मनुष्य का सबसे बड़ा मित्र उसका अन्तर्मन है

।। राम राम ।।

मनुष्य का सबसे बड़ा मित्र उसका अन्तर्मन है। यह उसकी अंदरूनी शक्ति है, जो उसे कुछ इश्वरीय सन्देश देती है।

महान वैज्ञानिक थॉमस एडीसन ने कहा है, “तुम दुनिया की सुनोगे तो बिखर जाओगे, अपने अन्दर की सुनोगे तो उबर जाओगे।” यही सच्ची मित्रता है।

सत्य का अर्थ है : शाश्वत। माया का अर्थ है : क्षणभंगुर। सागर में लहरें उठती हैं, मिटती हैं; बनती हैं, गिरती हैं, आती हैं, जाती हैं- सागर सदा है। अगर शांति चाहिए, उसे पकड़ो जो सदा है। उसे गहो, जो शाश्वत है। क्षणभंगुर को पकड़ोगे, अशांत होओगे। क्योंकि तुम पकड़ भी न पाओगे और वह गया।

संतो, आवै जाय सु माया।
आदि न अंत मरै नहिं जीवै, सो किनहूं नहिं जाया।।

यह माया सिर्फ झूठा सपना है। न तो इसका कोई प्रारंभ है, न कोई अंत है। न इसका कोई जन्म है, न इसका कोई जीवन है। यह केवल कल्पना जाल है। रात में सपना कहाँ से पैदा होता है? फिर सुबह कहाँ विलीन हो जाता है? न पैदा होता है, न विलीन होता है। खयाल मात्र है। उसका अस्तित्व ही नहीं है।

आदि न अंत मरै नहिं जीवै, सो किनहूं नहिं जाया।।

लोक असंखि भये जा माहिं, सो क्यँ गरभ समाया।
बाजीगर की बाजी ऊपर, यहु सब जगत भुलाया।।

यह माया ऐसी है, जैसे जादूगर का जादू। नहीं हैं, और चीजें दिखायी पड़ने लगती हैं। एक भ्रांति खड़ी हो जाती है।

बाजीगर की बाजी ऊपर, यहु सब जगत भुलाया।।

सुन्न सरूप अकलि अविनासी, पंचतत्त नहिं काया।

ये जो पाँच तत्त्वों से मिलकर तुम्हारी देह बनी है, यह तुम नहीं हो। “सुन्न सरूप अकलि अविनासी।’ तुम तो वह पूर्ण हो, जो अविनाशी है, शाश्वत है, सनातन है, सदा है। उसका स्वरूप क्या है? शून्य स्वरूप है उसका। सुन्न सरूप!

तुम्हारे भीतर दो अवस्थाएँ हैं। एक तो मन की तरंगित अवस्था। वही माया है। फिर एक मन की अतरंगित अवस्था, शून्य स्वरूप, वही राम है। जब मन बिल्कुल निस्पंद रहित हो जाता है, जब मन सारे स्पंदन से मुत्त हो जाता है, जब मन में कोई विचार नहीं उठते, जब मन सिर्फ एक रित्त मंदिर रह जाता है- न कोई आता है न जाता है- वही है राम का स्वरूप।

वही है आनंद। वही है मोक्ष। उसे पाकर ही तुम्हें सच्चा साम्राज्य मिलता है। फिर तुमने कुछ कमाया, तुम संपत्तिशाली हुए। जब तक वह न पा लो, तब तक समझना कि जो तुम कमा रहे हो, वह विपत्ति है, संपत्ति नहीं।

सुन्न सरूप अकलि अविनासी, पंचतत्त नहिं काया।
त्यँ औतार अपार असति ये, देखत दृष्टि बिलाया।।

और अगर गौर से देखोगे अपने भीतर विचारों के जाल को, तो ये तुम्हारे देखते ही विलीन हो जाएँगे। यह कुंजी की बात है। यह ध्यान की कुंजी है। निरीक्षण-मात्र काफी है।

झूठ को मारने के लिए तलवारें नहीं उठानी पड़तीं। झूठ को मारने के लिए आग नहीं लगानी पड़ती। झूठ को मारने के लिए बस एक काम काफी है : साक्षी हो जाओ, जागकर देख लो, सत्य को समझ लो.!

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