उपकार मानो, एहसान न जताओ
भूदेव बाबू कोलकाताके जाने-माने समाजसेवी थे। वे भगवान् शंकरके परम भक्त थे। गरीबों असहायोंकी भरपूर सेवा-सहायता किया करते थे। साथ ही विद्वानों तथा ब्राह्मणोंका सम्मान करना थे अपना सर्वोपरि धर्म मानते थे। उनकी सेवाका कोई मौका वे हाथसे नहीं जाने देते थे। वे अक्सर कहा करते- ‘सरस्वती पुत्र शिक्षक तथा ब्राह्मण प्रायः अधिक संकटमें रहते हैं। उनकी सेवा सहायता करके उन्हें शिक्षा एवं सद्विचारोंके प्रचारमें लगे रहनेकी दिशामें प्रोत्साहन दिया जाना चाहिये।’ उन्होंने विद्वानोंकी सहायताके लिये अलगसे ‘बाबा विश्वनाथ सहायता कोष’ की स्थापना की। वे प्रतिभाशाली विद्वानों एवं विरक्त ब्राह्मणोंकी उस कोषसे सहायता किया करते थे।
उनके मुनीमने वर्षके अन्तमें एक सूची उनके सामने प्रस्तुत की, जिसमें लिखा था, ‘इस वर्ष जिन-जिन अध्यापकों एवं विद्वानोंको विश्वनाथ-वृत्ति प्रदान की गयी है, उनकी नामावली।’ सूची देखते ही भूदेव बाबूने नाराजगी प्रकट करते हुए कहा—’ मुनीमजी इस सूचीके ऊपर लिखो कि इस वर्ष जिन माननीय अध्यापकों और विद्वानोंने विश्वनाथ वृत्ति स्वीकार करने की कृपा की, उनकी नामावली ।’
वे कहा करते थे कि जो विद्वान् हमारी सहायता स्वीकार करते हैं, हमें उनका उपकार मानना चाहिये, न कि उनपर एहसान जताना चाहिये।
be grateful, don’t be grateful
Bhudev Babu was a well-known social worker of Kolkata. He was the supreme devotee of Lord Shankar. Used to do a lot of service and help to the poor and helpless. At the same time, we had to respect scholars and Brahmins, we used to consider our paramount religion. He never let go of any opportunity to serve him. They often used to say- ‘Saraswati’s son, teacher and Brahmin are often in more trouble. By helping them in their service, they should be encouraged in the direction of being engaged in the propagation of education and good thoughts. He separately established ‘Baba Vishwanath Sahayata Kosh’ to help the scholars. He used to help talented scholars and disinterested Brahmins from that fund.
His accountant presented a list in front of him at the end of the year, in which it was written, ‘The names of teachers and scholars who have been awarded Vishwanath-Vritti this year.’ On seeing the list, Bhudev Babu expressed his displeasure and said- ‘Minimji, write on top of this list the names of the respected teachers and scholars who were pleased to accept Vishwanath Vrittis this year.’
He used to say that the scholars who accept our help, we should acknowledge their gratitude, not show them any favor.