ध्यान प्रयोग बैठो, ध्यान नाभि का रखो
ध्यान प्रयोग बैठो, ध्यान नाभि का रखो। उठो, ध्यान नाभि का रखो। कुछ भी करो, लेकिन तुम्हारी चेतना नाभि के
ध्यान प्रयोग बैठो, ध्यान नाभि का रखो। उठो, ध्यान नाभि का रखो। कुछ भी करो, लेकिन तुम्हारी चेतना नाभि के
आत्मज्ञान ;- 1-ईश्वर के दर्शन नहीं हो सकते। लेकिन चाहो तो स्वयं ईश्वर अवश्य हो सकते हो।ईश्वर को पाने और
आनन्दमय कोश के चार अंग प्रधान हैं।इन साधनों द्वारा साधक अपनी पंचम भूमिका को उत्तीर्ण कर लेता है , तो
ईश्वर क्या है, यह तुम अभी जानोगे नहीं; ईश्वर-प्राप्ति से क्या लाभ होगा, यह भी तुम नहीं समझ सकोगे। हाँ,