षिणी दो वाचनिकाएँ मिलती हैं। विक्रमचरित पद्य एवं गद्य-इन दो स्वरूपोंमें
मिलता है।
( 10 ) शुकसप्तति—एक सुग्गा परदेश जानेवाले क पतिके प्रति सद्भाव स्थिर रखनेके लिये स्वामिनीको ने कहानियाँ सुनाता है। इसकी एक विस्तृत एवं एक | संक्षिप्त वाचनिका है।
इन बोधकथा-संग्रहोंके अतिरिक्त पुरुषपरीक्षा, प्रबन्धकोश, कथारत्नाकर, भट्टकद्वात्रिंशिका, कथारत्नाकर, प्रबन्ध-चिन्तामणि, विविधतीर्थकल्प, भोजप्रबन्ध, अवदान शतक, दिव्यावदान आदि बोधपरक नीतिकथाओंके संग्रह भी प्रसिद्ध हैं।
वेदोंको अपौरुषेयता, पौराणिक साहित्यका विस्तार, महाभारत एवं रामायणके साहित्यिक स्वरूप, उपनिषदोंकी fate परम्परा के कारण लोकजीवनको नीतिमान बनाने के लिये सरल, सहज एवं बोधगम्य भाषाकी महती आवश्यकताका अनुभव किया गया। इसकी पूर्तिके हेतु लोकजीवनके परम्परागत ज्ञानको धाराको अक्षुण्ण बनाये रखनेके लिये एक साहित्यिक स्वरूपकी आवश्यकता प्रतीत हुई। कथाओं, आख्यानों, वार्ताओं एवं संवादोंके माध्यमसे प्राच्य एवं पूर्ववर्ती बोधको साहित्यिक स्वरूप देनेके लिये नीतिके इन आख्यानसंग्रहोंका आविर्भाव हुआ। सामान्यजन भी साहित्यिक चेष्टाओंसे अपरिचित न रहें, इसमें इन नीतिपरक संग्रहोंका महत्त्वपूर्ण योगदान है। हिन्दू, जैन, बौद्ध, इस्लाम सभी धर्मोकी नीतिगत मान्यताओंको इन संग्रहोंमें मान्यता एवं प्रतिष्ठा प्राप्त हुई है। साहित्यकी प्रचुरता एवं विशालताके कारण सामान्य जन-जीवनमें इन प्रेरणाप्रद कहानियोंको प्रतिष्ठापूर्ण सम्मान एवं स्थान आजतक मिला हुआ है। भारतको इस क्षेत्रमें प्रतिष्ठित होनेका सौभाग्य इन कहानियोंके माध्यमसे भी प्राप्त हुआ है। इन ग्रन्थोंकी धार्मिक सहिष्णुता एवं सामंजस्यके कारण ही अरबी एवं आंग्ल भाषाओं में इनके अनुवाद हुए हैं। आख्यानोंके माध्यमसे गूढ़तम ज्ञानको भी उद्घाटित करना तथा व्यावहारिक ज्ञानकी प्राप्ति कराना – यह इन बोधकथाओंका तात्पर्यमूलक उद्देश्य रहा है।