एक अति प्राचीन कथा है। घने वन में एक तपस्वी साधनारत था–आंख बंद किए सतत प्रभु-स्मरण में लीन। स्वर्ग को पाने की उसकी आकांक्षा थी; न भूख की चिंता थी, न प्यास की चिंता थी। एक दीन-दरिद्र युवती लकड़ियां बीनने आती थी वन में। वही दया खाकर कुछ फल तोड़ लाती, पत्तों के दोने बना कर सरोवर से जल भर लाती, और तपस्वी के पास छोड़ जाती। उसी सहारे तपस्वी जीता था। फिर धीरे-धीरे उसकी तपश्चर्या और भी सघन हो गई–फल बिना खाए ही पड़े रहने लगे; जल दोनों में पड़ा-पड़ा ही गंदा हो जाता–न उसे याद रही भूख की और न प्यास की। लकड़ियां बीनने वाली युवती बड़ी दुखी और उदास होती, पर कोई उपाय भी न था।
इंद्रासन डोला; इंद्र चिंतित हुआ; तपस्या भंग करनी जरूरी है; सीमा के बाहर जा रहा है यह व्यक्ति–क्या स्वर्ग के सिंहासन पर कब्जा करने का इरादा है?
लेकिन कठिनाई ज्यादा न थी, क्योंकि इंद्र मनुष्य के मन को जानता है। स्वर्ग से जैसे एक श्वास उतरी–सूखी, दीन-दरिद्र, काली-कलूटी वह युवती अचानक अप्रतिम सौंदर्य से भर गई; जैसे एक किरण उतरी स्वर्ग से और उसकी साधारण सी देह स्वर्णमंडित हो गई। पानी भर रही थी सरोवर से तपस्वी के लिए, अपने ही प्रतिबिंब को देखा, भरोसा न कर पाई–साधारण स्त्री न रही, अप्सरा हो गई; खुद के ही बिंब को देख कर मोहित हो गई! तपस्वी की सेवा उसने करनी जारी रखी।
फिर एक दिन तपस्वी ने आंख खोलीं। इस वनस्थली से जाने का समय आ गया–तपश्चर्या को और गहन करना है, पर्वत-शिखरों की यात्रा पर जाना है। उसने युवती से कहा कि मैं अब जाऊंगा, यहां मेरा कार्य पूरा हुआ। अब और भी कठिन मार्ग चुनना है, स्वर्ग को जीत कर ही रहना है।
युवती रोने लगी। उसकी आंख से आंसू गिरने लगे। उसने कहा, मैंने कौन सा दुष्कर्म किया कि मुझे अपनी सेवा से वंचित करते हो? और तो कुछ मैंने कभी मांगा नहीं!
तपस्वी ने सोचा, उस युवती के चेहरे की तरफ देखा। ऐसा सौंदर्य कभी देखा नहीं था। स्वप्न में भी ऐसा सौंदर्य कभी देखा नहीं था। युवती पहचानी भी लगती थी और अपरिचित भी लगती थी। रूप-रेखा तो वही थी, लेकिन कुछ महिमा उतर आई थी। अंग-प्रत्यंग वही थे, लेकिन कोई स्वर्ण-आभा से घिर गए थे। जैसे कोई गीत की कड़ी, भूली-बिसरी, फिर किसी संगीतज्ञ ने बांसुरी में भर कर बजाई हो।
तपस्वी बैठ गया। उसने पुनः आंख बंद कर लीं। वह रुक गया। उस रात युवती सो न सकी–विजय का उल्लास भी था और साधु को पतित करने का पश्चात्ताप भी। आनंदित थी कि जीत गई और दुखी थी कि किसी को भ्रष्ट किया, किसी के मार्ग में बाधा बन गई, और कोई जो ऊर्ध्वगमन के लिए निकला था, उसकी यात्रा को भ्रष्ट कर दिया। रात भर सो न सकी–रोई भी, हंसी भी। सुबह निर्णय लिया, आकर तपस्वी के चरणों में झुकी और कहा, मुझे जाना पड़ेगा, मेरा परिवार दूसरे गांव जा रहा है। तपस्वी ने आशीर्वाद दिया कि जाओ, जहां भी रहो, खुश रहो, मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है।
युवती चली गई। वर्ष बीते, तपस्या पूरी हुई। इंद्र उतरा, तपस्वी के चरणों में झुका और कहा, स्वर्ग के द्वार स्वागत के लिए खुले हैं।
तपस्वी ने आंखें खोलीं और कहा, स्वर्ग की अब मुझे कोई जरूरत नहीं! इंद्र तो भरोसा भी न कर पाया कि कोई मनुष्य और कहेगा कि स्वर्ग की मुझे अब कोई जरूरत नहीं। इंद्र ने सोचा, तब क्या मोक्ष की आकांक्षा इस तपस्वी को पैदा हुई है। पूछा, क्या मोक्ष चाहिए?
तपस्वी ने कहा, नहीं, मोक्ष का भी मैं क्या करूंगा।
तब तो इंद्र चरणों में सिर रखने को ही था कि यह तो आत्यंतिक बात हो गई, तपश्चर्या का अंतिम चरण हो गया, जहां मोक्ष की आकांक्षा भी खो जाती है। पर झुकने के पहले उसने पूछा, मोक्ष के पार तो कुछ भी नहीं है, फिर तुम क्या चाहते हो?
उस तपस्वी ने कहा, कुछ भी नहीं, वह लकड़ियां बीनने वाली युवती कहां है, वही चाहिए।
हंसना मत; आदमी की ऐसी कमजोरी है। सोचना, हंसना मत; क्योंकि पृथ्वी का ऐसा प्रबल आकर्षण है। कहानी को कहानी समझ कर टाल मत देना, मनुष्य के मन की पूरी व्यथा है। और ऐसा मत सोचना कि ऐसा विकल्प उस तपस्वी के सामने ही था कि युवती थी, स्वर्ग था, दोनों के बीच चुनना था। तुम्हारे सामने भी विकल्प वही है; सभी के सामने विकल्प वही है–या तो उन सुखों को चुनो जो क्षणभंगुर हैं, या उसे चुनो जो शाश्वत है; या तो शाश्वत को गंवा दो क्षणभंगुर के लिए, या क्षणभंगुर को समर्पित कर दो शाश्वत के लिए। और अधिकतम लोग वही चुनेंगे, जो तपस्वी ने चुना। ऐसा मत सोचना कि तुमने कुछ अन्यथा किया है। चाहे इंद्र तुम्हारे सामने खड़ा हुआ हो या न खड़ा हुआ हो; चाहे किसी ने स्पष्ट स्वर्ग और पृथ्वी के विकल्प सामने रखे हों, न रखे हों–विकल्प वहां हैं। और जो एक को चुनता है, वह अनिवार्यतः दूसरे को गंवा देता है। जिसकी आंखें पृथ्वी के नशे से भर जाती हैं, वह स्वर्ग के जागरण से वंचित रह जाता है।
💠💠ओशो💠💠
There is a very ancient story. There was an ascetic meditating in a dense forest – with his eyes closed, absorbed in the remembrance of God continuously. He aspired to reach heaven; There was no worry of hunger, nor was there any worry of thirst. A poor girl used to come to the forest to collect wood. Out of pity, she would pluck some fruits, make a bundle of leaves, fill it with water from the lake, and leave it with the ascetic. The ascetic survived with that support. Then gradually his penance became more intense – the fruits started lying uneaten; The water in both of them would become dirty while lying there – he neither remembered hunger nor thirst. The girl collecting wood would have been very sad and sad, but there was no solution.
Indrasana Dola; Indra became worried; It is necessary to break the penance; This person is going beyond the limits–does he intend to usurp the throne of heaven?
But the difficulty was not much, because Indra knows the mind of man. As if a breath had descended from heaven, that dry, poor, dark-skinned girl was suddenly filled with unmatched beauty; As if a ray descended from heaven and his ordinary body became golden. She was filling water from the lake for the ascetic, saw her own reflection, couldn’t believe it – she was no longer an ordinary woman, she had become an Apsara; She was mesmerized by looking at her own image! He continued serving the ascetic.
Then one day the ascetic opened his eyes. The time has come to leave this forest place – we have to deepen our penance and go on a journey to the mountain peaks. He told the girl that I will leave now, my work here is completed. Now an even more difficult path has to be chosen; heaven has to be conquered.
The girl started crying. Tears started falling from his eyes. He said, what misdeed have I committed that you deprive me of your service? And I never asked for anything!
The ascetic thought and looked at the face of that girl. Never seen such beauty. I had never seen such beauty even in my dreams. The girl looked familiar and also unfamiliar. The outline was the same, but some of the glory had gone down. All the body parts were the same, but some were surrounded by golden aura. As if a part of a long-forgotten song has been played by a musician on a flute.
The ascetic sat down. He closed his eyes again. He stopped. That night the girl could not sleep – there was both the joy of victory and also the remorse of causing the sadhu’s downfall. She was happy that she had won and was sad that she had corrupted someone, became an obstacle in someone’s path, and corrupted the journey of someone who had set out to move upward. Couldn’t sleep the whole night – cried and laughed too. In the morning she decided, came and bowed at the feet of the ascetic and said, I have to go, my family is going to another village. The ascetic blessed that go, wherever you stay, be happy, my blessings are with you.
The girl went away. Years passed, the penance was completed. Indra descended, bowed at the feet of the ascetic and said, the gates of heaven are open to welcome.
The ascetic opened his eyes and said, I have no need of heaven now! Indra could not even believe that any human being would say that he no longer needs heaven. Indra wondered, then has this ascetic developed a desire for salvation? Asked, do we need salvation?
The ascetic said, no, what will I do even for salvation?
Then when I was about to lay my head at the feet of Indra, it became extreme, the last stage of penance, where even the desire for salvation is lost. But before bowing down he asked, there is nothing beyond salvation, then what do you want?
The ascetic said, nothing, where is the girl collecting wood, she is the one who is needed.
Don’t laugh; Such is the weakness of man. Think, don’t laugh; Because the Earth has such a strong attraction. Don’t dismiss the story as a story, it is the whole agony of the human mind. And don’t think that the ascetic was faced with such a choice that there was a girl, there was heaven, he had to choose between the two. The option before you is the same; The choice before everyone is the same – either choose those pleasures which are transitory, or choose that which is eternal; Either lose the eternal for the transitory, or surrender the transitory for the eternal. And most people will choose what the ascetic chose. Don’t think that you have done anything otherwise. Whether Indra is standing in front of you or not; Whether someone has presented clear alternatives to heaven and earth or not, the alternatives are there. And he who chooses one inevitably loses the other. One whose eyes are filled with the intoxication of earth remains deprived of the awakening of heaven.
💠💠Osho💠💠