हरि ॐ तत्सत जय सच्चिदानंद घन
कभी रात के दो बजे छत पर जाकर देखो
एक बार संसार पर दृष्टी डालो
ये पेड़ पौधें पहाड़ नदियां सूर्य चन्द्रमा तारे बिजली पानी हवा अग्नि पर्वत ,ये पृथ्वी जल वायु अग्नि आकाश,ये मकान दुकान जमीन आदि
ये ब्रह्मा विष्णु महेश
तुम्हारे मन्दिर मस्जिद गुरूद्वारे तीर्थ स्थल सब चुप है। सब मौन है।
क्या ये बोल रहे हैं?नही
क्या ये तुम्हें जान रहे हैं ?
या तुम इन सबको जान रहे हो?
तुम ही अपने आपको जान रहे हो और कोई नहीं जान रहा
कि
मैं छत पर खड़ा हूं
इस बात को कोई ओर नहीं जान रहा
फिर अंदाजा लगाओ कि
तुम कोन हो ?
इनको जानने वाले
तुम ही तो हो इनको जानने वाले
तुम ही साक्षी हो,तुम ही दृष्टा हो
जब तुम छत से नीचे अपने कमरे में आए
तुम्हारे कमरे का सारा सामान सभी अपनी जगह स्थित है,मौन हैं।
घर का कोई भी सामान कुछ नहीं बोल रहा
सभी सामान अपने आपमें मोन चुप है।
इसका मतलब क्या है? तुम ही दृष्टा हो साक्षी हो
इसलिए
चुप में कर दिदारा
धरती चुप है, गगन भी चुप है, चुप है चांद और तारा
ब्रह्मा चुप है, विष्णु चुप है, चुप है शंकर प्यारा
तुम्हारे शास्त्र वेद पुराण उपनिषद गीता,तुम्हारे मन्दिर के देवी देवता सब मौन चुप है।
इसलिए
कुछ भी करने की जरूरत नहीं
बस एकांत में चुप होकर बैठ जाओ
परमात्मा मोन है,परमात्मा निशब्द है, परमात्मा अव्यक्त हैं।
इसलिए
उसे जानने के लिए हमें मौन होकर बैठना है।
आत्मा पहले चुप है भीतर भी चुप है बाद में भी मौन है ।
बीच में जो मायावी शरीर है, हमें जो कुछ भी नजर आ रहा है,
ये सब माया का खेल है।
इसी संसय,भ्रम, संदेह को दूर करना है।
इसे मौन होकर देखना है।
मौन में बहुत बड़ी पावर है।
परमात्मा की भाषा मौन ही है।
इसलिए
बाहर से मोन ओर भीतर से भी मौन होना पड़ेगा
इस मौन भाषा में ही परमात्मा ने इशारा किया है कि
चुप में कर दिखाया
लेकिन
हमने उसके इशारों को नहीं समझा
लेकिन
जिसने शब्दों के समस्त इशारों को समझ लिया
वो आखरी में मौन हो गया
वहां कुछ कहते नहीं बना