कामदेवमें कितना बल
एक गाँवमें एक पण्डितजी कथा बाँचा करते थे। कथा समाप्त होनेपर वे कहा करते- ‘कामदेवमें दस हजार हाथियोंका बल होता है।’ एक दिन एक साधुने पण्डितजीको चुनौती दी कि या तो अपने कथनको सिद्ध करो अथवा कथा बाँचना बन्द कर दो। पण्डितजी बेचारे बड़ी दुविधामें पड़ गये। उन्होंने तो सुनी – सुनायी बात कह दी थी।
दूसरे दिन पण्डितजीकी युवा बेटी ससुरालसे पीहर आयी। माता-पिताको चिन्तामें डूबा देख उसने कारण पूछा। पिताने कारण बताया तो वह बोली- ‘आप खाना खाइये। मैं इस बातको सिद्ध कर दूँगी।’
अगले दिन उसने बढ़िया रसोई बनवायी। उसने स्वयं नहा-धोकर खूब श्रृंगार किया। शाम हुई तो बन-ठनकर भोजनकी थाली लेकर साधुकी मढ़ीकी ओर चल पड़ी।
वर्षाकी ऋतु थी। बादल उमड़-घुमड़ रहे थे। बिजलियाँ चमक रही थीं। वह मढ़ीतक पहुँची तो कुछ बूँदा बाँदी शुरू हो गयी।
सुन्दर युवतीको अकेला पाकर साधुके मनमें ( विकार आ गया। उसने उससे प्रणय निवेदन किया। । ब्राह्मणकी बेटी बोली- ‘मुझे भय लगता है। कहीं कोई आ न जाय। आप बाहर दरवाजा बन्द कर आयें।’
साधु प्रसन्न मन से बाहरकी ओर दौड़ा। इसी बीच मौका पाकर लड़कीने भीतरसे कुण्डी लगा ली। साधुने । दरवाजा बन्द देखा तो पहले लड़कीसे अनुरोध किया, जब उसने दरवाजा न खोला तो उसे धमकाने लगा। लड़कीने फिर भी दरवाजा न खोला। अब साधु चिमटा लेकर मढ़ीकी छतपर चढ़ गया और उसमें छेद करने लगा। थोड़ा-सा सूराख तो हुआ, पर वह छोटा था, उसका शरीर उस सूराखमें फँस गया ।
लड़कीने उपयुक्त अवसर देख, कुण्डी खोली और पितासे जाकर बोली- आप गाँवके लोगोंके साथ साधुकी मढ़ीपर तत्काल पहुँचिये और साधुसे पूछिये ‘काममें कितना बल होता है ?”
पण्डितने ऐसा ही किया। गाँववालोंको देख,
साधुका सिर लज्जासे झुक गया। पण्डितने उससे पूछा ‘महाराज, काममें कितना बल होता है ?’
साधुने शर्मसे कहा- ‘मुझे क्षमा करो। काममें दसहजार नहीं, असंख्य हाथियोंका बल होता है।’
[ श्रीहरीशजी शिवनानी ‘शिनी’ ]
how much power in kamdev
In a village, a priest used to live a story. At the end of the story, he used to say- ‘Kaamdev has the strength of ten thousand elephants.’ One day a monk challenged Panditji to either prove his statement or stop living the story. Poor Panditji was in a big dilemma. He had told what he had heard.
The next day Panditji’s young daughter came to Pihar from her in-laws’ house. Seeing the parents immersed in worry, he asked the reason. When the father told the reason, she said – ‘You eat food. I will prove this.’
The next day he got a nice kitchen made. She herself bathed and put on a lot of makeup. When evening came, the sadhu went towards the hill with a plate of food.
It was rainy season. Clouds were rolling in. The lights were flashing. When it reached the hill, it started raining a few drops.
Seeing the beautiful girl alone, the sadhu’s mind was disturbed. He requested her for love. Brahmin’s daughter said- ‘I am afraid. Lest someone come.
The monk ran outside with a happy heart. Meanwhile, after getting the opportunity, the girl put the latch from inside. Sages. When he saw the door closed, he first requested the girl, when she did not open the door, he started threatening her. Still the girl did not open the door. Now the monk climbed on the roof of the mill with tongs and started making holes in it. There was a small hole, but it was small, his body got trapped in that hole.
Seeing a suitable opportunity, the girl opened the latch and went to her father and said – you immediately reach the monk’s grave with the people of the village and ask the monk, ‘How much force is there in work?’
The priest did the same. Look at the villagers
The monk bowed his head in shame. The pundit asked him, ‘Maharaj, how much power is there in work?’
The sage shyly said – ‘Forgive me. There is not ten thousand in work, but the strength of innumerable elephants.
[Sri Harishji Shivnani ‘Shini’]