आज के विचार
( महान रघुकुल…मैंने प्रथम बार देखा था)
भाग-35
अहह दैव मैं कत जग जायउँ ..
प्रभु के एकहु काज न आयउँ ।।
(रामचरितमानस)
प्रभु अहंकार खाते हैं… ये बात मैंने सुनी थी… पर भरत भैया !
मैंने इस “लक्ष्मण मूर्छित प्रसंग” में अनुभव भी कर लिया ।
कितना अहंकार था मुझे… उस समय… जब मैं संजीवनी लेने गया था हिमालय… लंका से हिमालय तक की मेरी यात्रा… मेरे मन में कई बार आया कि हनुमान ! अगर आज तुम नही होते… तो प्रभु का ये कार्य कौन करता ? अहंकार की पराकाष्ठा !
पर प्रभु ने मुझे सम्भाल लिया…
ये कहते हुए… भरत जी के चरणों में एकाएक गिर गए थे हनुमान जी ।
ये क्या कर रहे हैं आप पवनपुत्र ?
नही… आप के माध्यम से… मुझे अहंकार से बचाया प्रभु ने…
मैं तो संजीवनी लेकर जा रहा था… अहंकार में जा रहा था…
मन में बात थी कि… हनुमान तुम ही हो… जो आज लक्ष्मण के प्राण बचा रहे हो… है इस विश्व ब्रह्माण्ड में कोई… जो हनुमान की बराबरी कर सके… कितना फूल गया था मैं… अहंकार में ।
और मेरा ध्यान धरती में भी नही गया… ओह ! मेरे आराध्य की जन्म भूमि थी अयोध्या… मुझे पता भी न चला… हाँ कैसे पता चलता अहंकारी व्यक्ति को कहाँ पता चले अयोध्या का !
मेरे अहंकार को तोड़ा आपके माध्यम से प्रभु ने…
आपने… हनुमान जी बोलने जा रहे थे कि भरत जी ने बीच में ही रोक दिया फिर जो बात थी, वो बता दी ।
हनुमान जी ! मुझे क्या पता… कि श्रीराम भक्त जा रहा है…
मैं तो सहजता में बैठा था अपने नन्दी ग्राम में… तभी मेरी दृष्टि ऊपर गई आकाश में… कोई जा रहा है अयोध्या के ऊपर से… और उसके हाथों में कोई विशाल पर्वत है… हनुमान जी ! मेरे मन में आया… कहीं कोई निशाचर अयोध्या के ऊपर आक्रमण तो करने नही आया… !
बस मैंने तभी एक बिना फन का बाण मार दिया… ।
आप गिर गए… मूर्छित होकर गिर गए थे…
आपको कुछ होश नही था… पर आपके मुँह से… श्री राम जय राम जय जय राम… यही बारम्बार निकल रहा था ।
मैंने अपने आपको धिक्कारा… हे पवन पुत्र !…
मुझे ग्लानि हुयी… भरत ! तू श्रीराम के किसी काम तो आ न सका… और इन श्रीराम भक्त के ऊपर बाण और मार दिया तूने…ओह !
भरत जी ने हनुमान जी को इतना बताया…
हनुमान जी ने कहा- भरत भैया ! मेरी आँखें खुल गयी थीं… मैंने आपको देखा था… मेरे सामने… मेरे आराध्य के समान ही कोई रूप और स्वभाव वाला मेरे सामने था… ।
आप ठीक तो हैं ना ? आपकी मधुर वाणी मेरे कानों में गयी ।
वाणी में मधुरता भी मेरे आराध्य के समान ही थी… ।
आप अयोध्या में हैं… चिन्ता न करें आप… आपने मुझे कहा था ।
ओह ! मेरा हृदय कमल खिल गया… ये सुनते ही आपके मुखारविन्द से कि – मैं अयोध्या में हूँ ।
तभी मेरा ध्यान गया… उस संजीवनी पर्वत पर… कहाँ है वो पर्वत ? उसे मेरे सिवा कोई उठा नही सकता ।
अधर में ही लटका दिया है मैंने… भरत भैया ! आपने मुझे कहा था ।
तब मेरे चक्षु खुल गए थे… मेरा अहंकार सब गल गया था ।
“मैं उठा रहा हूँ पर्वत को”… कितना व्यर्थ का अहंकार पाले था मैं ।
आप ने तो उसे ऐसे ही अधर में लटका दिया… ।
आप ?… मैंने आपसे पूछा था भरत भैया !
तब आपने उत्तर दिया… मैं श्रीरामानुज भरत !
ओह ! मैंने आपके चरण पकड़ लिए थे ।
आप कौन हैं ?… आपने मुझ से पूछा ।
मैंने अपना परिचय देते हुए… संक्षिप्त में सारी बातें बता दी थीं…
वनवास में माँ मैथिली के हरण से लेकर… सेतु बन्ध, फिर लंका में युद्ध… और उस युद्ध में लक्ष्मण जी का मूर्छित होना… संजीवनी पर्वत का लेकर जाना मेरा ।
नेत्रों से अश्रु बह चले थे आपके हे भरत भैया !…
कितना रोये थे आप उस दिन… मुझे याद है… ।
मैं किसी काम न आ सका नाथ ! यही बात आप बार-बार दोहरा रहे थे ।
फिर आपने भरत भैया ! अपने आँसू पोंछते हुए मुझ से कहा… राज महल चलिये पवन पुत्र !… पूज्या माता से… और परिवार से आपको मैं मिलाता हूँ… ताकि उनका सन्देश भी आप प्रभु तक पहुँचा सकें ।
पर… मैंने आकाश के तारों को देखा… फिर मुझे लगा… अभी बहुत समय है…।
उस समय आपने कहा था… मैं आपको एक क्षण में लंका पहुँचा दूँगा पवनपुत्र ! मेरे बाण पर आप पर्वत लेकर बैठ जाइयेगा ।
ऐसा अवसर मेरे लिए बारम्बार कहाँ मिलता… अम्बा कौशल्या जी का दर्शन… अन्य समस्त श्रीराम परिवार… और सबसे बड़ी बात भरत भैया ! आप का प्रेमपूर्ण संग मुझे मिल रहा था ।
मैं आपके साथ चल पड़ा था… राज महल की ओर ।
अम्बा मेरे आराध्य की जननी… माँ कौशल्या जी !
मैंने साष्टांग प्रणाम किया उनके चरणों में ।
माँ सुमित्रा जी… लक्ष्मण जी की माँ… उनके चरणों का स्पर्श पाकर मैं धन्य ही हो गया था ।
पर माँ कैकेई कहाँ हैं… ? मेरे मन में एक क्षण को ये विचार आया तो था… पर फिर मैंने उस ओर ध्यान नही दिया ।
हाँ… माँ कैकेई को कोई क्यों ध्यान देने लगा ।
उर्मिला जी भी आ गयी थीं… श्रुतकीर्ति और पूज्या माण्डवी जी… ये सब राज बहुएं भी वहाँ उपस्थित हो गयीं थीं ।
ये हैं श्रीराम भक्त हनुमान ! भरत भैया ! आपने ही मेरा परिचय दिया ।
सबने मेरा अभिवादन किया था ।
आप लोग सोये नही हैं अर्ध रात्रि है इस समय…
मेरा ये प्रश्न व्यर्थ था…
मेरे इस प्रश्न को सुनकर सबने अपने आँसू पोंछे थे ।
हाँ… श्रीराम के वियोग में भला ये सब सोते होंगे क्या ?
भरत भैया ! आपने मेरी ओर देखा… और सारी घटना सुनाने के लिए कहा… मैंने सुना दिया था… जो-जो घटना घटी ।
और अभी की स्थिति ये है… कि लक्ष्मण जी मूर्छित हैं… मैं अगर सूर्योदय से पहले संजीवनी लेकर नही गया… तो ।
इतना बोलकर मैं चुप हो गया था ।
मेरी बातें सुनकर आगे आयीं थीं माँ सुमित्रा जी… ।
शत्रुघ्न कुमार !
ओह ! ये तो यहीं थे… पर कितने शान्त हैं ये शत्रुघ्न जी… मैंने मन ही मन प्रणाम किया इन्हें ।
सुमित्रा माँ ने शत्रुघ्न जी को बुलाया था…
आगे आये माँ सुमित्रा के…
जी ! माँ !… सिर झुकाकर कहा था ।
शत्रुघ्न ! जाओ लंका… अब तुम्हारा सौभाग्य जाग्रत हो रहा है… लग जाओ लक्ष्मण के स्थान पर… राम की सेवा में ।
भरत भैया ! मैं चकित था… ये ही हैं माँ सुमित्रा… लक्ष्मण और शत्रुघ्न की माता… ।
सुमित्रा माँ ने कहा – क्या हुआ तो… लक्ष्मण ने सेवा करते हुए प्राणों का त्याग कर दिया तो… सेवक का धर्म है सेवा करना… और सेवा करते हुए अपने प्राणों की आहुति भी दे दे तो ये सेवक का सौभाग्य है… मुझे गर्व है कि मैं लक्ष्मण की माँ हूँ… पर अब मैं चाहती हूँ… मेरा दूसरा पुत्र शत्रुघ्न भी जाए अपने बड़े भाई की सेवा में… जाओ ! पुत्र ! जाओ… अपने बड़े भाई की सेवा में लगो… युद्ध करना रावण से… और अगर प्राण भी देना पड़े तो पीछे मत हटना ।
भरत भैया ! मैं चकित था… ये कैसा सेवा धर्म को सर्वोपरि मानने वाला रघुकुल था ।
मैंने देखा… शत्रुघ्न कुमार के मुखारविन्द में प्रसन्नता छा गयी थी… सेवा में जाने की प्रसन्नता ।
पर तभी माँ कौशल्या जी आगे आयीं…
हनुमान ! मैं बड़ी हूँ… ये सुमित्रा मुझ से छोटी है… इसलिये मर्यादा ये कहती है कि इसे मेरी बातें सुननी चाहिये और माननी भी चाहिये ।
कह देना राम से… अगर लक्ष्मण मर गया तो अयोध्या में लौट कर न आये… ।
न आये… बिना लक्ष्मण के अगर वो राम अयोध्या में आया … तो उसकी माँ कौशल्या उस राम का मुख नही देखेगी।
ये मैं स्पष्ट कह रही हूँ ।
माँ कौशल्या के वचनों को सुनकर… माँ सुमित्रा कुछ बोलने जा रही थीं… पर माँ कौशल्या ने उन्हें बोलने नही दिया ।
पर ऐसे समय में लक्ष्मण जी की अर्धांगिनी उर्मिला कैसे चुप रहतीं…
आप लोग कैसे इस तरह बोल रहे हैं… मेरे स्वामी लक्ष्मण को कुछ नही होगा… अब विधवा होगी वो… जिसके पति ने मेरे पति को शक्तिबाण मारा है… मैं क्यों विलाप करने लगी… मेरे पति ठीक हो जायेंगे… और यहाँ लौट कर आने ही वाले हैं…
पर विलाप करेगी अब उस इन्द्रजीत की पत्नी… सती होगी वो अपने पति के शव के साथ… मैं पतिव्रता हूँ… ।
इतना कहकर उर्मिला ने अपनी आँखें बन्द कर लीं…
फिर कुछ देर में आँखें खोलकर बोलीं… सुलोचना नाम है उसका ।
हाँ… वो भी पतिव्रता है… सुलोचना… अच्छी पतिव्रता है… पर उसका पति परनारियों का बलात्कारी है… इसलिये वो हारेगी और मैं जीतूंगी… क्यों कि मेरा पति परनारी को देखता तक नही है ।
इतना कहकर… वो पतिव्रता उर्मिला अपनें भवन में चली गयी थीं ।
भरत भैया ! पहली बार मैंने रघुकुल के परिवार को देखा था…
और सब एक से बढ़कर एक थे… त्याग, तपस्या, सबमें ।
शेष चर्चा कल…
Harisharan
thoughts of the day
(Great Raghukul…I saw it for the first time) Part-35
Ah God, when will I wake up.. May God’s work alone not come. (Ramcharitmanas)
God eats ego… I had heard this thing… but brother Bharat!
I also experienced this in the “Laxman unconscious episode”.
How much arrogance I had… at that time… when I went to Himalayas to take Sanjeevani… my journey from Lanka to Himalayas… many times it came to my mind that Hanuman! If you were not there today… then who would have done this work of God? Height of arrogance!
But the Lord took care of me.
Saying this… Hanuman ji suddenly fell at the feet of Bharat ji.
What are you doing, son of wind?
No… through you… the Lord saved me from arrogance…
I was carrying sanjeevani… was going in ego…
There was talk in my mind that… Hanuman is you only… who is saving the life of Laxman today… is there anyone in this universe… who can equal Hanuman… I was so inflated… in ego.
And my attention did not even go to the earth… Oh! Ayodhya was the birthplace of my idol… I didn’t even know… Yes, how can an arrogant person know where Ayodhya is!
God broke my ego through you…
You… Hanuman ji was about to speak when Bharat ji stopped him in the middle and then told what was the matter.
Hanuman ! What do I know… that the devotee of Shri Ram is going…
I was sitting comfortably in my Nandi village… then my vision went up in the sky… someone is going from the top of Ayodhya… and there is a huge mountain in his hands… Hanuman ji! It came to my mind… Somewhere nocturnal has come to attack Ayodhya…!
That’s why I shot an arrow without any fun.
You fell… you fell unconscious…
You had no consciousness… but from your mouth… Shri Ram Jai Ram Jai Jai Ram… this was coming out again and again.
I cursed myself… O son of Pawan!…
I felt guilty… Bharat! You could not be of any use to Shri Ram… and you shot more arrows at this devotee of Shri Ram… Oh!
Bharat ji told this much to Hanuman ji…
Hanuman ji said – Brother Bharat! My eyes were opened… I saw you… In front of me… There was someone in front of me with the same form and nature as my idol….
are you ok Your sweet voice reached my ears.
The sweetness in the speech was also like that of my adorable….
You are in Ayodhya… don’t worry you… you told me.
Oh ! My heart blossomed as soon as I heard from your mouthpiece that – I am in Ayodhya.
That’s why my attention went… on that Sanjeevani mountain… where is that mountain? No one can lift it except me.
I have hung in the balance… Bharat Bhaiya! You told me
Then my eyes were opened… my ego had all melted away.
“I am lifting the mountain”… What a waste of pride I had.
You left him hanging like this.
You?… I had asked you Bharat Bhaiya!
Then you replied… I am Sri Ramanuja Bharata!
Oh ! I held your feet.
Who are you?… you asked me.
While introducing myself… I had told everything in brief…
From the abduction of Maa Maithili in exile… bridge closure, then the war in Lanka… and Laxman ji fainting in that war… Sanjeevani mountain was my take.
Tears were flowing from your eyes, brother Bharat!
You cried so much that day… I remember….
Nath, I could not be of any use! You were repeating the same thing again and again.
Then you brother Bharat! Wiping his tears, he said to me… Pawan son, go to Raj Mahal!… I introduce you to the revered mother… and to the family… so that you can convey their message to the Lord.
But… I looked at the stars in the sky… Then I felt… There is still a lot of time….
At that time you had said… I will take you to Lanka in a moment, son of wind! You will sit on my arrow with a mountain.
Where would I get such an opportunity again and again… darshan of Amba Kaushalya ji… all other Shri Ram family… and the biggest thing Bharat Bhaiya! I was getting your loving company.
I was walking with you… towards the Raj Mahal.
Amba the mother of my adorable… Mother Kaushalya ji!
I prostrated at his feet.
Mother Sumitra ji… Mother of Laxman ji… I was blessed to have the touch of her feet.
But where is mother Kaikeyi…? This thought came to my mind for a moment… but then I did not pay attention to it.
Yes… why did anyone start paying attention to Mother Kaikeyi.
Urmila ji had also come… Shrutkirti and Pujya Mandavi ji… all these royal daughters-in-law were also present there.
This is Shriram devotee Hanuman! Brother Bharat! You only introduced me.
Everyone greeted me.
You guys haven’t slept, it’s midnight at this time…
My question was pointless.
Everyone wiped their tears after listening to this question of mine.
Yes… Will all of them be sleeping in the absence of Shri Ram?
Brother Bharat! You looked at me… and asked me to narrate the whole incident… I had narrated… whatever happened.
And now the situation is… that Laxman ji is unconscious… If I do not take Sanjeevani before sunrise… then.
After saying this, I became silent.
Mother Sumitra ji had come forward after listening to my words….
Shatrughan Kumar!
Oh ! He was right here… but Shatrughan ji is so calm… I bowed down to him in my heart.
Sumitra Maa had called Shatrughan ji…
Mother Sumitra came forward…
Yes ! Mother!… Said by bowing his head.
Shatrughan! Go to Lanka… Now your fortune is waking up… Get engaged in the place of Laxman… in the service of Ram.
Brother Bharat! I was amazed… this is mother Sumitra… the mother of Laxman and Shatrughan….
Sumitra Maa said – what if… Laxman sacrificed his life while serving… Service is the duty of a servant… and if he sacrifices his life while serving, then it is a good fortune for the servant… I am proud that I am the mother of Laxman… but now I want… my second son Shatrughan should also go in the service of his elder brother… go! Son ! Go… engage in the service of your elder brother… fight with Ravana… and even if you have to die, don’t back down.
Brother Bharat! I was amazed… What kind of Raghukul was this who considered service and religion above all.
I saw… there was happiness in Shatrughan Kumar’s face… the happiness of going to the service.
But only then mother Kaushalya ji came forward…
Hanuman ! I am elder… This Sumitra is younger than me… That is why Maryada says that she should listen to my words and also obey them.
Tell Ram… if Laxman dies, he should not return to Ayodhya….
If that Ram comes to Ayodhya without Lakshman… then his mother Kaushalya will not see the face of that Ram.
I am saying this clearly.
Hearing the words of Maa Kaushalya… Maa Sumitra was going to say something… but Maa Kaushalya did not allow her to speak.
But how could Urmila, the better half of Laxman ji, remain silent at such a time…
How are you people speaking like this… nothing will happen to my lord Laxman… now she will be a widow… whose husband has hit my husband with a shaktibaan… why did I start crying… my husband will be fine… and soon after coming back here The ones are…
But now that Indrajit’s wife will mourn… She must have sati with her husband’s dead body… I am a husband.
Saying this, Urmila closed her eyes.
Then after some time she opened her eyes and said… Her name is Sulochana.
Yes… she is also chaste… Sulochana… good chaste… but her husband is rapist of Parnari… so she will lose and I will win… because my husband does not even look at Parnari.
Having said this much… that chaste Urmila had gone to her house.
Brother Bharat! For the first time I saw Raghukul’s family…
And all were more than one… Sacrifice, penance, in all.
Rest of the discussion tomorrow…
Harisharan