अपने अन्दर की खोज

आज मैं अपने आपको ठोक ठोक कर देखना चाहती हूँ मुझमे क्या छिपा हुआ है मुझमे कुछ गुण भी है या कोई गुण ही नहीं है मुझे आज अपनी परिक्षा कर लेनी चाहिए।

प्रभु के द्वार पर हम तभी जा पाएगें जब अपने आप को पढना जान जाएगे। हम कहते हैं भगवान ने यह लीला की भगवान ऐसे हैं भगवान हमारे पर बहुत कृपा करते हैं भगवान हमारे है हमे पढना यह है क्या मै भगवान के योग्य हूँ।

मुझमें कोई भक्ति का भाव सत्य स्वरूप में स्थित है। मै परमात्मा को कैसे निहारता हूँ। जब तक हम परमात्मा को जीवन में नहीं उतारते हैं भगवान देख रहा है। भगवान को हम कंहा कंहा महसूस करते हैं।भगवान को मन्दिर में कथा पाठ कीर्तन मूर्ति में ढुढते है या फिर हम भगवान को हर किरया में देखते पढते है हम समझते हैं आज इस समय ग्रह नक्षत्र पर मंत्र जप बहुत शुभ है ईश्वर के लिए हर घङी हर पल शुभ है।

एक भक्त की दिवाली हर क्षण है। भक्त का हृदय आनंद का सरोवर है। भक्त का जीवन ग्रथं है क्या मुझमें कोई ऐसा स्थिर भाव है। मुझमें सत्यता समाई हुई हो मेरे जीवन में डर का कोई स्थान न हो।

मै परमात्मा के भाव मे कितने समय तक रहता हूं। मेरा सिमरण और स्मरण मे सत्यता है या जग दिखाई है मै वास्तव में श्री हरि का चिन्तन दिल से करता हूँ या बस अपने ऊपरी मन को खुश करते हैं। हम अपने आपको भक्ति के नाम गुमराह तो नहीं कर रहे हैं।जय श्री राम अनीता गर्ग

Share on whatsapp
Share on facebook
Share on twitter
Share on pinterest
Share on telegram
Share on email

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *