राम क्यों पूज्य हैं

शिव तो आदिदेव हैं, उनकी पूजा समझ आती है।

कृष्ण ने अनगिनत चमत्कार दिखाए, गीताज्ञान दिया, उनकी आराधना ठीक लगती है।

पर राम, दशरथनन्दन श्रीराम में ऐसा क्या ह कि राम का नाम ही ईश्वर का पर्याय बन गया, कि लोग वेदों में वर्णित देवताओं को भूल राम-राम करने लगे। उन्होंने तो बाकी देवताओं की तरह कभी चमत्कार नहीं दिखाया, न हलाहल विषपान किया, न मुख से ज्ञान का प्रसाद वितरित किया। फिर, फिर उन्होंने ऐसा क्या किया जो राम ‘राम’ हुए।

उत्तर है उनके कर्म!

उच्च वर्ग में, बल्कि सत्ता, धन, अधिकार के सर्वोत्तम शिखर के घर जन्में उस महामानव ने किसी भी मानव के गुणों का सर्वोत्तम सोपान छू लिया था।

सोचिए कि एक राजा का बेटा, जिसके एक आदेश पर सेनाएं सज्ज हो जाती हों, जिसके कहने पर अनगिनत वीर मरने-मारने, प्राण त्यागने को उद्यत हो जाते हों, वह एक मामूली अंगरक्षक के रूप में, एक सुरक्षाकर्मी के रूप में अपनी ही प्रजा के एक वैज्ञानिक की रक्षा हेतु चल पड़ता है।

जिसने धर्म का पाठ पढ़ा हो, जिसका धर्म ही हो कि गौ, स्त्री और ब्राह्मण की रक्षा करनी है, वह बिना संकोच के देखते ही ताड़का नामक स्त्री का वध कर देता है। वह अपराधी को देख हिचक नहीं जाता कि यह तो स्त्री है, और स्त्री का वध नहीं किया जाना चाहिए। उसका न्याय लिंगभेद नहीं करता।

वह सद्पुरुषों का रक्षण करता है, खलपुरुषों का वध करता है और तिसपर भी उसकी मुस्कान बनी रहती है। किसी के सम्मुख सिर झुकाते समय उसे संकोच नहीं होता, और किसी का सिर उतारने पर वह अहंकार से ग्रसित नहीं होता। वह चलता है तो धरती डोलती नहीं, बल्कि खिल उठती है। वह परमवीर है, पर उसे देख पुरजनों को भय नहीं अभय की प्राप्ति होती है। दुर्दमनीय धनुष को तोड़कर भी वह विनीत बना रहता है, क्रोधित दुर्दम्य परशुराम के सम्मुख भी वह विचलित नहीं होता।

जितना सहज होकर वह पिता की आज्ञा से सिंहासन स्वीकारता है, उतनी ही सहजता से त्याग भी देता है। पिता की आज्ञा, माता की इच्छा और भाई के कल्याण के लिए वह अपना परंपरागत अधिकार छोड़ वल्कल वस्त्र पहन वनों में चला जाता है।

राजमहलों का निवासी जंगलों में, वनवासियों के साथ घुलमिल कर रह रहा है। उनके जैसे वस्त्र, उनके जैसा भोजन, उनके जैसा श्रम।

प्रियतमा के अपहरण पर उसका रूदन। उस युग में जब राजपुरुषों के लिए बहुविवाह मान्य था, स्वयं उसके पिता की कई पत्नियां थीं, वह एक स्त्री के लिए पेड़ों से लिपट कर रो रहा है। नदी और पर्वतों से पागलों की भांति पूछ रहा है। सामान्य मनुष्य की भाँति, जब दुख अत्यधिक हो तो क्रोध बन जाता है, वह सब तहस-नहस करने पर उतारू हो जाता है, पर अंतत स्वयं को नियंत्रित कर लेता है और अपनी स्त्री को खोजने के लिए धरती-पाताल एक कर देता है।

संसाधनहीन वनवासी शून्य से सेना का निर्माण करता है। अधर्मी को दण्डित करना ही धर्म है, अतः अधर्मी का छुपकर वध करते समय परंपरागत धर्म उसका बाधक नहीं बनता।

संसार में जो पहले कभी न हुआ था, वह कर दिखाता है। समुद्र को बाँध लेता है। वह विनय की प्रतिमूर्ति है जो हाथ जोड़कर विनती करता है, परन्तु अवहेलना पर वही हाथ शस्त्र उठाकर दण्ड देने की क्षमता भी रखते हैं। वह सहिष्णु है, पर उसकी सहिष्णुता दुर्बलता के कारण नहीं है। वह जानता है कि वही विजयी होगा, फिर भी वह हाथ जोड़ना जानता है।

सामने शत्रु है, ऐसा शत्रु जिससे संसार भय खाता है। जिसने देवताओं तक पर विजय प्राप्त की हुई है, वह उससे भिड़ जाता है। हिंसा अंतिम उपाय है, यह संदेश अवश्य देता है, पर जब प्रतिपक्ष को अहिंसा स्वीकार नहीं तो परम हिंसक होने में क्षण नहीं लगाता।

वह, जो अपने राज्य से निर्वासित है, अपने राज्य से भी अधिक सम्पन्न राज्य जीतकर भी उसे तृण की भाँति त्याग देता है और उस स्त्री को, जो उसके शत्रु के घर वर्ष भर कैदी रही हो, गले लगा लेता है।

जिसका चरित्र इतना पावन है कि उसके महाबलशाली भाई उसके अनुचर बने रहते हैं। वे भाई, जो अपने बड़े भाई के लिए कोई भी त्याग करने को प्रस्तुत हैं, जो बड़े भाई के हित के लिए माता-पिता, गुरु और स्वयं बड़े भाई की आज्ञा मानने से भी इंकार कर देते हैं।

जिसका मन इतना निर्मल है कि हर वर्ग उसका अपना है। जिसका चरित्र इतना उज्ज्वल है कि तपस्यारत ऋषि भी उसके दर्शन को सौभाग्य मानते हैं। जिसका प्रेम इतना पावन है कि वनवासिनी बुढ़िया अपना मान उसे अपना जूठा खिला लेती है। जिसका क्रोध इतना भीषण है कि समुद्र भी थर-थर कांपता है।

जो वन में वनवासी होकर भी राजा की भाँति रक्षण करता है, जो सिंहासन पर बैठकर भी वनवासियों की भाँति प्रकृति से जुड़ा रहता है, जो मानव होकर भी मानवेतर सामर्थ्य रखता है, मानवीय गुणों की पराकाष्ठा को सतत प्राप्त है, जो सच्चिदानन्द है, ऐसा महामानव है, ऐसा आदिपुरुष है कि आदिदेव महादेव भी उसके भक्त बन जाते हैं, ऐसे धृतिमान् महाबाहु को साक्षात ईश्वर न मानें तो क्या मानें?

श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये

Share on whatsapp
Share on facebook
Share on twitter
Share on pinterest
Share on telegram
Share on email

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *