मीराबाई (Meerabai)

मीरा चरित भाग- 94

मेरी दृष्टि वक्ष पर टिकी और तनिक भी प्रतिकार न करते देखकर उन्होंने भी अपने वक्ष की ओर माथा झुकाया-

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मीरा चरित भाग- 93

ऐसी बात सोच कर आप तनिक भी दु:खी न हों।हम सभी एक ही प्रभु की संतान हैं और उन्हें हमारे

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मीरा चरित भाग- 95

‘ए बँदरिया दूर हो’- उन्होंने चिल्लाकर कहा।‘क्यों तुम्हारे बाप का राज है यहाँ?’- मैने कहा।‘जरा इधर आ, फिर बताऊँ कि

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मीरा चरित भाग- 91

यह थोड़ी सी दक्षिणा है। इसे स्वीकार करने की कृपा करें।’- मीरा ने उन्हें भोजन कराकर तथा दक्षिणा देकर विदा

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मीरा चरित भाग- 92

आगे आगे मुकुंद दास जी और प्रताप सिंह जी ने, राजसी वस्त्रों से सजे, कमरबंद में दो दो तलवारें कटारें

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मीरा चरित भाग- 90

गंगा दौड़कर कलम कागज ले आई।‘अभी की अभी’- मीरा ने हँसकर कहा।‘हाँ हुकुम, शुभ काम में देरी क्यों?’‘ला दे, पागल

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मीरा चरित भाग- 89

उमड़ घुमड़ कर कारी बदरियाँ, बरस रही चहुँ ओर।अमुवाँ की डारी बोले कोयलिया, करे पपीहरा शोर॥चम्पा जूही बेला चमेली, गमक

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मीरा चरित भाग-87

‘दीवानजी तुमसे इतने रूष्ट क्यों हैं बीनणी? नित्य प्रति तुम्हें मारने के लिए कोईन कोई प्रयास करते ही रहते हैं।

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मीरा चरित भाग- 88

‘चल ! कहाँ चलना है?’ कहते हुये मेरा हाथ पकड़ कर वे चल पड़े।सखी वहाँ कदम्ब की डाली पर बँधे

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