रामभक्त हनुमान जी
हनुमानजी रावण की स्वर्ण नगरी लंका को जला कर राख करके चले जाते हैं। और रावण उनका कुछ नहीं कर
हनुमानजी रावण की स्वर्ण नगरी लंका को जला कर राख करके चले जाते हैं। और रावण उनका कुछ नहीं कर
बहुत ही रोचक और ज्ञानवर्धक प्रसंग. गोस्वामी तुलसीदास जी ने मानस में चार ऐसी स्त्रियों का अलग अलग स्थान पर
सुंदरकांड पढ़ते हुए 25 वें दोहे पर ध्यान थोड़ा रुक गया। तुलसीदास जी ने सुन्दर कांड में जब हनुमान जी
वास्तव में रामायण इंसान के अलग-अलग मनोभावों का ताना-बाना है। इसकी हर घटना इंसान की आंतरिक स्थिति का ही प्रतिबिंब
आज का सत्संग भगवान राम का चरित्र सर्वथा अनुकरणीय है, उनकी लीला का अनुकरण करें भगवान कृष्ण का चरित्र चिंतनीय
वनगमन के समय जब लक्ष्मण जी ने साथ चलने का हठ किया तो प्रभु ने कहा, अच्छा, माँ से बिदा
श्रीरामचरितमानस- बालकाण्ड ।। छन्द-भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी।हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी।। लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा
प्रभु रामजी सीता लक्ष्मण और निषादराजके साथ गंगा-पार करके रेतीमें खड़े हैं । सकुचा रहे हैं कि केवटको पार उतारनेकी
जानत प्रीति रीति रघुराई भगवान राम वनवास से आने के बाद माता केकैयी को पश्चाताप की अग्नि में जलते देखते
।। छन्द-नमामि भक्त वत्सलं, कृपालु शील कोमलं।भजामि ते पदांबुजं, अकामिनां स्वधामदं।।१।। निकाम श्याम सुन्दरं, भवांबुनाथ मंदरं।प्रफुल्ल कंज लोचनं, मदादि दोष