गोविन्द दास की भक्ति

बरसाना में गोविन्द दास नाम का एक भक्त रहता था।उसकी एक पुत्री थी, जिसका नाम था मुनिया।
*गोविन्द दास के परिवार में मुनिया के अलावा कोई नहीं था।
गोविन्द दास सारा दिन अपना काम क़रते और शाम को श्री जी के मन्दिर मे जाते दर्शन करते और जो भी संत मन्दिर में रुके हुए होते उनकी सेवा करते और उनके साथ सत्संग करते। यही उनका रोज का नियम था।

एक बार एक संत ने गोविन्द दास से कहा भइया हमें नन्दगांव जाना है, हमारे पास सामान ज्यादा है और हमें रास्ता भी नहीं मालूम तो तुम हमें नन्दगाँव पहुँचा सकते हो क्या ? गोविन्द दास बोले महाराज ये तो मेरा सौंभाग्य हैं, गोविन्द दास ने हां भर ली।

शाम को गोविन्द दास अपनी बेटी से बोला मुझे एक संत को नन्दगाँव छोड़ने जाना है। दिन चढने तक आ जाऊँगा प्रतीक्षा मत करना।

अगले दिन गोविन्द दास सुबह चार बजे राधे राधे करते नंगे पांव संत के पास पहुँच गये और संत के सामान और ठाकुर जी की पेटी और बर्तन उठा कर बोले चलो महाराज और आगे-आगे चलने लगे। एक तो संत जी की उम्र हो चली थी ऊपर से उन्हे श्वाश रोग भी था इसलिये वे कुछ दूर चलते फिर बैठ जाते। इस तरह रुक-रुक कर चलने में नन्दगाँव पहुँचने में ही देरी हो गई l

मन्दिर पहुँचकर गोविन्द दास ने सामान रखा और बोले महाराज अब चलते हैं। संत जी बोले भाई तुम इतनी दूर से मेरे साथ आये हो तनिक विश्राम कर लो, कुछ जलपान कर लो, फिर चले जाना तो गोविन्द दास ने कहा ये क्या कह रहे हो महाराज बरसाने की वृषभानु नंदनी नन्दगाँव मे ब्याही हुई है अतः मै यहाँ जल नहीं पी सकता,ये तो घोर पाप हो जायेगा।

संत की आँखो से अश्रुपात होने लगे। संत बोले ये तो कितने वर्ष पुरानी बात है गोविन्द दास, तुम गरीब भले ही हो पर तुम्हारा दिल बहुत नेक है।

गोविन्द दास संत जी को प्रणाम कर राधे-राधे करते रवाना हो लिए। सूरज सिर पर चढ़ आया था, ऊपर से सूरज की गर्मी नीचे तपती रेत। भगवान को दया आ गयी वे भक्त गोविन्द दास के पीछे-पीछे चलने लगे।

एक पेड़ की छाया में गोविन्द दास रुके और वही मूर्छित हो कर गिर पड़े। भगवान ने मूर्च्छा दूर करने के प्रयास किये पर मूर्च्छा दूर नहीं हुई। भगवान ने विचार किया कि भक्त के प्राण संकट में हैं कोई उपाय नही लग रहा है।

गोविन्द दास राधारानी का भक्त है वे ही इस के प्राणों की रक्षा कर सकती हैं तो उनको ही बुलाया जाए। इतना सोचते ही भगवान राधारानी के महल की तरफ दौड पड़े।

राधा रानी ने कन्हैया को इस हालत में देखा और इस गर्मी में आने का कारण पूछा। भगवान भी पूरे मसखरे हैं उन्होने सोचा राधिका को थोड़ा छेडा जाये।

उन्होंने कहा तुम्हारे पिताजी बरसाना और नन्दगाँव की डगर में पड़े हैं तुम चलकर संभालो।

राधा जी चौंकी और बोली कौन पिताजी ? भगवान ने सोचा विलम्ब करना ठीक नहीं हैं भक्त के प्राण संकट में हैं इसलिये राधा को सारी बात समझाई और चलने को कहा। यह भी कहा की तुमको गोविन्द दास की बेटी के रूप में भोजन, जल लेकर चलना है। राधा जी तैयार होकर पहुँची।

पिताजी, पिताजी आवाज लगाई और जल पिलाया। गोविन्द दास जागे और बेटी से बोले तू यहाँ कैसे ?

राधा जी बोली घर पर हरिया काका आये हैं आपसे मिलने को तो आपको बुलाने आ गयी।

आते-आते भोजन भी ले आयी हूँ आप भोजन कर लीजिये।

*गोविन्द दास भोजन लेने लगे तो राधा जी ने कहा मैं घर पर मेहमानों को संभालती हूँ आप आ जाना। कुछ दूरी के बाद राधारानी अदृश्य हो गयीं।

गोविन्द दास ने ऐसा भोजन कभी नही पाया। शाम को घर आकर गोविन्द दास बेटी के चरणों मे गिर पड़े। बेटी ने कहा आप ये क्या कर रहे हैं ?

गोविन्द दास ने कहा आज तुमने भोजन, जल ला कर मेरे प्राण बचा लिये, नहीं तो आज मेरे प्राण ही निकल गये होते।

बेटी ने कहा मैं तो कहीं गयी ही नहीं पिताजी। गोविन्द दास ने कहा अच्छा बता हरिया कहाँ हैं ?

बेटी ने कहा हरिया काका तो नहीं आये हैं लेकिन आप उनके बारे में क्यो पूछ रहे हो ?

अब गोविन्द दास के समझ में सारी बात आई। उसने मुनिया से कहा कि आज तुम्हारे ही रूप में राधा रानी आयी थीं मुझे भोजन और जल देने।

भाव बिभोर हो गये गोविन्द दास, मेरी किशोरी को मेरे कारण इतनी प्रचण्ड गर्मी में कष्ट उठाना पड़ा और मैं उन्हें पहचान भी ना सका।

:- अब तो मेरे जीवन की बस एक ही आस हैं कि- “मुझे कब फिर से श्री राधा रानी के दर्शन मिलेंगे”।

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