आत्मचिंतन करने के लिए समर्पण भाव का जागृत होना आवश्यक है परमात्मा के मै दर्शन कर लू परमात्मा कैसा है परमात्मा के प्रकाश को देख लूँ। परमात्मा के प्रकाश में कितना तेज होगा। परमात्मा आ रहे हैं परमात्मा का आत्म चिन्तन कर रहा है परमात्मा का विस्वास है परमात्मा ही परमात्मा का चिन्तन करवा रहे हैं। यह सब भाव बनाने के लिए साधक कितनी खोज करता है कितना तङफता है मन को कितना पढता है कभी मौन हो जाता है बाहर और भीतर खोज करता है भीतर का मार्ग के लिए विरह जागृत हो जाता है नैनो के आंसू सुख जाते हैं। घर का सम्बन्ध शरीर से मन से है जैसे एक व्यक्ति अनेक सम्बन्ध एक साथ निभाता है कर्म इन्द्रिया और ज्ञान इन्द्रियों का कार्य अलग अलग है लेकिन कर्म इन्द्रियों में ज्ञान इन्द्रियों के समावेश के बैगर सबकुछ अधुरा है।साधक गृहस्थ जीवन को ढाल बना कर अपने सामने खङा करता है। आत्मचिंतन में शरीर नहीं है। शरीर से ऊपर उठ कर ही आत्म चिंतन है गृहस्थ में जो साधना कर सकते है साधु संत भी वंहा तक मुश्किल से पहुंच पाते हैं। क्योंकि उसे कुछ भी खोने का डर नहीं है। गृहस्थ धर्म प्रेम विस्वास कर्म सहनशीलता पर टिका हुआ है।
जब तक हर कण में रोम रोम में ईश्वर का अनुभव नही होता है तब तक आपका आत्म चिन्तन का द्वार नहीं खुलता हैं आत्मचिंतन में घर में प्रेम से तभी रह सकता है जब आप अपने आप को कुछ मानते ही नहीं जंहा आपमें मै और मेरापन आया आप गिर जाओगे। फिर से उठ उठ कर ठोकरे खाकर चलने की यह यात्रा है। ठोकर गिराती ही नहीं है ठोकर शिक्षा देकर जाती है ठोकर नवनिर्माण कर जाती है
साधक रोम रोम में ईश्वर का अनुभव कैसे करता है ।
साधक अन्तर्मुखी हो कर इस शरीर के रोम रोम में प्रभु भगवान हैं। मै चरण सेवा नही कर रहा हूँ मै श्री हरि के चरण सेवा कर रहा हूँ।राम राम जय श्री राम जय बाबा हनुमान जी महाराज सुन मेरे बाबा राम राम अहो कितने मुलायम श्री हरि के चरण है साधक के हृदय में प्रेम उत्पन हो जाता है प्रभु प्राण नाथ के प्रेम को शब्दों में नहीं पीरो सकती हूँ। प्रेम जितना पैदा होगा विरह वेदना को जगा जाता है तङफ में साधक परमात्मा को बाहर खोज रहा है कहीं से कैसे पुरण साक्षात्कार हो जाये कभी मंदिर में मुर्ति ग्रथों में परमात्मा को खोज रहा है मुर्ति में से पुरण परमात्मा प्रकट हो जाय। इस रूप के अन्दर जो समाया हुआ है। जो आकर्षण पैदा करता है उस प्रकाश पुंज की खोज कर रहा है। पग पग पर परमात्मा अहसास भी कराते हैं। बार बार ऐसा लगता है जैसा परमात्मा ही है। मुर्ति में ऐसे लगता है साक्षात शरीर धारण किया है प्रभु के चरणों में प्राणों का अहसास होता है। दर्श का जितना अहसास होता है हृदय में दर्द की लहर दौड़ जाती है नमन और वन्दन भी कर रहा है हृदय की पुकार को प्रभु प्राण नाथ जानता है ऐसी प्रार्थना में भक्त नैनो में नीर को अन्दर ही अन्दर पीता है।
To introspect, it is necessary to awaken the feeling of dedication. I should have darshan of God, how is God, I should see the light of God. How much brighter it will be in the light of God. God is coming, God’s self is thinking, God has faith, God is making us think about God. To create all these feelings, how much does the seeker search, how much does he yearn, how much does he study the mind, sometimes he becomes silent, searches outside and within, the separation for the inner path awakens, Nano’s tears dry up. Home is related to body and mind as a person maintains many relationships simultaneously. The work of action senses and knowledge senses are different but without the inclusion of knowledge senses in action senses, everything is incomplete. Creates. There is no body in introspection. Self-contemplation is achieved only by rising above the body, which can be done by a householder. Even sages and saints can reach there with difficulty. Because he is not afraid of losing anything. Household life is based on religion, love, faith and tolerance.
Unless you experience God in every pore of your body, the door of your self-contemplation does not open. You can live in self-contemplation with love at home only when you do not consider yourself to be anything, where I and mine come into you. You will fall. This is a journey of getting up and walking again after stumbling. A stumble doesn’t just bring you down, a stumble gives you education, a stumble creates something new. How does a seeker experience God in every detail? The seeker becomes introverted and God is present in every pore of this body. I am not serving the feet, I am serving the feet of Shri Hari. Ram Ram Jai Shri Ram Jai Baba Hanuman Ji Maharaj, listen to my Baba Ram Ram, oh how soft are the feet of Shri Hari, love arises in the heart of the seeker, Lord. I cannot express the love of Pran Nath in words. The more love is born, the pain of separation is awakened. In pain, the seeker is searching for God outside, how can he get the real realization from somewhere? Sometimes the idol in the temple is searching for God in the scriptures, so that the old God can appear from the idol. What is contained within this form. Searching for the beam of light that creates attraction. God also makes us realize at every step. Time and again it seems as if God is there. In the idol it seems as if one has actually taken on a physical body and one feels life at the feet of the Lord. As much as one feels the sight, a wave of pain runs in the heart, one is bowing and worshiping too, Lord Pran Nath knows the cry of the heart, in such a prayer, the devotee drinks the water from within in small amounts.