एक बार निकुंज में श्याम सुंदर जी ने प्रिया जी के लिए निकुंज सजाया माला बनायीं हाथो से बीड़ा पान तैयार किया सारा निकुंज में अद्भुत सजावट प्रियतम जी ने जो सजाया था
अनुपम सुंदर पुष्पो की शय्या पुष्पो के हार, प्रिया जी का इंतेजार कर रहे है श्यामसुन्दर जीयु टक टकी लगाये हुए पथ को निहार रहे है की प्रिया जू कब आएगी
कभी ख्याबो में खो जाते की प्रिया जी आगयी है। आँखे खुलती तो देखते नहीं आई
एक पता भी गिरता तो ऐसा लगता प्रिया जी आगयी झट पट उठते व्याकुल और अधीर हो जाते।पथ पर अपने व्याकुल नयन ही बिछा दिए श्याम सुंदर जी ने,
आज निकुंज के हर एक पुष्पो में दिव्य प्रेम भर दिया श्याम सुंदर जी ने बार बार पथ पर नज़रे जाने कब आएगी मेरी प्रिया जू
अधीर व्याकुल आस भर नयनो से इंतेज़ार कर रहे थे। श्यामसुन्दर की अधीरता बढ़ती जा रही थी
प्रिया जू कु नहीं आई उन्होंने तो सन्देश भिजवाया था आएगी। श्याम सुंदर प्रेम पर
पीड़ा से व्याकुल सारी रात बीत गई नयनो को इंतेज़ार में, प्रिया जू न आ सकी
प्रिया जू आना चाहती विवशता वश ना आ पाई, श्यामसुन्दर जी का पूरा श्रंगार अश्रुओ से धूल गया।
श्याम सुंदर बोले आज से में सन्यास ले लेता हूँ।किसी भी स्त्री से नहीं मिलूँगा। मैया यशोदा जी बोले से मैया में आज से सन्यास ले रहा हु किसी भी स्त्री से नहीं मिलूँगा
भजन करूंगा अध्यात्मिक ज्ञान बताऊंगा लोगो को, वेदों का अध्ययन करूंगा, मैया बोली मेरे लाल को क्या हो गया सन्यासी बन गया
मैया बोली जैसी तेरी इच्छा
ठाकुर जी गेरुए वस्त्र धारण करके अपने शयन कक्ष में बैठ गए घर से बाहर भी नहीं निकलते
जब राधा रानी जी को पता चला की श्यामसुन्दर जी ने सन्यास ले लिया है तो बहुत चिंतित होगई अब क्या होगा
कैसे मिल पायेगे
इस पर ललिता सखी हँसी और बोली श्याम सुंदर और सन्यासी हो ही नहीं सकता
ललिता जी बोली प्रिया जू मेरे साथ चलो में आपको उस सन्यासी श्यामसुन्दर से मिलवा के लाती हू
ललिता जी और राधा रानी दोनों सन्यासी का रूप धारण करके नन्द भवन के द्वार पर गये और भिक्षा मागने लगे
भिक्षांम देहि
यशोदा मैया घर से बहार आई देखने कौन भिक्षा मागने आया है द्वार पर
देखा दो अनुपम मधुर रूप के दो सन्यासी द्वार पर खड़े है
मैया तो उनके रूप सुधा को देख कर मुग्ध हो गई
मैया पुछी क्या भिक्षा चाहिए आप दोनों को जो इच्छा है बताओ पूरी कर दूंगी
ललिता जी सन्यासी भेष में बोली मैया हमारी भिक्षा लेने का कठोर नियम है हम तभी भिक्षा लेते जब किसी के घर में कोई सन्याशी होता उसी के हाथ से अन्यथा भूखे ही रह जाते है उस दिन
मैया बोली इतना कठोर नियम
मैया सोची मेरे घर में तो कोई सन्यासी नहीं फिर इन्हे भिक्षा कैसे दू
तभी उन्हें याद आया अभी सुबह ही कान्हा ने सन्यास लिया है सन्यासी बन गया है उसे ही बुलाती हु भिक्षा देने के लिए
कान्हा से बोली देख अपने द्वार पर 2 दिव्य परम सुंदर सन्यासी आये है
उनका कठोर नियम जिसके घर में सन्यासी होगा उसी के घर से भिक्षा लेगे अन्यथा भूखे ही रहेगे
श्याम सुंदर सोचे ऎसे कोण दिव्य सन्यासी आगये देखु तो
श्याम सुंदर भिक्षा ले कर देने गए तो द्वार पर देखा प्रिया जू और ललिता जी सन्यासी भेष में आये है द्वार पर
प्रियाजी को देखते ही प्रसन चित हो गये
भूलगये की सन्यासी लिया है मैंने
रोम रोम पुलकित हो गया जी
मैया से बोले ये सन्यासी तो परम दिव्य है इनके आगमन से तो नन्द भवन पावन हो गया
बहुत ज्ञानी तेजस्वी लगते है
इनके आशीर्वाद और ज्ञान से तो मेरा परम कलयाण होगा
आपकी आज्ञा हो तो इनसे ज्ञान प्राप्त करने के लिए इनकी सेवा के इनको अपने कक्ष में ले जाऊ
मैया बोली सही कह रहा श्याम तू इनकी सेवाकर भोजन खिला चरण दबा और दिव्य ज्ञान प्राप्त कर
प्रिया प्रियतम मिलते ही ह्रदय से लग गये
श्याम सुंदर बड़े ही आदर सत्कार से दोनों दिव्य मनोहर सन्यासियो को अपने कक्ष में लेगये
ललिता जी ने प्रिया प्रीतम की आरती की
चारो दिशाओं में आनंद बरस गया
सन्यासी रूप प्रिया प्रियतम की जय हो