सुदामाजीकी निष्काम भक्ति


जहाँ प्रेम है, वहाँ लेनेकी इच्छा नहीं होती है। वहाँ तो सब कुछ देनेकी इच्छा होती है। भगवान्‌की भक्ति भगवान्‌के लिये करो। भक्तिका फल भोग नहीं है, भक्तिका फल भगवान् हैं। सुदामा द्वारकानाथके पास माँगने नहीं गये थे। मुठ्ठीभर चिवड़ा ले करके गये थे। उनके पवित्र हृदयमें ऐसी भावना थी कि यह श्रीकृष्णको अर्पण करना है।

भगवान् पूछते हैं- ‘मित्र, तेरा संसार कैसा चल रहा है ?’ सुदामदेवने विचार किया-दुःख मेरे पापका फल है, मैंने पाप किया, इसीलिये मैं दरिद्री हुआ हूँ। मैं प्रभुको त्रास देनेके लिये नहीं आया हूँ। अपना स्वार्थ सिद्ध करनेके लिये, अपने सुखके लिये प्रभुको त्रास देना भक्ति नहीं है। दुःख मेरे पापका फल है। मैंने पाप किया है, इसलिये मैं दुःखी हूँ। मानव पाप करता है, तब हँसता है। किंतु पापकी सजा जब होती है, तब जीव रोता है।

श्रीकृष्ण सुदामदेवसे पूछते हैं- ‘मित्र, तेरा संसार कैसा चल रहा है ?’ पन्द्रह-बीस दिनसे वे भूखे थे। शरीरकी सभी हड्डियाँ दिखती थीं। अति दुखी थे। तब भी सुदामदेवने प्रभुके पास कुछ माँगा नहीं। सुदामदेवने विचार किया कि मेरा कन्हैया अति कोमल है। इतना बड़ा हुआ है, पर उसका स्वभाव बालकके जैसा है। मुझे देखकर रोने लगा।

सुदामाको देखते ही द्वारकानाथकी आँखोंमें आँसू आ जाते हैं- मेरा मित्र है, इसकी ऐसी दशा हो गयी है! सुदामा सोचतेहैं- कन्हैया तो देखकर रोने लगा ! उसका हृदय अति कोमल है। मैं अपने प्रभुको त्रास देने नहीं आया हूँ।

श्रीकृष्ण सुदामदेवको बार-बार पूछते हैं कि संसारमें कोई अड़चन तो नहीं है- संसार कैसा चल रहा है ? सुदामदेव कहते हैं- ‘आनन्दमय चल रहा है। किसी भी वस्तुकी जरूरत नहीं है।’

सुदामदेव माँगनेके लिये नहीं गये हैं, देनेके लिये गये हैं। सुदामाने अपना सर्वस्व दिया है। सुदामदेव यदि कुछ माँगते तो जो माँगते, उतना ही भगवान् देनेवाले थे। सुदामदेवने माँगा नहीं।

भगवान्‌की भक्ति, भगवान्‌के लिये करो। भक्तिका फल संसारका सुख नहीं है। भक्ति भोगके लिये मत करो। भगवान्‌की भक्ति भगवान्के लिये करो। जो बहुत प्रेमसे पूजा करता है, भगवन्नामका जप करता है, भगवान्‌का स्मरण करता है – उसको भगवान्‌का आनन्द मिलता है। उसको ऐसा लगता है कि भगवान् मेरे साथ हैं। उसके जीवनमें सुख- दुःख, मान-अपमानका कैसा भी प्रसंग आये, उसका असर मनके ऊपर बहुत नहीं होता है।

सुख आता है, सुख जाता है। दुःख आता है, दुःख कायम नहीं रहता है। संसारके सुख-दुःख बादलके जैसे होते हैं। लोग बादलको नहीं देखते हैं, सूर्यका दर्शन करते हैं। सुख-दुःख बादलके जैसे हैं। भगवान्‌की भक्ति भगवान्‌के लिये करो। जो प्रेमसे भगवान्‌की सेवा करता है, उसको ऐसा लगता है कि भगवान् उसके साथ हैं।



Where there is love, there is no desire to take. There is a desire to give everything. Worship God for God’s sake. The fruit of devotion is not enjoyment, the fruit of devotion is God. Sudama did not go to Dwarkanath to ask. Had gone with a handful of chivda. There was a feeling in his pure heart that he had to offer it to Shri Krishna.

God asks- ‘Friend, how is your world going?’ Sudamdev thought – sorrow is the result of my sin, I have sinned, that is why I have become poor. I have not come to trouble the Lord. To torment God to satisfy one’s selfishness or for one’s pleasure is not devotion. Sorrow is the result of my sin. I have sinned, that is why I am sad. When a human commits a sin, he laughs. But when sin is punished, the soul cries.

Shri Krishna asks Sudamdev- ‘Friend, how is your world going?’ He was hungry for fifteen-twenty days. All the bones of the body were visible. Were very sad. Even then Sudamdev did not ask for anything from the Lord. Sudamdev thought that my Kanhaiya is very gentle. He has grown so much, but his nature is like that of a child. He started crying after seeing me.

Tears well up in Dwarkanath’s eyes as soon as he sees Sudama – He is my friend, his condition has become like this! Sudama thinks- Kanhaiya started crying after seeing him! His heart is very soft. I have not come to trouble my Lord.

Shri Krishna repeatedly asks Sudamdev whether there is any problem in the world – how is the world going? Sudamdev says- ‘It is going on happily. There is no need for anything.

Sudamdev has not gone to ask, he has gone to give. Sudama has given his all. If Sudamdev had asked for anything, God would have given him whatever he asked for. Sudamdev did not ask.

Worship God, do it for God. The fruit of devotion is not worldly happiness. Don’t do devotion for enjoyment. Worship God for God’s sake. One who worships with great love, chants God’s name, remembers God – he gets the joy of God. He feels as if God is with him. Whatever incident of happiness, sorrow, honor or dishonor comes in his life, it does not have much impact on his mind.

Happiness comes, happiness goes. Sorrow comes, sorrow does not last. The joys and sorrows of the world are like clouds. People do not see the clouds, they see the sun. Happiness and sorrow are like clouds. Worship God for God’s sake. One who serves God with love, feels that God is with him.

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