।। जय माँ जगदम्बिका ।।
तव च का किल न स्तुतिरम्बिके
सकलशब्दमयी किल ते तनु:।
निखिलमूर्तिषु मे भवदन्वयो
मनसिजासु बहि:प्रसरासु च।।
इति विचिन्त्य शिवे शमिताशिवे
जगति जातमयत्नवशादिदम्।
स्तुतिजपार्चनचिन्तनवर्जिता
न खलु काचन कालकलास्ति मे।।
अर्थ-
हे जगदम्बिके ! संसार में कौन- सा वाङ्मय ऐसा है, जो तुम्हारी स्तुति नहीं है; क्योंकि तुम्हारा शरीर तो सकल शब्दमय है। हे देवि ! अब मेरे मन में संकल्प विकल्पात्मक रूप से उदित होनेवाली एवं संसार में दृश्य रूप से सामने आनेवाली सम्पूर्ण आकृतियों में आपके स्वरूप का दर्शन होने लगा है।
हे समस्त अमंगलध्वंसकारिणि कल्याणस्वरूपे शिवे ! इस बात को सोचकर अब बिना किसी प्रयत्न के ही सम्पूर्ण चराचर जगत में मेरी यह स्थिति हो गयी है कि मेरे समय का क्षुद्रतम अंश भी तुम्हारी स्तुति, जप, पूजा अथवा ध्यान से रहित नहीं है। अर्थात् मेरे सम्पूर्ण जागतिक आचार-व्यवहार तुम्हारे ही भिन्न-भिन्न रूपों के प्रति यथोचित रूप से व्यवहृत होने के कारण तुम्हारी पूजा के रूप में परिणत हो गये हैं।
।। श्रीदुर्गायै नमः ।।
, Jai Maa Jagadambika.
And what is not your praise, O Ambike? Your body is full of all words. Your association with me in all idols in the mind and in the external expansions.
Thinking thus, Shiva, Shamita Shiva This is because of the efforts made in the world. devoid of praise, chanting, worship and contemplation I don’t have any art of time.
Meaning- Hey Jagadambike! Which book is there in the world which is not your praise; Because your body is full of words. O Goddess! Now, I have started seeing your form in all the shapes that emerge alternately in my mind and appear visually in the world.
O Lord Shiva who is the destroyer of all evils! Thinking this, now, without any effort, my position in the entire living world has become such that not even the smallest part of my time is devoid of your praise, chanting, worship or meditation. That is, my entire worldly conduct and behavior have transformed into your worship due to my behaving appropriately towards your different forms.
।। SHRI DURGA OM