एक साधक ध्यान में श्री हरि का आत्म चिन्तन करते हुए श्री राम, जय श्री राधे कृष्ण, जय श्री राधे राधे, परमेश्वर, हरी बोल, ओम शांति, परम शान्ति, आत्मा ईश्वर है ।सर्व आत्मा परमात्मा में लीन हो जाना है प्रभु प्राण नाथ, हरी अनेक चिन्मात्र अजन्मा, अविनाशी, आनंद स्वरूप हैं
ईश्वर सत्यसंकल्प है आत्मा ईश्वर है अ आत्मा ईश्वर सर्व व्यापक है अ मन तु इस देह का जगत के रिश्ते नातो से ऊपर उठ जा अन्दर झांक कर देख आत्मा और परमात्मा दोनों है अ मन तु जगत पिता का चिन्तन करेंगा तभी आत्मा तृप्त होगी
मैं भगवान के शरणागत हूँ।हे राम, हे भगवान, मै तुम्हारा हूँ मुझे परमेशवर की सेवा में लगाए रखना। नित्य कर्म, अध्यात्मवाद, भगवान निर्गुण निराकार हैं ।भगवान सगुण साकार आत्म साक्षात्कार निर्लेप अहम ब्रह्म, अस्मि ब्रह्म साधक का ध्यान कर्म करते हुए लगने लगता है उसका कर्म का ध्यान इतना गहरा जाता है उसे अपने आप में ब्रह्म का अहसास होता है। ब्रह्म का अहसास तभी हो सकता है जब साधक को शरीर गौण लगने लगता है। साधक को ऐसे महसूस होता है यह सबकुछ ब्रह्म ही कर रहे हैं। ब्रह्म के द्वारा हो रहा है। ब्रह्म इस झोपड़ी को पवित्र करने आए हैं। यह मै ही ब्रह्म है, ईश्वर है, आत्मा है, जय श्री राम अनीता गर्ग