आज के विचार
(श्रीसीता राम जी का मिलन)
भाग-39
जय रघुबीर कहहिं सब कोई…
(रामचरितमानस)
हनुमान ! अब मुझे प्रभु के पास शीघ्र ले जाने की व्यवस्था करो ।
माँ मैथिली ने मुझे मेरा कर्तव्य याद दिलाया था ।
हाँ… मैं हड़बड़ाकर माँ के चरणों से उठा…
विभीषण को मैंने सूचना भिजवाई… कि माँ को प्रभु के पास ले जाना है… आप शीघ्र इस कार्य को करें ।
पर विभीषण का तो राज्याभिषेक हो रहा था… क्यों कि आज ही प्रभु ने आज्ञा दी थी कि… विभीषण को लंका का राज्य सौंप दो… और इनका राज्याभिषेक भी आज ही हो जाए ।
विभीषण का राज्याभिषेक हो रहा था… मैंने सूचना भिजवाई पर विभीषण तक सूचना पहुंच नही पाई…
माँ ! कुछ समय और लगेगा… मैंने माँ मैथिली से प्रार्थना किया ।
पर माँ को शीघ्रता थी… प्रभु के पास जाने की… प्रभु के दर्शन करने की… ।
भरत भैया ! मैं प्रभु के पास में गया… तो प्रभु स्वयं इधर बेचैन थे… क्या हुआ मैथिली नही आयीं ?
प्रभु ! विभीषण का राज्याभिषेक हो रहा है ना… सब व्यस्त हैं…
मैंने इतना ही कहा… प्रभु समझ गए ।
थोड़ी देर में बोले… पर विभीषण की आवश्यकता क्यों है ?
पालकी… और ससम्मान उनके यहाँ से माँ निकलें तो अच्छा हो…
मैं इतना ही बोला था…
नही हनुमान ! अब हमें इस तरह बिलम्ब करना उचित नही होगा ।
पुष्पक विमान हमारे लिये दे ही दिया है विभीषण ने…
अब शीघ्र ले आओ… मैथिली को… हमें अयोध्या भी तो पहुँचना है ना !
पर मैं खड़ा ही रहा प्रभु के पास…
तब प्रभु ने मुझ से कहा… सुनो ! वैसे भी हमारी वानर सेना सब मैथिली का दर्शन करना चाहती है… पालकी में आयेंगी तो इन सबको उनके दर्शन भी तो नही होंगे ना !
जाओ तुम !… मैं प्रतीक्षा कर रहा हूँ ।
मैंने प्रणाम किया प्रभु को… और चल पड़ा ।
पर मैं जैसे ही अशोक वाटिका में पहुँचा… वहाँ अभी-अभी लंका पति बने विभीषण और उनकी पत्नी… उपस्थित थे ।
आप बहुत व्यस्त थे इसलिये मैं माँ को लेने के लिये आ गया था ।
भरत भैया ! मैंने विभीषण को देखा वहाँ… तो बहुत प्रसन्नता हुयी थी मुझे ।
अगर इस समय बिभीषण नही आते… तो मुझे बिलकुल अच्छा नही लगता… प्रभु के लिये इतना समय भी नही !
पर… ये अच्छा हुआ ।
आप ऐसे कैसे ले जायेंगे माँ मैथिली को… शिकायत भरे स्वर थे विभीषण के ।
जाओ ! माँ को ले जाकर… स्नानादि करवाओ… बहुमूल्य आभूषण जो लंका में हैं… वो सब धारण करवाओ… और सुंदर पालकी में… ये आदेश दिया था लंकेश विभीषण ने अपनी पत्नी को… कई दास-दासियाँ आ गयीं… त्रिजटा साथ में ही थी माँ के… विभीषण की पत्नी बड़ी श्रद्धा से हाथ पकड़ कर ले चलीं ।
नही… मैं मात्र स्नान करूंगी… और स्वच्छ वस्त्र ही धारण करूंगी… और ये सब भी शीघ्र… मुझे नही पहनने आभूषण ।
माँ मैथिली ने ये सब स्पष्ट कहा था ।
स्नान हुआ माँ का… पर देह में कोई आभूषण धारण नही किया ।
बस वस्त्र… वो भी अत्यंत साधारण… माँ ने धारण किये ।
मेरे प्रभु श्रीराम अभी भी वनवासी भेष में हैं… फिर मैं उनकी अर्धांगिनी कैसे सुसज्जित हो जाऊँ ।
पालकी मंगवाई थी… विभीषण ने ।
पर भरत भैया ! मैंने ही मना कर दिया…
क्यों कि माँ के दर्शन की लालसा समस्त वानर सेना की थी…
और पालकी में माँ अगर बैठतीं तो दर्शन हो पाना सम्भव नही था ।
मर्यादित पँक्ति में सब वानर सेना खड़ी हो गयी थी… मार्ग में… माँ ने पैदल चलना ही स्वीकार किया ।
सब माँ को देखते हुए आनन्दित थे… वानर सेना कभी जय जयकार लगाती… कभी माँ के चरण छूने का प्रयास करती… माँ मैथिली उन सबको अपना वात्सल्य लुटा रही थीं ।
सीता माँ की जय… माँ जानकी मैया की जय…।
मैं सब को देख रहा था… कोई वानर जब माँ के चरणों में लोटने लगता… तो उसे उठाकर मैं दूर फेंक देता था… तब सब वानर लोग हँसते थे… माँ मुझे रोकती थीं…।
वानर सेना आज झूम रही थी ।
विभीषण ने अपनी पत्नी के हाथों बहुमूल्य गहने… आभूषण… वस्त्र ये सब मंगवा कर दिए… और उनकी पत्नी माँ मैथिली के हाथों में देने लगीं ये सब… माँ मैथिली बड़े प्रेम से वानरों को ये सब लुटा रही थीं… वानर उछल-उछल कर माँ के हाथों से लूट रहे थे ।
वानर ही तो हैं भरत भैया ! कुछ ही क्षणों में वो माँ के द्वारा प्राप्त वस्त्र आभूषण सब पहन कर आ जाते थे… तब माँ उन्हें देखती थीं तो बहुत हँसती… माँ को हँसते हुए देखकर सब वानर लोग यही नाटक करने लगे थे ।
मैं माँ के पीछे चल रहा था… माँ के साथ में विभीषण की पत्नी और त्रिजटा चल रही थी…
जय-जयकार से पूरी लंका गूँज उठी थी…
आकाश में देवता लोग नगाड़े बजा रहे थे… और बीच-बीच में पुष्पों की वर्षा… क्या मन-मोहक दृश्य था ये सब ।
तभी माँ मैथिली एकाएक ठिठकीं… क्यों कि सामने राजीव नयन खड़े थे ।
बस देखती रह गयीं माँ अपने प्राण धन को… प्रभु भी एकटक देख रहे थे ।
वानरों ने जय जयकार करना शुरू कर दिया ।
धीरे-धीरे माँ आगे बढ़ीं… इधर प्रभु आगे बढ़े ।
ओह ! भरत भैया ! मर्यादा का पालन सच में कितना प्रेम शून्य होता है ना ?
प्रभु के दाहिनी ओर… अग्नि प्रज्वलित है ।
माँ मैथिली ने बिना कुछ विचार किये… तेज़ चाल से चलते हुए उस अग्नि में जाकर बैठ गयीं…
वानर लोग… नही… नही… सब चिल्लाने लगे थे ।
मेरा हृदय काँप गया था… मेरा वश चलता तो प्रभु से मैं कहता… इनके समान पवित्र इस विश्व ब्रह्माण्ड में कोई नही है… फिर अग्नि परीक्षा क्यों ?
पर ये बात मुझ से भी अच्छी तरह प्रभु जानते थे…
मैं कौन होता हूँ जो इनके प्रेम की समीक्षा करूँ… ये दोनों एक ही तो हैं ।
निकलीं माँ मैथिली अग्नि से… सुवर्ण की तरह चमकती हुयी…
उनका देह तपते हुए सुवर्ण की तरह आज लग रहा था…
उनके वस्त्र भी जले नही थे… एक दिव्य तेज़ से भरी हुयीं माँ मैथिली…।
महिमा… जिसकी मही यानि पृथ्वी माँ हैं… महिमा उन्हीं की तो है…।
प्रभु दौड़े… अपनी प्रिया के पास…
मुझे क्षमा कर देना सीते !… तुम अपवित्र हो ये मैं स्वप्न में भी नही सोच सकता पर…
माँ मैथिली ने अपनी तर्जनी प्रभु के ओष्ठ पर रख दी थी ।
ये मैथिली आपसे कभी कोई प्रश्न नही करेगी… हम दो हैं कहाँ ?
ये कहते हुए सीता राम दोनों आलिंगन बद्ध हो गए ।
बोलो सीया राम चन्द्र भगवान की जय…
सारे वानरों ने उछल-उछल कर जयकारे खूब लगाये थे ।
सबके नेत्रों में ख़ुशी के अश्रु बह रहे थे… आनंद इतना आ रहा था कि भरत भैया ! उसे कहा नही जा सकेगा ।
शेष चर्चा…
Harisharan
thoughts of the day
(Meeting of Shri Sita Ram ji) Part-39
Everyone says Jai Raghubir… (Ramcharitmanas)
Hanuman ! Now make arrangements to take me to the Lord soon.
Mother Maithili reminded me of my duty.
Yes… I got up from mother’s feet in a hurry…
I sent information to Vibhishan… that the mother has to be taken to the Lord… You should do this work immediately.
But the coronation of Vibhishan was taking place… because today itself the Lord had ordered that… hand over the kingdom of Lanka to Vibhishan… and his coronation should also happen today itself.
The coronation of Vibhishan was taking place… I sent the information but the information could not reach Vibhishan…
Mother ! It will take some more time… I prayed to Mother Maithili.
But mother was in a hurry… to go to GOD… to see GOD….
Brother Bharat! I went to the Lord… then the Lord himself was restless here… what happened, Maithili did not come?
Lord ! Vibhishan’s coronation is taking place, isn’t it… everyone is busy…
That’s all I said… God understood.
Said in a while… but why is there a need for Vibhishan?
Palki… and it would be better if the mother leaves her place with respect…
That’s all I said…
No Hanuman! Now it would not be appropriate for us to delay like this.
Vibhishan has already given Pushpak Viman for us…
Now bring her quickly… Maithili… We have to reach Ayodhya too, don’t we?
But I kept standing near the Lord…
Then the Lord said to me… Listen! Anyway, our Vanar Sena wants to see Maithili… If they come in a palanquin, then all of them will not even get to see her, will they?
You go!… I am waiting.
I bowed down to the Lord… and started walking.
But as soon as I reached Ashok Vatika… Vibhishan, who had just become the husband of Lanka, and his wife… were present there.
You were very busy so I had come to pick up mother.
Brother Bharat! I saw Vibhishan there… So I was very happy.
If Bibhishan doesn’t come at this time… I don’t feel good at all… There is not even that much time for the Lord!
But… it was good.
How will you take mother Maithili like this… Vibhishan’s voice was full of complaints.
Go ! Take the mother… get her bathed… get all the precious jewelery that is in Lanka… put on… and in the beautiful palanquin… this order was given by Lankesh Vibhishan to his wife… many maids and servants came… Trijata was with her mother … Vibhishan’s wife took him away holding his hand with great devotion.
No… I will only take bath… and wear only clean clothes… and all this soon… I do not wear jewellery.
Mother Maithili had made all this clear.
Mother’s bath took place… but she did not wear any ornaments on her body.
Just clothes… that too very simple… Mother wore them.
My Lord Shri Ram is still in the disguise of a forest dweller… then how can I be equipped as his better half.
The palanquin was ordered by Vibhishan.
But brother Bharat! I refused…
Because the whole monkey army longed to see Maa…
And if mother used to sit in the palanquin, then it was not possible to have darshan.
All the monkey army was standing in a limited line… On the way… Mother accepted to walk only.
Everyone was happy to see the mother… Sometimes the monkey army used to cheer… Sometimes it tried to touch the feet of the mother… Mother Maithili was showering her affection on all of them.
Jai Sita Maa… Jai Maa Janaki Maiya….
I was watching everyone… When a monkey started rolling at mother’s feet… I used to pick it up and throw it away… Then all the monkeys used to laugh… Mother used to stop me….
The monkey army was swinging today.
Vibhishan ordered all these valuable ornaments… jewellery… clothes from his wife… and his wife started giving them all in the hands of Maa Maithili… Maa Maithili was looting all these to the monkeys with great love… were looting from the hands of
Brother Bharat is only a monkey! In a few moments, he used to come wearing all the clothes and ornaments received by the mother… Then when the mother used to see him, she used to laugh a lot… Seeing the mother laughing, all the monkeys started doing the same drama.
I was following my mother… Vibhishan’s wife and Trijata were walking with my mother…
The whole of Lanka echoed with cheers.
Gods were playing drums in the sky… and flowers were showering in between… what a mind-blowing sight it all was.
That’s why mother Maithili suddenly stopped… because Rajeev Nayan was standing in front of her.
Mother just kept looking at her life and wealth… The Lord was also looking at her.
The monkeys started cheering.
Slowly the mother moved forward… Here the Lord moved forward.
Oh ! Brother Bharat! Adhering to the decorum really how much love is zero isn’t it?
On the right side of the Lord… the fire is burning.
Mother Maithili went to the fire and sat down without thinking anything… walking fast…
Monkey people… no… no… all started shouting.
My heart was trembling… If I had control, I would have said to God… There is no one as holy as him in this universe… Then why the fire test?
But God knew this thing better than me.
Who am I to review their love… These two are the same.
Mother Maithili emerged from the fire… shining like gold…
His body was looking like burning gold today.
Even her clothes were not burnt… Mother Maithili was full of divine energy….
Glory… Whose mother means Mother Earth… Glory belongs only to her….
Prabhu ran… to his beloved…
Please forgive me Site! I cannot imagine that you are unholy, but…
Mother Maithili had placed her forefinger on the lips of the Lord.
This Maithili will never ask you any question… Where are we two?
Saying this, both Sita and Ram embraced each other.
Say Jai Siya Ram Chandra Bhagwan.
All the monkeys started shouting loudly.
Tears of happiness were flowing in everyone’s eyes… The joy was so much that Bharat Bhaiya! He cannot be told.
Rest of the discussion…
Harisharan