आखिरमें मिला क्या ?
विश्व भ्रमणपर निकला एक धनी व्यापारी नीदरलैण्डके एम्सटर्डम शहरमें पहुँचा। वहाँ उसने एक अत्यन्त भव्य और सुन्दर महल देखा और उसके सामने अपने विशाल बँगलेको भी तुच्छ जानकर ईर्ष्यालु और दुखी हो गया। पाससे गुजर रहे व्यक्तिसे उसने उस महलके मालिकका नाम पूछा। गुजरनेवाला व्यक्ति शायद जल्दी में था, इसलिये अपनी भाषामें बोला-‘कानिटवस्टैन (मुझे नहीं मालूम)।’ उस भाषासे अनभिज्ञ व्यापारीने समझा कि महलके मालिकका नाम कानिटवस्र्टेन है।
घूमते-घूमते वह व्यापारी एक बन्दरगाहपर पहुँचा, जहाँ एक बड़े जहाजसे अनेक प्रकारका कीमती सामान कुली लोग उतारकर एक स्थानपर जमा कर रहे थे। व्यापारीको इतनी अपार धन-दौलतके मालिकका नाम जाननेका कौतूहल हुआ, तो उसने एक कुलीसे पूछा यह किसका सामान उतारा जा रहा है?’ कुली भी जल्दीमें था, इसलिये ‘कानिटवस्टेन’ कहकर उसने भी अपना रास्ता पकड़ा। अब तो वह व्यापारी ‘कानिटवस्टेन’ नामक व्यक्तिसे मिलनेको बेचैन हो गया।
उससे मिलनेकी चाह मनमें लिये वह थोड़ा आगे बढ़ा ही था कि एक शवयात्रा गुजर रही थी, जिसमें अपार भीड़ थी। शवयात्रा गुजर जानेके बाद व्यापारीने उसी तरफ जा रहे एक व्यक्तिसे पूछा-‘शायद किसी महान् व्यक्तिका निधन हो गया है, किसकी थी यह शवयात्रा ?’ जल्दीमें लग रहा वह व्यक्ति भी ‘कानिटवर्टेन’ कहकर आगे बढ़ गया।
यह सुनते ही व्यापारीकी ईर्ष्या पानीके बुलबुलेकी तरह फूटकर खत्म हो गयी और वह सोचने लगा-‘उस शानदार महल और बेशुमार धन-दौलतने आखिर में मिस्टर कानिटवस्र्टेनको दिया क्या ? सिर्फ एक कफनका कपड़ा और चिरनींदमें सोनेके लिये दो गज जमीन! इतना तो मुझे भी अपनी थोड़ी-सी सम्पत्तिसे मिल ही जायगा।’
What did you get in the end?
A rich businessman who went on a world tour reached the city of Amsterdam in the Netherlands. There he saw a very grand and beautiful palace and became jealous and sad seeing his huge bungalow as insignificant in front of it. He asked the person passing by the name of the owner of that palace. The person passing was probably in a hurry, so he said in his own language – ‘Kanitvstan (I don’t know).’ The merchant, ignorant of that language, understood that the name of the owner of the palace was Kanitvarsten.
While roaming around, the merchant reached a port, where coolies were unloading various valuables from a big ship and depositing them at one place. The businessman was curious to know the name of the owner of such immense wealth, so he asked a porter whose goods are being unloaded? The porter was also in a hurry, so saying ‘Kanitvsten’ he too made his way. Now that businessman became restless to meet a person named ‘Kanitvsten’.
With the desire to meet him, he had moved a little further that a funeral procession was passing, in which there was a huge crowd. After the funeral procession passed, the businessman asked a person going in the same direction – ‘Perhaps some great person has passed away, whose funeral was this?’ The person who seemed to be in a hurry also went ahead saying ‘Kanitvarten’.
On hearing this, the businessman’s jealousy burst like a water bubble and he started thinking – ‘ What did that magnificent palace and immense wealth give to Mr. Kanitvsrten in the end? Just a shroud cloth and two yards of land to sleep in eternal sleep! I will also get this much with my small wealth.’