।। हरे कृष्ण ।।
तुम अकेले नहीं हो, सारा अस्तित्व तुम्हारे पीछे गुंथा है। ताने-बाने हैं जीवन के; कोई व्यक्ति अकेला नहीं है, और तुम जो भी कर रहे हो वह सिर्फ तुम्हारे लिए ही नहीं है। तुम्हारा कृत्य तुम्हारे पूरे अतीत की कथा भी कहेगा।
हिंदूधर्म में है कि प्रत्येक व्यक्ति एक ऋण लेकर चल रहा है- पिता का ऋण, माता का ऋण, गुरु का ऋण। वह ऋण यह है कि अगर तुम खिल गए वास्तविकता से तो तुम्हारे माता और पिता और तुम्हारी अनंत काल की परंपरा तुममें खिल कर प्रफुल्लित होगी। तुम जब तक न खिलोगे, वे भी पूरी तरह न खिल पाएंगे। क्योंकि वे तुममें समाविष्ट हैं। उनका खिलना भी अधूरा-अधूरा ही रहेगा।
एक बुनियादी कारण यह है कि- तुम जब तक मुक्त न हो जाओगे, तुम्हारे पिता और पिता के पिता और पिता के पिता बंधे हैं। तुम्हारी मुक्ति उनकी मुक्ति भी बनेगी। व्यक्ति अकेला नहीं है, बंटा हुआ नहीं है, कटा हुआ नहीं है। हम सब एक बड़े ताने-बाने के धागे हैं।
जब कोई एक व्यक्ति अपने भीतर गहरा उतरता है और अपनी जड़ों से संबंध जोड़ लेता है और अपने स्वभाव के साथ एकरस हो जाता है, जब किसी व्यक्ति का चरित्र उसके अंतस से जगता है, तो चरित्र प्रामाणिक होता है, आथेंटिक होता है। नहीं तो पाखंड होता है।
अगर एक व्यक्ति भी प्रामाणिक चरित्र को उपलब्ध हो जाता है, तो उसके आधार पर उसका परिवार प्रामाणिक क्षेत्र की तरफ बढ़ सकता है। क्योंकि हम अलग-अलग नहीं हैं।
अगर परिवार चरित्र को उपलब्ध हुआ हो तो उसके भीतर पैदा हुआ व्यक्ति दुश्चरित्रता की तरफ जाने में बड़ी कठिनाइयां पाएगा, और चरित्र की तरफ जाने में बड़ी सुगमता पाएगा।
।। कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।।