“धनवान परिवार में जन्म होने के कारण जिन बच्चों को जन्म से ही सब सुविधाएं मिल जाती हैं। उन्हें माता पिता से लाड़ प्यार भी बहुत अधिक मिलता है। घर में खाना पीना कपड़े बर्तन बिस्तर खिलौने खूब मिलते हैं, और नौकर चाकर इत्यादि भी सब उनकी बहुत सेवा करते हैं। ऐसे बच्चे अधिकतर धन आदि वस्तुओं का मूल्य ठीक प्रकार से नहीं समझ पाते।”
जिन बच्चों को गरीब परिवार में जन्म मिलता है। वहां उन्हें सुविधाएं बहुत कम मिल पाती हैं। “उनका पोषण भी अनेक बार ठीक प्रकार से नहीं हो पाता। उन्हें हर वस्तु की प्राप्ति के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है। बहुत कठिनाई से वे जीवन रक्षक सुविधाओं को जुटा पाते हैं। आगे उन्नति करने की इच्छा से वे पढ़ाई में खूब परिश्रम करते हैं। अनुशासन में रहते हैं। तब जाकर कुछ योग्यता बनती है। कुछ डिग्री प्राप्त कर पाते हैं। कुछ धन कमा पाते हैं। ऐसे बच्चे बड़े होकर धन आदि वस्तुओं का मूल्य समझते हैं। वे धन का थोड़ा भी अपव्यय नहीं करते, दुरुपयोग नहीं करते।”
मैं यह नहीं कहना चाहता, कि “धनवान परिवार में जन्म लेना कोई अपराध है।” और मैं यह भी नहीं कहना चाहता, कि “यदि किसी को धनवान परिवार में जन्म मिला है, तो वह बालक अवश्य ही बिगड़ेगा या लापरवाह होगा ही।” “बल्कि यह तो उस बच्चे के पूर्व जन्म के कुछ अच्छे कर्मों का ही फल है। परंतु वह फल इतनी मात्रा में है, कि वह जन्म से लेकर 5 वर्ष तक खाए पीए खेले कूदे, और सुविधाओं का लाभ लेवे। यह उसका पिछले कर्मों का फल है। अमीर के बच्चे का भी और गरीब के बच्चे का भी। दोनों का।”
परंतु जैसे ही पांच वर्ष के बाद बच्चे गुरुकुल जाने लगें, तो वैदिक शास्त्रों के आधार पर मैं यह कहना चाहता हूं, कि “तब से अमीर के बच्चे की और गरीब के बच्चे की, दोनों की सुविधाएं एक समान कर देनी चाहिएं।” पहले जब गुरुकुल शिक्षा पद्धति थी, तब ऐसा ही होता था। तब गुरुकुल में दोनों बच्चों के इस वर्तमान जीवन की नई परीक्षा है। जितनी सुविधाएं गरीब के बच्चे को पढ़ने की और खाने पीने खेलने की मिलें, उतनी ही अमीर के बच्चे को भी मिलें, दोनों को ये सब सुविधाएं समान रूप से मिलें, तब पता चलेगा कि कौन कितनी मेहनत करता है।” “तब दोनों की प्रगति अच्छी होगी। और फिर जो जितनी मेहनत करेगा उसको उतनी डिग्री उतनी सुविधाएं उतना धन सम्मान दिया जाएगा। ऐसा करना न्याय है। श्रीकृष्ण और सुदामा दोनों एक ही गुरुकुल में साथ साथ अध्ययन करते थे। दोनों को एक जैसी सुविधाएं मिलती थी। यह आप जानते ही हैं।”
यदि इस प्रकार से व्यवहार किया जाए, तो सभी बच्चे पुरुषार्थी बनेंगे। “जैसे गरीबों के बच्चे मेहनत करते हैं, वैसे ही अमीरों के बच्चे भी मेहनत करेंगे। जैसे गरीबों के बच्चे अनुशासन में रहते हैं, वैसे ही अमीरों के बच्चे भी अनुशासन में रहेंगे। दोनों के बच्चे धन आदि वस्तुओं का मूल्य ठीक-ठीक समझेंगे।”
परंतु आजकल गुरुकुल शिक्षा पद्धति न होने के कारण ऐसा प्राय: देखा नहीं जाता। इस नियम का, आजकल बहुत कम मात्रा में पालन देखा जाता है। “आजकल जो बच्चे स्कूल में जाते हैं उनकी यूनिफॉर्म सबकी एक जैसी होती है।” यह नियम इसलिए बना गया था, कि “गरीब अमीर का अंतर बच्चों के दिमाग़ में न आए। सब बच्चे एक दूसरे को एक समान समझें, और सब पुरुषार्थ करके उन्नति करें।” परंतु यह नियम बहुत थोड़ी मात्रा में ही लागू हो पाया। केवल यूनीफार्म तक ही सीमित रह गया। बहुत सी सुविधाओं में अभी भी अंतर है, जिसके कारण अमीरों के बच्चों में बिगाड़ देखा जाता है। “बिना किसी पुरुषार्थ के धन आदि वस्तुएं खूब मात्रा में मिल जाने के कारण अमीरों के बच्चे धन की कीमत नहीं समझते, और वे अनेक प्रकार की अनुशासनहीनता, धन का अपव्यय तथा दुरुपयोग करते हैं। इसीलिए वे जीवन को ठीक प्रकार से जीना नहीं सीख पाते।” “धनवानों के केवल वही बच्चे अच्छे अनुशासित देखे जाते हैं, जिन्हें माता पिता और गुरुजन कठोर अनुशासन में रखते हैं।
ऐसे बच्चे ही धन आदि सभी वस्तुओं का सदुपयोग करते हैं। “इसलिए अमीरों के बच्चों को भी बहुत अधिक सुविधाएं नहीं देनी चाहिएं। उनकी सुविधाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए। तभी वे सभ्य बनेंगे। अनुशासन प्रिय बनेंगे। धन का मूल्य समझेंगे। धन का दुरुपयोग नहीं करेंगे, और एक अच्छे नागरिक बनकर अपने जीवन को सफल बनाएंगे।”
“मैं जानता हूं, यह बात आप को इतनी आसानी से हज़म नहीं होगी। परंतु वेदों के अनुसार सत्य तो यही है।” “इसी नियम से ही सबको सभ्य अनुशासित और सुखी बनाया जा सकता है।” “आप इस नियम पर गंभीरता से चिंतन करें, और इसे समझने का प्रयत्न करें। ‘कितने दिनों में आपको यह बात समझ में आएगी’, यह तो आपके परिश्रम और पुरुषार्थ पर आधारित है।”
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