राम राम कहि जे जमुआई…..तिनहई न पाप पुंज समुआई

जब कोई मुख पूरा खोलकर जम्भाई लेता है और जम्भाई लेते समय भी यदि राम बोलता है तो उसके भीतर से एक दो नहीं….न जाने कितने सारे पापों का समूह निकल कर बाहर चला जाता है ऐसी भगवान इस भगवान के नाम रूपी प्रसाद की महिमा संतो ने बताई है तुलसीदास जी ने मानस में केवल नाम महिमा पर ही 60 से ऊपर चौपाइयां लिखी हुई है। विवसहु राम राम जे कहही

जन्म अनेक रचित अघ दहही विवशता पूर्वक कैसे भी भगवान का नाम लेता है तो उसके अनेकों जन्मों के पाप उसी समय शिथिल पड़ने लगते है पाप जलना प्रारंभ हो जाते है एक बात जो यहां विशेष रूप से समझने की है चूंकि बहुत से लोग इस बात को समझ नहीं पाते वह ये की गोस्वामी जी चूंकि राम नाम की ही साधना किया करते थे इसलिए उन्होंने चौपाइयों में राम नाम कहते हुए नाम की महिमा बताई है लेकिन इसका अर्थ ये बिल्कुल भी नहीं है कि गोस्वामी जी भगवान के अन्य नामों को राम नाम से छोटा या कम आंकते थे राम ….शब्द के अपने आप में ही अनेकों अर्थ होते है ये बात यहां इसलिए कही जा रही है श्री जी की कृपा और प्रेरणा से….चूंकि बहुत सारे लोग जो साधक भी है इस बात से बहुत confuse रहते है कि हम तो राम नाम नहीं जपते हमे तो कृष्ण नाम का मंत्र जपने के लिए मिला है या भगवान का अन्य कोई नाम जपने के लिए मिला हुआ है तो राम नाम की जो महिमा है वह हमारे लिए कैसे और कितना उपयोगी हो सकती है चूंकि हम तो राम नाम लेते नहीं लेकिन इस बात को बड़े ध्यान से और गहराई से समझने की आवश्यकता है हम सभी साधकों के लिए कि राम केवल दशरथ जी के पुत्र कौशल्या नंदन राम जी ही नहीं है राम पूर्णब्रह्म का बोध सूचक शब्द भी है जिससे ब्रह्म का ज्ञान हो ब्रह्म को जिस नाम से संबोधित किया जाता है वह नाम राम है……अतः जितने भी मंत्र है विलग विलग भगवान के नामो के उन सबका मूल नाम भी राम ही है…..जैसे गोस्वामी जी ने कहा विवस

हु राम राम जे कहहीं…..जन्म अनेक रचित अघ दहही …..राम राम कहि जे जमुआई…..तिनहई न पाप पुंज समुआई….. तो इन चौपाइयों में गोस्वामी जी ने भले अपने इष्ट दशरथ पुत्र राम जी का ही नाम लिया है लेकिन ऐसा नहीं है कि अन्य सभी भक्तो या साधकों जो अन्य किसी भगवन नाम का जप सुमिरन किया करते है उनके लिए ये चौपाइयां काम की ही नहीं है बहुत ध्यान पूर्वक समझने की बात है ये….. गोस्वामी जी ने मानस लिखी है जिससे सभी साधक भक्त लाभ ले सके तो क्या गोस्वामी जी उसमें अपने हित की ही बात लिखेंगे…..ऐसा बिल्कुल भी नहीं है केवल समझने का अंतर मात्र है गोस्वामी जी ये नहीं कह रहे कि मेरे राम का नाम ही सर्वोपरि है गोस्वामी जी ने राम इसलिए लिखा चूंकि राम शब्द अपने आप में ब्रह्म बोध सूचक होने के कारण व्यापक है इन्हीं चौपाइयों में जहां राम आता है वहा आप साधक जो भी जिस नाम की साधना किया करते है उस राम शब्द में उसी नाम को देखिए

तब इस चौपाई का अर्थ सभी को भली भांति समझ में आ जाएगा आप जो भी भगवान का नाम लेते है वही पाप पुंजो को जलाने में समर्थ है जम्भाई लेते समय भी आप राम का जो भी नाम अर्थात जो नाम आपको भाता है लेते है….तो भी सारे पाप निकल कर बाहर जाएंगे बहुत सरल अर्थ से समझने का यदि प्रयास करे  आटा होता हैं न…आटे से लड्डू भी बनते है आटे से हलवा भी बनता है आटे से रोटी भी बनती है परांठा भी बनता है पूरी भी बनती है और न जाने कितने व्यंजन जिनमें आटा पड़ता है लेकिन व्यंजन बनने के बाद उसे आटा तो नहीं कहते अलग अलग नाम होते है उन व्यंजनों के लेकिन सबमें आटा रहता है ….. इसी प्रकार से एक राम से ही सारे नाम बने हुए है। एक नूर से सब जग उपज्या….कौन भले को मन्दे…..कुदरत दे सब बंदे….. जैसे सभी जीवो में भगवान का ही अंश समाया हुआ है न कोई छोटा है न कोई बड़ा न कोई दीन है न हीन है देखने वाली दृष्टि केवल चाहिए….. बिल्कुल ठीक इसी प्रकार से भगवान के राम नाम से ही सारे नाम बने है…..चाहे राम कह लो या श्याम…..उनमें किंचित भी कोई अंतर नहीं है….नहीं है…. नहीं है…..जब इस भाव के साथ नाम की साधना करेंगे तब नाम अपना परमानंद प्रदान करता है जिसका अनुभव किसी किसी विरले को ही प्राप्त हुआ करता है भेद मिटा ….वो मिला  जब जीवो में भेद करना नहीं बताया प्रभु ने तो उनके नामों में कैसे कोई भेद कर सकता है सब नाम उसी एक के है जारी रहेगी आगे भी यह चर्चा चिंतन के

चिंतन मनन अवश्य कीजिए कृपया सभी साधक जन

🙇‍♀️



When someone yawns with his mouth wide open and if Ram speaks even while yawning, then not one or two but many sins come out of him and go out. Such a God, glorify the offerings in the name of this God, saints. It has been told that Tulsidas ji has written more than 60 couplets in Manas only on the name Mahima. Vivashu Ram Ram Je Kahi

If a person takes the name of God compulsively, then the sins of his many births start reducing and his sins start burning. There is one thing which needs to be understood especially here because many people do not understand this. What they don’t realize is that since Goswami ji used to meditate only on the name of Ram, he has expressed the glory of the name by saying the name of Ram in all four verses, but this does not at all mean that Goswami ji should consider other names of God as Ram. Ram used to be considered smaller or less than….The word itself has many meanings. This is being said here with the grace and inspiration of Shri Ji…because many people who are also seekers remain very confused about this. If we do not chant the name of Ram, we have got to chant the mantra of Krishna’s name or if we have got to chant any other name of God, then how and how much can the glory of the name of Ram be useful for us, since we So don’t take the name of Ram but this There is a need to understand the matter very carefully and deeply for all of us seekers that Ram is not only Kaushalya Nandan Ram ji, the son of Dashrath ji, Ram is also a word indicating the understanding of Purna Brahm, by which Brahm can be known, the name by which Brahm is addressed. That name is said to be Ram… hence, the original name of all the mantras which are different names of God is also Ram… as Goswami ji said Vivas.

Hu Ram Ram je kahi…..Janam anek rachit agh daahi….Ram Ram kahi je jamui…..Tinahai na sin punj samuai….. So among these quadrupeds, Goswami ji took the name of his favorite Dasharatha son Ram ji only. But it is not the case that for all the other devotees or seekers who chant and remember the name of any other God, these verses are of no use, it is a matter of understanding them very carefully… Goswami ji wrote Manas. If all the devotees can benefit from it, then will Goswami ji write only about his own interest in it? It is not so at all, it is just a difference of understanding. Goswami ji is not saying that the name of my Ram is supreme. Goswami ji Ram is written because the word Ram in itself is widespread due to being an indicator of Brahma Bodh, wherever Ram comes in these four verses, whatever name you devote for doing Sadhana, you see that name in the word Ram.

Then everyone will understand the meaning of this Chaupai very well. Whatever name of God you take is capable of burning all the sins. Even while yawning, you can take whatever name of Ram i.e. whatever name you like…. All the sins will also go out if you try to understand it in a very simple way. Flour is there…Laddu is also made from flour, Halwa is also made from flour, Roti is also made from flour, Parantha is also made and Puri is also made. Many dishes are prepared which contain flour but after the preparation of the dish, it is not called flour. Those dishes have different names but flour is there in all of them. Similarly, all the names are derived from one Ram. The whole world is born from one light….who can dim the good….nature gives it to all people….just as God’s part is present in all the living beings, no one is small, no one is big, no one is humble, no one is inferior. Just want…..exactly in the same way, all the names of God are made from the name of Ram….whether you call it Ram or Shyam….there is not even the slightest difference between them….there is no…. It is not…..when we do the Sadhana of the Name with this feeling, then the Name provides its bliss which only a very few people get to experience. The distinctions are eliminated….that we got when the Lord did not tell us to differentiate between the living beings, then His Names How can anyone differentiate between all the names of the same one? This discussion will continue in the future also for contemplation.

Please do some contemplation, all the devotees.

🙇‍♀️

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