गृहस्थाश्रम भगवत्प्राप्ति का सही मार्ग हैं। गृहस्थ धर्म में मै को त्याग कर अपने परिवार के प्रति त्याग भाव से अपनेपन से समर्पित भाव से घर को जो चलाता है। घर में सदस्यों के प्रति सच्चा भाव परमपिता परमात्मा की सच्ची पुजा है। ऐसे घर में भगवान् भी दर्शन देने आ जाते हैं। साधक कहता है कि हे प्रभु हे स्वामी हे भगवान् नाथ मैने गृहस्थ धर्म को अपनाया है। मेरा पहला कर्तव्य गृहस्थ धर्म के सब कार्य शुद्धता पूर्वक करना है। आज मैं तुम्हारा चिन्तन मन्न कार्य करते हुए कर लेता हूँ। जब गृहस्थ परमात्मा का चिन्तन करने लगता है और परमात्मा से जुड़ जाता है। परमात्मा में लीन पवित्र मन से गृहस्थ के सब कार्य प्रेम से करता है। कार्य हाथ से करता जाता है और प्रभु प्यारे से बात चल रही है कभी नमन करता कभी वन्दन कर देता। कई बार ऐसा लगता मानो ये कार्य नहीं ये मेरे स्वामी भगवान् नाथ श्री हरि की सेवा हैं। भगवान भक्त पर प्रकाश की किरणें बिखेर कर भक्त को आन्नद मगन कर देते हैं।
भक्त भगवान् नाथ का चिन्तन और वन्दन करते हुए कर्म करता है। भक्त मोक्ष की भी कामना नहीं करता। भक्त कहता है कि हे परमात्मा जी हे प्रभु प्राण नाथ बस मैं तुम्हें अन्तर्मन से ऐसे ही निहारता रहु। जो अन्तर्मन में निहारने में आन्नद है। वह मोक्ष में नहीं।एक सच्चा साधक मोक्ष नहीं भगवत स्वरूप बन जाता है।
जय श्री राम
अनीता गर्ग
Grihasthashram is the right path to God realization. In the householder religion, the one who runs the house with devotion towards his family by sacrificing me and with devotion towards his family. True devotion towards the members in the house is the true worship of the Supreme Father, the Supreme Soul. God also comes to give darshan in such a house. The seeker says that O Lord, O Lord, O Lord Nath, I have adopted the householder religion. My first duty is to do all the tasks of the householder’s religion with purity. Today I meditate on you while doing mindful work. When the householder starts thinking of God and gets connected with God. With a pure mind absorbed in God, he does all the work of the householder with love. The work is done by hand and the Lord is talking to the beloved, sometimes he bows down, sometimes he bows down. Sometimes it seems as if this is not work, it is the service of my lord Bhagwan Nath Shri Hari. By spreading the rays of light on the devotee, the Lord makes the devotee happy. The devotee acts while contemplating and worshiping Lord Nath. The devotee does not even wish for salvation. The devotee says that oh God, oh Lord Pran Nath, just keep looking at you like this. Which is a joy to behold within. He is not in salvation. A true seeker becomes God’s form, not salvation. Long live Rama Anita Garg