आँहों भरी आँसुओं की कराह…..
विवाह की तैयारी में मीरा को पीठी (हल्दी) चढ़ी। उसके साथ ही दासियाँ गिरधरलाल को भी पीठी करने और गीत गाने लगीं। मेड़ते में हर्ष, उत्साह समाता ही न था। मीरा तो जैसी थी, वैसी ही रही। किसी भी टोटके-टमने, नेग-चोग में उसे श्यामकुंज से खींचकर लाना पड़ता था। जो करा लो, सो कर देती । न कराओ तो गिरधरलाल के बागे, मुकुट, आभूषण सवाँरती, श्यामकुंज में अपने नित्य के कार्यक्रम में लगी रहती। खाना पीना, पहनना उसे कुछ भी न सुहाता। श्यामकुँज अथवा अपने कक्ष का द्वार बंद करके वह पड़ी-पड़ी रोती रहती। उसके विरह के पद जो भी सुनता, रोये बिना न रहता, किन्तु सुनने को, देखने को समय ही किसके पास है? मेड़ता के भाग जगे हैं कि हिन्दुआ सूरज का युवराज इस द्वार पर तोरण वन्दन करने आयेगा। उसके स्वागत में सब बावले हुए जा रहे हैं, कौन देखे-सुने कि मीरा क्या कह रही है-
तुम सुणो दयाल म्हॉरी अरजी।
भव सागर में बही जात हूँ काढ़ो तो थाँरी मरजी।
या संसार सगो नहीं कोई साँचा सगा रघुबर जी।
मात-पिता अर कुटुम कबीलो सब मतलब के गरजी।
मीरा की प्रभु अरजी सुण लो, चरण लगावो थाँरी मरजी।
वह अपनी दासियों-सखियों से पूछती कि कोई संत प्रभु का संदेशा लेकर आये हैं? उसकी आँखें सदा भरी-भरी रहतीं –
कोई कहियो रे प्रभु आवन की, आवन की मनभावन की।
आप न आवै लिख नहिं भेजे, बान पड़ी ललचावन की।
ऐ दोउ नैण कह्यो नहिं मानै नदिया बहै जैसे सावन की।
कहा करूँ कछु बस नहिँ मेरो पाँख नहीं उड़ जावन की।
मीरा कहै प्रभु कब रे मिलोगे चेरी भई तेरे दाँवन की।
वह आत्महत्या की बात सोचती-
ले कटारी कंठ चीरूँ कर लऊँ मैं अपघात।
आवण आवण हो रह्या रे नहीं आवण की बात।
किन्तु आशा मरने नहीं देती।जिया भी तो नहीं जाता, घड़ीभर चैन नहीं था-
घड़ी एक नहीं आवड़े तुम दरसण बिन मोय।
तुम ही मेरे प्राण हो कैसे जीवण होय।
धान न भावे नींद न आवै बिरह सतावे मोय।
घायल सी घूमत फिरूँ मेरो दरद न जाणे कोय॥
दिवस तो पथ उडिकतां रे रैण गमायी रोय।
प्राण गमायाँ झूरताँ रे नैण गमायाँ रोय।
जो मैं ऐसी जाणती रे प्रीति कियाँ दुख होय।
नगर ढिंढोरा फेरती रे प्रीत न कीजो कोय॥
पंथ निहारूँ डगर बुहारूँ ऊभी मारग जोय।
मीरा के प्रभु कब रे मिलोगा तुम मिलियाँ सुख होय।
कभी वह अन्तर्व्यथा से व्याकुल होकर अपने प्राणधन को पत्र लिखने बैठती। कौवे से कहती -‘तू ले जायगा मेरी पाती, ठहर मैं लिखती हूँ।’ किन्तु एक अक्षर भी लिख नहीं पाती। आँखों की झड़ी कागज को गला देती, कलम भीग जाती-
पतियाँ मैं कैसे लिखूँ लिखी ही न जाई।
कलम धरत मेरो कर कँपत हिय न धीर धराई।
मुख सो मोहिं बात न आवै नैन रहे झराई।
कौन बिध चरण गहूँ मैं सबहि अंग थिराई।
मीराके प्रभु आन मिलें तो सब ही दुख बिसराई।
जब नहीं लिखा जाता तो वह काग से कहती- ‘तू ही मेरा संदेश कह देना-
जाय प्रीतम सों यो कहि रे, थारी बिरहण धान न खायी।
बेगि मिलौ प्रभु अंतरजामी, तुम बिन रह्यो न जायी।
मीरा दासी व्याकुल फिरे पिव पिव करत बिहायी।
संदेशों म्हारा प्रीतम सों कागा तू ले जायी।
वह दिन – दिन दुबली होती जा रही थी। देह का वर्ण फीका हो गया, मानो हिमदाह से मुरझायी कुमुदिनी हो। झालीजी ने यह बात रतनसिंहजी से कही। उन्होंने वैद्यजी को भेज दिया। वैद्यजी ने परीक्षा करके बताया- ‘बाईसा को कोई रोग नहीं, केवल दुर्बलता है।’
वैद्यजी की बात पर मीरा हँस दी-
थें दरद न जाण्यो सुण वैद अनारी ।
थें जाओ वैद घर आपणे रे, थाँ ने खबर नहीं म्हारी।
दरद को थें मरम न जाणो, करक कलेजा माँही।
प्राण जाण को सोच न मोही, नाथ दरस द्यो आ री।
जीव दरसण बिन यूँ तरसे, ज्यूँ जल बिन पनवारी।
कहा कहूँ कछु कहत न आवै, सुण लो आप मुरारी।
मीरा के प्रभु कबर मिलोगा, म्हें जनम जनम सूँ थाँरी।
वैद्यजी के जाने के बाद मीरा गाने लगी-
ऐ री मैं तो प्रेम दीवानी, मेरो दरद न जाणे कोय।
सूली ऊपर सेज हमारी, सोवण किण बिध होय।
गगन मँडल पर सेज पिया की किण बिध मिलना होय।
घायलकी गति घायल जाणे जो कोई घायल होय।
जौहर की गति जौहरी जाणे और न जाणे कोय।
दरद की मारी बन बन डोलूँ बैद मिल्या नहीं कोय।
मीरा की प्रभु पीर मिटै जद बैद साँवरिया होय।
रात-रात भर जागकर दीर्घ निश्वास छोड़ती रहती। तनिक-सी आहट पर चौंक उठती —
नींद नहीं आवै री सारी रात।
करवट ले ले सेज टटोलू पिया नहीं मेरे साथ।
सगली रैन मोहि तड़फत बीती सोच सोच जिया जात।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर आण भयो परभात।
ज्यों-त्यों कर तनिक झपकी आई थी कि कोई खटका हुआ। वह चौंककर जग गयी। सिर उठाकर देखा, कुछ भी तो न था। अचानक ही चौंक गयी कि यह सुगन्ध कहाँ से आ रही है? केसर चन्दन की गंध से महल गमगमा उठा था। मीरा व्याकुल हो उठी- ‘यह क्या किया मैंने? प्रीतम आये और मुझे बैरिन निंदिया आ गयी? अब कहाँ पाऊँ उन्हें?’
‘बाईसा ! बाईसा हुकम!’- केसर दौड़ी हुई आयी। उसका मुख प्रसन्नता से खिला था और दौड़ने के कारण साँस चढ़ रही थी।
‘जिन्होंने आपको गिरधरलाल बख्शे, वे संत पधारे हैं।’
‘कहाँ?’– मीराने उतावली से पूछा। ‘वे तो नगरके मन्दिरमें हैं।’
केसर ने कहा।
‘उन्हें राजमन्दिर में बुला ला केसर! मैं तेरा अहसान मानूँगी।’
‘अहसान क्या बाईसा हुकम! मैं तो आपकी चरणरज हूँ। मैं घर से आ रही थी तो उन्होंने मुझसे सब बात कहकर यह प्रसाद तुलसी दी और कहा कि मुझे एक बार प्रभु के दर्शन करा दो। कहते-कहते उनकी आँखों से आँसू बहने लगे। बाईसा! उनका नाम भी गिरधरदास है।’
मीरा उठकर महलों में गयी। किसी से भाई जयमल को बुलवाया और सारी बात कही– ‘उन संत को आप श्यामकुंज में ले पधारिये भाई!’
‘जीजा! किसी को ज्ञात हुआ तो गजब हो जायगा। आजकल जो भी संत पधारते हैं, सभी को राजपुरोहितजी नगर के बीचवाले मन्दिर में ठहराते हैं।
क्रमशः
Moans of tears filled with eyes….
Peethi (turmeric) was offered to Meera in preparation for marriage. Along with that, the maidservants also started singing songs and paying obeisance to Girdharlal. There was no limit to the joy and enthusiasm in Medte. Meera remained as she was. He had to be dragged from Shyamkunj by any trick or trick. Whatever you get done, she would have done it. If you didn’t get it done, she would have been engaged in her routine program in Shyamkunj, wearing Girdharlal’s robe, crown, jewellery. He doesn’t like eating, drinking or wearing anything. By closing the door of Shyamkunj or her room, she used to cry lying down. Whoever listens to his words of separation, does not remain without crying, but who has time to listen and see? Merta’s part is awake that the prince of Hindu sun will come to this door to worship the pylon. Everyone is going crazy to welcome her, who will see and hear what Meera is saying-
You listen Dayal Mahori Arji. May I flow in the ocean, if you want to brew, then you will. Oh, don’t be close to the world, no one is close to you, Raghubar ji. Mother-father and Kutum Kabilo all means thunder. Lord listen to Meera’s request, touch my feet as per your wish.
She would ask her maids and friends whether any saint had brought the message of the Lord. His eyes were always full
Somebody say O Lord of Aawan, of pleasing Aawan. You didn’t come, you didn’t write, you didn’t send, I got tired of temptation. Hey two eyes, don’t say, I don’t mean rivers flow like monsoon. Where should I say something, I can’t control my eyes. Where is Meera, Lord, when will you meet the cherry brother of your garden.
She contemplates suicide
Take the knife and cut my throat. Coming is coming, not coming.
But hope does not let me die.
There is not one clock, you come without darshan without moy. You are my life, how can I live. Paddy na bhave sleep na aavai birah satave moy. If I roam around like a wounded person, no one knows my pain. Day to path Udiktan re Rain Gamayi Roy. I lost my life and cried after losing my eyes. I know that I love you in such a way that it will be sad. No one loves the city. Panth Niharoon Dagar Buharoon Ubi Marg Joy. When will you meet Meera’s Lord, you will get happiness.
Sometimes, distraught with heartache, she would sit down to write letters to her beloved. Saying to the crow – ‘You will take my leaf, wait while I write.’ But cannot write even a single letter. The flick of the eye would have corroded the paper, the pen would have got wet.
Husbands, how should I write, it should not be written. My pen and earth trembled and did not have patience. The mouth is not in love with the eyes. I bowed to all my limbs. When Meera’s Lord comes, all sorrows are forgotten.
When it is not written, she says to the paper- ‘You only tell my message- Where do you go, dear friend, you did not eat paddy without food. Begi Meet Prabhu Antarjaami, I can’t live without you. Meera maid wandered around distraught and married. You will take me with my beloved in the messages.
She was getting thinner day by day. The color of the body has become pale, as if it is a withered lily of the iceberg. Jhaliji said this to Ratan Singhji. He sent Vaidyaji. Vaidyaji examined and told- ‘Baisa has no disease, only weakness.’
Meera laughed at Vaidyaji’s words.
Then don’t know the pain, listen to Vaid Anari. Tha jao Vaid ghar aapne re, Tha ne khar nahi mhari. Don’t know the heart of the pain, mother’s heart. Pran jaan ko soch nahi mohi, nath dars diyo aari ri. Without seeing life, you yearn like water without panwari. Where should I say, I don’t want to say anything, listen Murari. Meera’s Lord’s grave will be found, I have been there for births and births.
Meera started singing after Vaidyaji’s departure.
Hey, I am a lover of love, no one knows my pain. The crucifixion is ours, why does Sovan get separated. There is no way to meet sage Piya on the sky. The speed of the injured is injured. Whoever is injured. The jeweler knows the speed of the jeweler and no one knows. Don’t find anyone in bed, I will become a victim of pain. Meera’s Lord’s pir can be erased.
Staying awake all night long, she used to exhale long. Startled at the slightest sound
Couldn’t sleep the whole night. Take a turn and don’t drink with me. Sagli rain mohi tadfat beeti soch soch soch jiya jaat. Meera’s Lord Girdhar Nagar Aan Bhayo Prabhat.
As soon as I had a little nap, someone got upset. She woke up startled. He raised his head and saw that nothing was there. Suddenly got shocked that where is this fragrance coming from? The palace was filled with the smell of saffron sandalwood. Meera got worried – ‘What have I done? Pritam came and I fell asleep, Barin? Where can I find them now?’
‘Baisa! Baisa Hukam!’- Kesar came running. His face was beaming with happiness and he was out of breath from running. ‘The saint who spared you Girdharlal has come.’ ‘Where?’- Miran asked impatiently. ‘They are in the temple of the city.’ Saffron said. ‘Call them to the Raj Mandir La Kesar! I will accept your favor. ‘Ahsan kya baisa hukam! I am at your feet. When I was coming from home, he told me everything and gave me this Prasad Tulsi and asked me to see the Lord once. While saying this, tears started flowing from his eyes. Twenty two! His name is also Girdhardas.
Meera got up and went to the palaces. Someone called Bhai Jaimal and said the whole thing – ‘Brother, take that saint to Shyamkunj!’ ‘brother in law! It would be amazing if someone came to know. Nowadays all the saints who visit, Rajpurohitji makes them stay in the temple in the middle of the city. respectively