मुतरेजा जी बड़ा प्रसन्न हैं। आज उन्हें गिन्नी ख़रीदनी है।गिन्नी यानी स्वर्ण मुद्रा। मैने पूछा क्यो ख़रीदेंगे? मुतरेजा मेरे अज्ञान पर हंसे.. कहने लगे धनत्रयोदशी यानी धनतेरस पर सोना चॉंदी ख़रीदने से लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। घर में उनके आने का रास्ता प्रशस्त होता है। कल धनतेरस है। जो सोना चाँदी नहीं ख़रीद पाते। वे बर्तन ख़रीदते हैं। मैं मुतरेजा के ज्ञान से अचंभित था । मुतरेजा सकुचाते और लजाते हुए बोले सर,सोना ख़रीदने से लक्ष्मी तो प्रसन्न होती ही है। बीबी भी। मुतरेजा अभी वैवाहिक जीवन के स्वर्णकाल में चल रहे हैं।
मैने कहा मुतरेजा सही है धनतेरस दीपावली की दस्तक है। हम धनतेरस की चौखट पर खड़े होकर दीपावली की तरफ देखते है। इसलिये धनतेरस को लक्ष्मी से जोड़ते हैं।
पर यह स्वास्थ्य का पर्व है। दरअसल धनतेरस स्वास्थ्य और समृद्धि के बीच जागरूकता का पर्व है।हम धनतेरस को सिर्फ़ सोना ,चॉंदी और बर्तन ख़रीदने का अवसर समझते हैं। और इसे लक्ष्मों प्रसन्न करने का ज़रिया समझते हैं। पर धनतेरस लक्ष्मीपूजा और नए बरतन खरीदने के कर्मकांड के साथ ही आयुर्वेद के प्रणेता व वैद्यकशास्त्र के देवता भगवान धन्वंतरि का जन्मदिन भी है।शास्त्रों में इसका यही महत्व है। क्योंकि हमारे शास्त्र स्वास्थ्य को भी धन मानते हैं।धन्वंतरि की गिनती भारतीय चिकित्सा पद्धति के जन्मदाताओं में होती है।वेदों में इनका उल्लेख है।पुराणों में इन्हें विष्णु का अवतार कहा गया है।समुद्रमंथन में जो चौदह रत्न निकले, उनमें एक धन्वंतरी भी थे। वे काशी राजधन्य के पुत्र थे, इसलिए ‘धन्वंतरि’ कहलाए।
पर मुतरेजा मानने को तैयार नहीं थे। वे कहने लगे कि आप शास्त्र की बात करते हैं मैं परम्परा की। हमारे यहॉं परम्परा से सोना खरीदा जाता है। ऐसा कर दादा जी दादी को, पिता जी माता जी को प्रसन्न करते थे। मैं पत्नी की प्रसन्नता के लिए ऐसा करूँगा। परम्परा के प्रति मुतरेजा की जकड़न को देख मैंने कहा ज़रूर ख़रीदें पर कथा सुनाता हूँ।
आज ही के रोज़ वे धन्वंतरि समुद्र मंथन से अमृत कलश लेकर निकले थे।वे हिन्दू धर्म में मान्य देवताओं में से एक हैं। वे आयुर्वेद के प्रणेता और वैद्यक शास्त्र के देवता माने जाते हैं।महाभारत, श्रीमदभागवत, अग्निपुराण, वायुपुराण, विष्णपुराण तथा ब्रह्मपुराण में उनका जिक्र है। श्रीमदभागवत में विष्णु के जो 24 अवतार बताए गए हैं उनमें धन्वंतरि 12वें अवतार हैं।समुद्र मंथन में शरद पूर्णिमा को चंद्रमा, कार्तिक द्वादशी को कामधेनु गाय, त्रयोदशी को धन्वंतरी, चतुर्दशी को काली माता और अमावस्या को भगवती लक्ष्मी जी का सागर से प्रादुर्भाव हुआ था। इसीलिये दीपावली के दो दिन पहले धन्वंतरी का जन्म धनतेरस के रूप में मनाते है। इसी दिन इन्होंने आयुर्वेद का प्रादुर्भाव किया था।
भगवान विष्णु के रूप की तरह धन्वन्तरि की भी चार भुजायें हैं। उपर की दोंनों भुजाओं में शंख और चक्र धारण किये हुये हैं। जबकि दो अन्य भुजाओं मे से एक में जलूका और औषध तथा दूसरे मे अमृत कलश लिये हुये हैं। इनका प्रिय धातु पीतल माना जाता है। इसीलिये धनतेरस को पीतल आदि के बर्तन खरीदने की परंपरा भी है। इन्हे आयुर्वेद की चिकित्सा करनें वाले वैद्य आरोग्य का देवता कहते हैं- आयुर्वेद अथर्ववेद का उपवेद है। सुश्रुत संहिता के अनुसार
ब्रह्मा प्रोवाच ततः प्रजापतिरधिजगे,
तस्मादश्विनौ, अश्विभ्यामिन्द्रः इन्द्रादहमया
त्विह प्रदेपमर्थिभ्यः प्रजाहितहेतोः
यानी ब्रह्मा ने एक लाख श्लोक का आयुर्वेद रचा जिसमें एक हजारअध्याय थे। उनसे प्रजापति ने, प्रजापति से अश्विनी कुमारों ने, अश्विनी कुमारों से इन्द्र ने और इन्द्र सेघन्वन्तरि ने पढा। धन्वन्तरि से सुनकर सुश्रुत मुनि ने आयुर्वेद की रचना की।
नालन्दा विशाल शब्दसागर के अनुसार ” धन्वन्तरि प्रणीत चिकित्सा शास्त्र,वैद्य विद्या ही आयुर्वेद है।”
वायु तथा ब्रह्माण पुराणों में धन्वन्तरि को आयुर्वेद का उद्धारक बताया गया है। पौराणिक काल में धन्वन्तरि भगवान के रुप में पूजनीय थे- ‘धन्वन्तरिभगवान् पात्वपथ्यात्’। चरक संहिता में भी धन्वन्तरि को आहुति देने का विधान है।
धन्वन्तरी काशी के राजा थे पुराणों में काशिराज दिवोदास का एक नाम धन्वन्तरी कहा जाता है।सुश्रुत ने शल्यशास्त्र के अध्ययन की इच्छा प्रकट की थी, इसलिए धन्वन्तरि ने इसी अंग का उपदेश दिया। सुश्रुत के पांच स्थानों में (सूत्र, निदान, शरीर चिकित्सा और कल्प में) शल्य विषय ही प्रधान है इसीलिए कुछ लोगों ने धन्वन्तरि शब्द का अर्थ ही शल्य में पारंगत किया है। (धनुः शल्यं तस्य अन्तं पारमियर्ति गच्छतीति धन्वन्तरिः)
बाद में धन्वन्तरि एक सम्प्रदाय बना जिसका संबंध शल्य शास्त्र से है। जो भी शल्य शास्त्र में निपुण होते थे, उन सबको धन्वन्तरि कहा जाता था। इसी से चरक संहिता में धन्वन्तरीयाणां बहुवचन मिलता है। स्पष्ट है, आदि उपदेष्टा धन्वन्तरि थे। इन्हीं के नाम से यह अंग चल पड़ा।गरुण और मार्कंडेय पुराणों के अनुसार :- ‘गरुड़पुराण’ और ‘मार्कण्डेयपुराण’ के अनुसार वेद मंत्रों से अभिमंत्रित होने के कारण ही धन्वंतरि वैद्य कहलाए थे।
विष्णु पुराण के अनुसार :- धन्वन्तरि दीर्घतथा के पुत्र बताए गए हैं। इसमें बताया गया है वह धन्वन्तरि जरा विकारों से रहित देह और इंद्रियों वाला तथा सभी जन्मों में सर्वशास्त्र ज्ञाता है। भगवान नारायण ने उन्हें पूर्व जन्म में यह वरदान दिया था कि काशिराज के वंश में उत्पन्न होकर आयुर्वेद के आठ भाग करोगे और यज्ञ भाग के भोक्ता बनोगे।
ब्रह्म पुराण के अनुसार :- काशी के संस्थापक ‘काश’ के प्रपौत्र, काशिराज ‘धन्व’ के पुत्र, धन्वंतरि महान चिकित्सक थे जिन्हें देव पद प्राप्त हुआ। राजा धन्व ने अज्ज देवता की उपासना की और उनको प्रसन्न किया और उनसे वरदान मांगा कि हे भगवन आप हमारे घर पुत्र रूप में अवतीर्ण हों उन्होंने उनकी उपासना से संतुष्ट होकर उनके मनोरथ को पूरा किया जो संभवतः धन्व पुत्र तथा धन्वन्तरि अवतार होने के कारण धन्वन्तरि कहलाए। जिन्हें देव पद प्राप्त हुआ।
इनके वंश में दिवोदास हुए जिन्होंने ‘शल्य चिकित्सा’ का विश्व का पहला विद्यालय काशी में स्थापित किया जिसके प्रधानाचार्य, दिवोदास के शिष्य और ॠषि विश्वामित्र के पुत्र ‘सुश्रुत संहिता’ के प्रणेता, सुश्रुत विश्व के पहले सर्जन (शल्य चिकित्सक) थे। बनारस में कार्तिक त्रयोदशी-धनतेरस को भगवान धन्वंतरि की पूजा हर कहीं होती हैं। कैसा अद्भुत इतिहास है इस शहर का शंकर ने विषपान किया, धन्वंतरि ने अमृत प्रदान किया और इस काशी कालजयी नगरी बन गयी।
धन्वन्तरी के तीन रूप मिलते है।
समुद्र मन्थन से उत्पन्न धन्वन्तरि प्रथम।
धन्व के पुत्र धन्वंतरि द्वितीय।
काशिराज दिवोदास धन्वन्तरि तृतीय।
धन्वन्तरि प्रथम तथा द्वितीय का वर्णन पुराणों के अतिरिक्त आयुर्वेद ग्रंथों में भी मिलता है- जिसमें आयुर्वेद के आदि ग्रंथों सुश्रुत्र संहिता चरक संहिता, काश्यप संहिता तथा अष्टांग हृदय में विभिन्न रूपों में उल्लेख मिलता है। इसके अतिरिक्त अन्य आयुर्वेदिक ग्रंथों भाव प्रकाश, शार्गधर तथा उनके ही समकालीन अन्य ग्रंथों में आयुर्वेदावतरण का प्रसंग उधृत है। इसमें भगवान धन्वन्तरि के संबंध में भी प्रकाश डाला गया है।
वैदिक काल में जो महत्व और स्थान अश्विनी कुमार को था वही पौराणिक काल में धन्वंतरि को प्राप्त हुआ- जहाँ अश्विनी के हाथ में मधुकलश था वहाँ धन्वंतरि को अमृत कलश मिला। क्योंकि विष्णु संसार की रक्षा करते हैं अत: रोगों से रक्षा करने वाले धन्वंतरि को विष्णु का अंश माना गया। विषविद्या के संबंध में कश्यप और तक्षक का जो संवाद महाभारत में आया है, वैसा ही धन्वंतरि और नागदेवी मनसा का ब्रह्मवैवर्त पुराण (३.५१) में आया है। उन्हें गरुड़ का शिष्य कहा गया है –
‘सर्ववेदेषु निष्णातो मन्त्रतन्त्र विशारद:।
शिष्यो हि वैनतेयस्य शंकरोस्योपशिष्यक:।। (ब्र.वै.३.५१)
जिन्हे वासुदेव धन्वंतरि कहते हैं, जो अमृत कलश लिए हैं, सर्व भयनाशक हैं, सर्व रोग नाश करते हैं, तीनों लोकों के स्वामी हैं और उनका निर्वाह करने वाले हैं; उन विष्णु स्वरूप धन्वंतरि आप सब लोगों के आरोग्य की रक्षा करें ।पर मुतरेजा मानने को तैयार नहीं है।वे आज ज़रूर किसी सोने चाँदी की दुकान में पाए जायगें।
धनतेरस की आप सबको मंगलकामनाएँ।
काशी में धन्वन्तरी का मंदिर
साभार: हेमंत शर्मा
Mutreja ji is very happy. Today he has to buy Guinea. Guinea means gold currency. I asked why would you buy? Mutreja laughed at my ignorance and said that Lakshmi is pleased by buying gold and silver on Dhantrayodashi i.e. Dhanteras. The path for their entry into the house is paved. Tomorrow is Dhanteras. Those who cannot buy gold and silver. They buy utensils. I was amazed by Mutreja’s knowledge. Mutreja said hesitantly and shyly, Sir, buying gold definitely pleases Goddess Lakshmi. Bibi also. Mutreja is currently going through the golden period of married life.
I said Mutreja is right, Dhanteras is the onset of Diwali. We stand at the threshold of Dhanteras and look towards Diwali. That is why Dhanteras is associated with Lakshmi. But this is the festival of health. Actually, Dhanteras is a festival of awareness between health and prosperity. We consider Dhanteras only as an opportunity to buy gold, silver and utensils. And consider it a means to please Lakshmana. But along with the rituals of Lakshmi Puja and buying new utensils, Dhanteras is also the birthday of Lord Dhanvantari, the founder of Ayurveda and the god of medicine. This is its significance in the scriptures. Because our scriptures consider health also as wealth. Dhanvantari is counted among the originators of Indian medical system. He is mentioned in the Vedas. In the Puranas, he has been called the incarnation of Vishnu. Dhanvantari was also one of the fourteen gems that came out in the churning of the ocean. . He was the son of Kashi Rajdhanya, hence called ‘Dhanvantari’.
But Mutreja was not ready to accept. He started saying that you talk about scriptures, I talk about tradition. Gold is bought here traditionally. By doing this, grandfather used to please grandmother, father used to please mother. I will do this for my wife’s happiness. Seeing Mutreja’s clinging to tradition, I said he would definitely buy it but let me tell you the story.
Today itself he came out of Dhanvantari Samudra Manthan carrying the nectar pot. He is one of the recognized deities in Hindu religion. He is considered the pioneer of Ayurveda and the god of medical science. He is mentioned in Mahabharata, Shrimad Bhagwat, Agnipuran, Vayupuran, Vishnapuran and Brahmapuran. Dhanvantari is the 12th incarnation among the 24 incarnations of Vishnu mentioned in Shrimad Bhagwat. In Samudra Manthan, the moon emerged on Sharad Purnima, Kamadhenu cow on Kartik Dwadashi, Dhanwantari on Trayodashi, Kali Mata on Chaturdashi and Goddess Lakshmi ji emerged from the ocean on Amavasya. . That is why the birth of Dhanvantari is celebrated as Dhanteras, two days before Diwali. On this day he invented Ayurveda.
Like the form of Lord Vishnu, Dhanvantari also has four arms. Conch and Chakra are worn in both the upper arms. Whereas in the other two arms, one is holding Jaluka and medicine and the other is carrying nectar pot. Their favorite metal is considered to be brass. That is why there is a tradition of buying brass utensils etc. on Dhanteras. The doctors who practice Ayurveda call him the God of Health – Ayurveda is the Upveda of Atharvaveda. According to Sushruta Samhita
Brahma said, Then the Creator arose, Therefore the two Aśvinī-kumāras, Indra from the Aśvinī-kumāras, and I from Indra But here for the sake of the welfare of the people
That means Brahma composed Ayurveda of one lakh verses which had one thousand chapters. Prajapati studied from him, Ashwini Kumars from Prajapati, Indra from Ashwini Kumars and Indra from Seghvantari. Hearing from Dhanvantari, Sushruta Muni composed Ayurveda.
According to the Nalanda Vishal Shabdasagar, ” Ayurveda is the medical science, the medical science prescribed by Dhanvantari.
In the Vayu and Brahmana Puranas, Dhanvantari is described as the savior of Ayurveda. In mythological times, Dhanvantari was worshiped as Lord: ‘Dhanvantaribhagavan patvapathyat’ The Charaka Samhita also prescribes offering sacrifices to Dhanvantari.
Dhanvantari was the king of Kashi. In the Puranas, Kashiraja Divodas is called Dhanvantari. Sushruta expressed his desire to study surgery, so Dhanvantari preached this part. In the five places of Sushruta (Sutra, Nidan, Body Chikitsa and Kalpa) the subject of surgery is the predominant one. That is why some people have mastered the meaning of the word Dhanvantari in surgery. (Dhanvantari means that the bow is going to cross the end of the sword)
Later Dhanvantari became a sect which is related to surgery. All those who were adept in surgery were called Dhanvantari. Due to this, the plural form Dhanvantariyaan is found in Charak Samhita. It is clear that the first preacher was Dhanvantari. This organ started functioning in his name. According to Garun and Markandeya Puranas: – According to ‘Garudapuran’ and ‘Markandeyapuran’, Dhanvantari Vaidya was called because he was blessed with the Veda mantras.
According to Vishnu Purana:- Dhanvantari is said to be the son of Dirghatatha. It is told in this that Dhanvantari has a body and senses free from all the disorders and knows all the scriptures in all the births. Lord Narayan had given him this boon in his previous birth that by being born in the lineage of Kashiraj, he would perform the eight parts of Ayurveda and become the enjoyer of the Yagya part.
According to Brahma Purana:- Dhanvantari, the great-grandson of Kash, the founder of Kashi, the son of Dhanva, the king of Kashi, was a great physician who attained the status of a god. King Dhanva worshiped the god today and pleased him and asked him for a boon that O Lord you should descend as a son in our house . who attained the position of god.
In his lineage was Divodas, who established the world’s first school of ‘surgery’ in Kashi, whose principal, the disciple of Divodas and the originator of ‘Sushruta Samhita’, son of Rishi Vishwamitra, Sushruta was the world’s first surgeon. In Banaras, Lord Dhanvantari is worshiped everywhere on Kartik Trayodashi-Dhanteras. What a wonderful history this city has. Shankar drank poison, Dhanvantari provided nectar and this Kashi became a timeless city. Three forms of Dhanvantari are available.
Dhanvantari first, born from the churning of the ocean.
Dhanvantari II, son of Dhanva.
Kashiraja Divodas Dhanvantari III.
Apart from the Puranas, the description of Dhanvantari I and II is also found in Ayurveda texts – in which it is mentioned in various forms in the ancient texts of Ayurveda, Susrutra Samhita, Charak Samhita, Kashyap Samhita and Ashtanga Hridaya. Apart from this, the context of Ayurvedic incarnation is mentioned in other Ayurvedic texts like Bhava Prakash, Shargadhar and other contemporary texts. In this, light has also been thrown regarding Lord Dhanvantari.
The importance and place that Ashwini Kumar had in the Vedic period was given to Dhanvantari in the mythological period – where Ashwini had the honey pot in her hand, Dhanvantari got the nectar pot. Because Vishnu protects the world, Dhanvantari, who protects from diseases, was considered a part of Vishnu. The dialogue between Kashyap and Takshak regarding poison has been mentioned in Mahabharata, similar to that between Dhanvantari and Nagdevi Manasa has been mentioned in Brahmavaivarta Purana (3.51). He is said to be the disciple of Garuda – ‘Sarvavedeshu Nishnato Mantratantra Visharadah. शिश्यो हि वैन्तेयस्य शंकरोस्योपशिश्यकः। (BR.Va.3.51)
Whom Vasudev calls Dhanvantari, who carries the pot of nectar, who destroys all fears, destroys all diseases, is the master of the three worlds and is their sustainer; May that Vishnu form Dhanvantari protect the health of all of you. But Mutreja is not ready to accept. He will definitely be found in some gold and silver shop today.
Best wishes to all of you on Dhanteras.
Dhanvantari temple in Kashi
Courtesy: Hemant Sharma