भगवान की भाव सेवा

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जय श्री राम भगवान भक्त के साथ तभी जाते हैं जब भक्त रात दिन भगवान के दर्शन के लिए तङफता है।

दिल का एक ही अरमान तेरे चरणों में मिट जाऊ। भक्त भगवान को दिल मे बिठा कर अन्तर्मन से भजता है ।भक्त जानता है कि मै जगत को दिखाकर भगवान को भजते हुए पार पा नहीं सकता इसलिए भगवान को मानसिक रूप से भजता है।

शरीर संसारिक व्यवहार में लगाता है दिल भगवान के चरणो में समर्पित है ।भक्त जानता है शरीर की मृत्यु निश्चित है आत्मा परमात्मा का स्वरूप है आत्मचिंतन परम से मिलन का मार्ग है।

जिस दिल में भगवान बैठे होते हैं भगवान उनके साथ जातें है। भक्त घर पर बैठा हुआ भावविभोर हो भगवान के चरणो की सेवा में लिन हो जाता है आज मेरे भगवान को चरणों की बादाम रोगन लगाकर मालिश करूंगा।ओहो देखो आज कितनी ठण्ड है मेरे भगवान मन्दिर में तिरछे पांव खङे है उन्हें ठण्ड लगती होगी।

भक्त फिर हाथ मसलकर हाथ को गर्म करके भगवान श्री हरि के चरणों को अपने अंजुलि में समेट लेता है।भक्त भगवान को दिल मे बिठा लेता है। भाव में भक्त भगवान के चरणो की सेवा कर रहा है भाव का तेल को हथेली में लेता है

भगवान सामने विराजमान हैं बहुत नरम नरम हाथों से सेवा कर रहा हरे कृष्ण हरे राम राम राम राम श्री राम मेरे प्रभु प्राण नाथ तुम स्वामी भगवान नाथ हो तुम दया के सागर मेरे बिहारी जी तुम्हारी ये चितवन दिल चीर जाती है तुम मे खो जाऊंगी मेरे नाथ अब तुम से ये दुरी सहन नहीं होती है दिल में तुम्हें बिठाकर नैन तुम मे समा जाना चाहते हैं।

भक्त शिश नवा कर प्रणाम करना भुल जाता है नमन तो शरीर करता आत्मचिंतन में सबकुछ परमतत्व परमात्मा है। भक्त जब वर्षो तक परम आरधय के भाव मे ढुबता है तब कभी उस भाव के कुछ ही भाव शब्द रूप देता है। जय श्री राम अनीता गर्ग

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