जीवन की मूल आत्म-जिज्ञासायें व सम्भावित समाधान
१. भगवान कौन हैं ?
भगवान हैं केवल श्री कृष्ण जो साकार हैं | वे समस्त कारणों के अन्तिम कारण हैं और न तो कोई उनके समान है और न ही उनसे बड़ा | ईश्वर: परम: कृष्ण: सच्चिदानन्द: विग्रह:, अनादिरादि गोविन्द: सर्व कारण कारणम: |
२. मैं कौन हूँ तथा मेरा और भगवान का क्या सम्बन्ध है ?
मै आत्मा हूँ, यह शरीर नहीं हूँ बल्कि भगवान का शाश्वत अंश व नित्य दास हूँ | भगवान हमारे अंतरंग स्वामी, मित्र, पिता, या पुत्र तथा माधुर्य प्रेम के लक्ष्य है |
३. मैं इस जगत में क्यूँ हूँ ?
मैं श्री कृष्ण से अपना सनातन सम्बन्ध भूल गया हूँ | मैं स्वामी व भोक्ता बन कर इस भौतिक जगत का भोग करना चाहता हूँ, इसलिए इस भौतिक जगत में अपने कर्मों व उनके फल अनुसार देहान्तर करता रहता हूँ |
४. मैं इस शरीर में क्यूँ हूँ और कष्ट क्यों भोग रहा हूँ ? मै तीन प्रकार के संतापो (आध्यात्मिक, अधिभौतिक व अधिदेविक) को भोगने के लिए क्यों बाध्य किया जाता हूँ ?
अपने पूर्व जन्मो में किये गए कार्यो व अतृप्त इच्छाओं की पूर्ति के कारण मुझे ये शरीर प्रदान किया गया है | मैं अपने आप को शरीर, इसकी उपाधियों, इसके संबंधियों तथा इस संसार में आसक्ति के कारण इन्द्रियतृप्ति में लगा हूँ |
मैंने भगवान के साथ अपने सनातन सम्बन्ध को भुला दिया है, इसलिए कष्ट भोग रहा हूँ | वैसे भी कृष्ण भगवान ने गीता में बताया है कि यह जगत दुखालय है | सारे कष्ट अज्ञान या हमारी अविद्या के कारण हैं | यदि भूमि के जीव को जल में डाल दिया जाए या जल के जीव को भूमि पर रहने के लिए मजबूर किया जाए तो वह हमेशा कष्ट में रहेगा | इसी प्रकार मैं इस भौतिक जगत में, जो एक कारागार के समान है, कष्ट भोग रहा हूँ |
५. मेरा नित्य कर्म क्या है ?
अपने आप को भगवान का दास समझ कर भगवान तथा उनके भक्तों की प्रेम-मयी सेवा तथा प्रह्लाद महाराज द्वारा बताई भक्ति विधि में किसी भी विधि में स्थित हो कर कृष्णभावनामृत को ग्रहण करना |
भगवान केवल अनन्य भक्ति के द्वारा ही जाने जा सकते व प्राप्त किये जा सकते हैं | केवल ऐसी भक्ति ही मेरा नित्य कर्म है | तथा इस वर्तमान बद्ध जीवन में अर्जित विशेष स्वाभाव के अनुसार अपने शरीर, मन, इन्द्रिय, बुद्धि या चेतना से जो कुछ भी करूँ, उसे केवल भगवान की प्रसन्नता के लिए ही करूँ |
- जन्म, मृत्यु, बुढ़ापा व रोग जैसे कष्टो से छुटकारा पाने अर्थात अमरता का स्थाई समाधान क्या है ?
भगवान के पवित्र नाम (हरे कृष्ण महामंत्र ) का प्रेम-पूर्ण कीर्तन व श्रवण, उनके रूप, गुण व लीला का लगातार चिंतन | अपने सारे नियत कर्मो को स्वामित्व व अहंकार की भावना से रहित होकर भगवान श्री कृष्ण की प्रसन्नता के लिए करना तथा समस्त कर्मफलों को भगवान कृष्ण की सेवा में समर्पित करना |
भगवान श्री कृष्ण व उनके शुद्ध भक्तों की प्रेमपूर्ण सेवा | इन भक्तियुक्त कर्मों को सम्पूर्ण करके जन्म, मृत्यु, बुढ़ापा व रोग जैसे कष्टो से छुटकारा पा कर इसी मानव जीवन में हम जीवन की सर्वोच्च सिद्धि भगवत्प्रेम पा सकते हैं और भगवद्-धाम वापस जा सकते हैं अर्थात मृत्यु पर विजय पा सकते हैं | हमें फिर से माता के गर्भ में न जाना पड़ेगा | भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है “इस जगत में सर्वोच्च लोक से लेकर निम्नतम सारे लोक दुखों के घर हैं जहाँ जन्म तथा मृत्यु का चक्कर लगा रहता है, किन्तु जो मेरे धाम को प्राप्त कर लेता है वह फिर कभी जन्म नहीं लेता” |
हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे ; हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे !
🌺🙏जय श्री राधे कृष्णा 🙏🌺