भगवान मे निस्वार्थ भाव

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हमे देखना यह है कि हम भगवान का ध्यान और सिमरण संसारिक सुख के लिए करते हैं या भगवान को बस ऐसे ही आन्नद स्वरूप के लिए ध्याते हैं। भगवान को संसारिक सुख के लिए ध्याते है वे सोचते हैं कि मै अमुक भगवान की पूजा अर्चना करता हूं। तब भगवान हमारे सब कार्य जैसे मै चाहता हूं वैसे हो जाए। जो भगवान के आन्नद स्वरूप के ध्यान में लीन होते हैं। उनके दिल में जिस छवि में प्रेम झलकता है। वो बस उन्हें भगवान मानकर ध्याते है। उनके मध्य में लेन देन  का कोई हिसाब नहीं होता है। प्रेम लेन देन से ऊपर उठकर किया जाता है। भगवान का सेवक सेवा करना जानता है। और  मालिक की रजा मे रजामन्द रहता है। फल की कोई चाहत नहीं होती है। बस सिमरण और पुकार ही परकोटे होते हैं। जय श्री राम
अनीता गर्ग

 

 



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