
भगवान श्रीकृष्ण का उत्तंक मुनि को अपने विश्वरूप के दर्शन कराना
कृष्णावतार में भगवान श्रीकृष्ण की ऐश्वर्य-लीलाओं के अनेक प्रसंग आते हैं, जिनमें भक्तों को उनकी ‘भगवत्ता’ का ज्ञान हुआ ।
कृष्णावतार में भगवान श्रीकृष्ण की ऐश्वर्य-लीलाओं के अनेक प्रसंग आते हैं, जिनमें भक्तों को उनकी ‘भगवत्ता’ का ज्ञान हुआ ।
सखियाँ दम्पत्ति के इस एकान्त में व्यवधान न डालने के विचार से कक्ष से चुपचाप जा चुकी थीं। रात्रि के
छीन लो राजकन्या’ -राजाओं, राजकुमारों का एक बड़ा समूह क्रोध से चिल्लाया। वे अपने धनुष चढ़ाने लगे। ‘कौन हैं ये
माता ने पुत्री से पूछ देखा था। उनकी कन्या इतनी लज्जाशीला थी कि विवाह की चर्चा से ही भागकर कहीं
‘ये चतुर्भुज हैं। चार वृषभों को श्रृंग पकड़कर रोक ले सकते हैं, किन्तु सात……!’सेवकों, सभासदों के हृदय धड़कने लगे लेकिन
जन-रुचि अद्भुत होती है। जनता किसी से उपकार-अपकार अधिक दिन स्मरण नहीं रखती। व्यक्ति का वर्तमान कृत्य ही जन-मन का
उसके लिये श्रीकृष्णचन्द्र की इच्छा ही सब कुछ। श्रीकृष्ण की बात वेदवाक्य। श्रीकृष्ण का संकेत सुभद्रा का जीवन। वह तो
अच्छा, ये परिहास कर रहे थे?’ मूर्च्छा दूर हुई शीतल स्निग्ध प्रेम स्पर्श पाकर। अंक में ही अपने को पाकर
मार्गावरोध करने वालों की संख्या, उनको मिला समय, उनका व्यूह, मार्ग की उनके अनुकूल स्थिति, सब ठीक किन्तु गाण्डीवधारी की
श्रीकृष्णचन्द्र द्वारिका में नहीं हैं। जरासन्ध तथा अनेक दूसरे शत्रु हैं यादवों के। अतः पुरी को छोड़कर श्रीसंकर्षण कहीं जा