मंदिर में दर्शन के बाद बाहर सीढ़ी
पर थोड़ी देर क्यों बैठा जाता है ?

उत्तर :- परम्परा हैं कि
किसी भी मंदिर में दर्शन के बाद
बाहर आकर मंदिर की पैड़ी या
ऑटले पर थोड़ी देर बैठना।

क्या आप जानते हैं
इस परंपरा का क्या कारण है ?

आजकल तो लोग मंदिर की पैड़ी पर
बैठकर अपने घर/व्यापार/राजनीति
इत्यादि की चर्चा करते हैं,
परंतु यह प्राचीन परंपरा
एक विशेष उद्देश्य के लिए बनाई गई है।

वास्तव में मंदिर की पैड़ी पर बैठ कर
एक श्लोक बोलना चाहिए।
यह श्लोक आजकल के लोग भूल गए हैं।
इस लोक को मनन करें और
आने वाली पीढ़ी को भी बताएं।

श्लोक इस प्रकार है ~

अनायासेनमरणम् , बिनादेन्येनजीवनम्। देहान्ततवसानिध्यम् , देहिमे_परमेश्वरम्॥ इस श्लोक का अर्थ है ~

“अनायासेन मरणम्” अर्थात्

बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो और
कभी भी बीमार होकर बिस्तर पर न पड़ें,
कष्ट उठाकर मृत्यु को प्राप्त ना हों
चलते फिरते ही हमारे प्राण निकल जाएं।

“बिना देन्येन जीवनम्” अर्थात्

परवशता का जीवन ना हो।
कभी किसी के सहारे ना रहाना पड़े।
जैसे कि लकवा हो जाने पर
व्यक्ति दूसरे पर आश्रित हो जाता है
वैसे परवश या बेबस ना हों।
परमसत्ता की कृपा से
बिना भीख के ही जीवन बसर हो सकें।

“देहांन्त तव सानिध्यम” अर्थात्

जब भी मृत्यु हो तब भगवान के सम्मुख हो।
जैसे भीष्म पितामह की मृत्यु के समय
स्वयं ठाकुर (कृष्ण जी)
उनके सम्मुख जाकर खड़े हो गए।
उनके दर्शन करते हुए प्राण निकले।

“देहि में परमेश्वरम्”

हे परमेश्वर ऐसा वरदान हमें देना।

भगवान से प्रार्थना करते हुऐ
उपरोक्त श्र्लोक का पाठ करें।
गाड़ी, लाडी, लड़का, लड़की,
पति, पत्नी, घर, धन इत्यादि (अर्थात् संसार)
नहीं मांगना है,

यह तो भगवान आप की पात्रता के हिसाब से
खुद आपको देते हैं।
इसीलिए दर्शन करने के बाद
बैठकर यह प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए।
यह प्रार्थना है, याचना नहीं है।

याचना सांसारिक पदार्थों के लिए होती है।
जैसे कि घर, व्यापार,नौकरी, पुत्र, पुत्री,
सांसारिक सुख, धन या अन्य बातों के लिए
जो मांग की जाती है वह याचना है वह भीख है।

‘प्रार्थना’ शब्द के ‘प्र’ का अर्थ होता है ‘विशेष’ अर्थात् विशिष्ट, श्रेष्ठ और ‘अर्थना’ अर्थात् निवेदन।
प्रार्थना का अर्थ हुआ विशेष निवेदन।

मंदिर में भगवान का दर्शन
सदैव खुली आंखों से करना चाहिए,
निहारना चाहिए।

कुछ लोग वहां आंखें बंद करके खड़े रहते हैं।
आंखें बंद क्यों करना,
हम तो दर्शन करने आए हैं।
भगवान के स्वरूप का,
श्री चरणों का, मुखारविंद का,
श्रृंगार का, संपूर्ण आनंद लें,
आंखों में भर ले निज-स्वरूप को।

दर्शन के बाद जब बाहर आकर बैठें,
तब नेत्र बंद करके जो दर्शन किया हैं
उस स्वरूप का ध्यान करें।
मंदिर से बाहर आने के बाद,
पैड़ी पर बैठ कर स्वयं की आत्मा का ध्यान करें
तब नेत्र बंद करें और
अगर निज आत्मस्वरूप ध्यान में
भगवान नहीं आए तो
दोबारा मंदिर में जाएं और पुन: दर्शन करें।
RADHE RADHE JAI SHREE KRISHNA JI
VERY GOOD MORNING JI

Staircase outside after darshan in the temple
But why does he sit for a while?

Answer :- It is tradition that
After visiting any temple
coming out of the temple
Sitting for a while at Ottley.

Do you know
What is the reason for this tradition?

Nowadays people on the temple pedi
sitting at home/business/politics
discuss etc.
but this ancient tradition
Made for a specific purpose.

actually sitting on the pedi of the temple
One verse should be spoken.
Nowadays people have forgotten this verse.
contemplate this world and
Tell the next generation too.

The verse is like this

Death without effort , life without pay. The presence of the death of the body, give me the Supreme Lord. This verse means ~

“Death without effort,” that is

May we die without pain and
Never lie in bed sick,
do not die by suffering
We may lose our lives while walking.

“Life without paying,” that is

There should not be a life of dependence.
Never have to depend on anyone.
as if paralyzed
person becomes dependent on another
Don’t be dependent or helpless.
by the grace of almighty
Life can be lived without begging.

“The end of the body is Thy presence,” that is

Whenever there is death, be in front of God.
like at the time of Bhishma Pitamah’s death
Swayam Thakur (Krishna ji)
Went and stood in front of him.
He died while seeing him.

“Give me God”

O God give us such a boon.

praying to god
Recite the above verse.
car, ladi, boy, girl,
husband, wife, home, wealth etc. (i.e. the world)
do not ask,

God it’s according to your eligibility
He himself gives it to you.
That’s why after visiting
This prayer must be done while sitting.
This is prayer, not supplication.

The solicitation is for worldly things.
Such as home, business, job, son, daughter,
for worldly pleasure, money or other things
What is demanded is solicitation, it is begging.

The ‘pra’ of the word ‘prayer’ means ‘special’ meaning distinct, superior and ‘arthana’ meaning request.
Prayer meant special request.

Darshan of God in the temple
should always be done with open eyes,
Must be seen

Some people stand there with their eyes closed.
why close your eyes
We have come to visit.
of God’s form,
Shri Charan’s, Mukharvind’s,
enjoy makeup to the fullest
Fill your eyes with your own form.

After darshan, when you come out and sit,
Then you have seen by closing your eyes
Meditate on that form.
After coming out of the temple,
Meditate on your soul by sitting on the paddy
then close your eyes and
If in self-realization
if god does not come
Go to the temple again and have darshan again.
RADHE RADHE JAI SHREE KRISHNA JI
VERY GOOD MORNING JI

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