रोम रोम में राम

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भक्त भगवान को भजते हुए, भक्त भगवान राम में समा जाना चाहता है।भक्त राम राम राम भजता रहता है। भक्त के दिल में एक ही प्रार्थना होती है मेरे राम का सिमरण कर लु। भगवान के सिमरन और भगवान को भजने में दो अलग भाव है ।भक्त भगवान का सिमरण माला लेकर आसन पर बैठ कर करता है समय सीमा में करता है भगवान को स्मरण (भजते ) में माला नहीं है समय भी नहीं है।
भक्त भगवान को हर घडी हर पल भजना चाहता है। भक्त के दिल में तङफ की लहर उठती है अहो मेरे स्वामी भगवान नाथ राम जी को रोम रोम में बिठा लु राम राम राम श्री राम श्री राम श्री राम फिर राम राम भजती और सोचती हू आज अंजुलि भर राम राम का सिमरण और स्मरण करूगी ।भगवान को भजते हुए सुबह से शाम हो जाती है फिर भी देखता है अंजुलि भरी नहीं है। भक्त रात दिन एक हो जाता है। चंदा की रोशनी में प्रभु प्राण नाथ का प्रेम भाव जाग्रत हो जाता है। तब भगवान को सिमरने का भाव गहरा हो जाता है। सांस सांस से भगवान को पुकारता है।चंद्रमा की किरणें दिल में शान्ति पैदा करती है दिल में मिलन के सपने संजो लेती हू भगवान भजते हुए चार बज जाते हैं। गुरुदेव को प्रणाम करती हूँ। प्रभु प्राण नाथ के प्रेम में अंजुलि भर्ती नहीं दिल की प्यास बढती जाती है। रोम रोम में राम नाम अंकीत तभी हो सकता है जब भक्त की भगवान से मिलन की तीव्र इच्छा होती है।   भक्त भगवान को कर्म करते हुए भजता है तब अपने अन्तर्मन को टटोलते हुए देखता है। कब भगवान को भजते हुए शुद्धता बनती है। वह देखता कर्म करते हुए सबसे शुद्ध भाव है। क्योंकि भक्त भगवान को भजते है ही नहीं। ऐसे भक्त की यही किरया वर्षों तक चलती रहती है भक्त भगवान को संसारिक सुख के लिए नहीं भजता है। भक्त भगवान मे समा जाना चाहता है ।भक्त जानता है जगत मे जो सुख दिखाई देता है। वह मन की भुख है। भगवान के आंनद और प्रेम  रस के स्वाद के सामने जगत के सब सुख फीके है। तेरे आनंद मे डुब जाऊंगी ।मै तेरी हूँ तेरी बन जाऊंगी। ऐसे भगवान राम राम सिमरन करते हुए एक दिन रोम रोम में राम नाम अंकित हो ।राम राम श्री राम राम भजते हुए पहरेदार खङे हो जाते हैं।वे भगवान नाम को गहराई से भजने नही देते हैं । भगवान नाथ का स्तुति दिल में प्रकट हो जाती है। भक्त  भगवान मे खो जाना चाहता है ।दिल की धड़कन तुम्हें पुकारती है। तुम कंहा छीप गए हो। भक्त फिर भगवान को पुकारते हुए कहता है कि हे नाथ तुम इन नैनो में छीप जाओ ।दिल के सिहासन पर तुम्हें विराजमान कर लुगीं। तन मन धन अर्पण कर दुगीं।  भक्त भगवान का स्मरण कर रहा है। सिमरण में भक्त है। स्मरण मे भक्त है ही नहीं सबकुछ परम तत्व परमात्मा है जय श्री राम अनीता



The devotee wants to get absorbed in Lord Rama while worshiping the Lord. The devotee keeps on worshiping Ram Ram Ram. There is only one prayer in the heart of the devotee, remember my Ram. There are two different expressions in worshiping God and worshiping God. The devotee performs the simran of God by sitting on the seat with a garland, does it within the time limit, there is no garland in the remembrance (Bhajate) of God. The devotee wants to worship the Lord every hour and every moment. A wave of tension rises in the heart of the devotee, oh my lord Bhagwan Nath make Ram ji sit in Rome, Ram Ram Ram Shri Ram Shri Ram Shri Ram again Ram Ram and I think today I will remember and remember Ram Ram throughout Anjuli. It goes from morning to evening while worshiping her, yet she sees that Anjuli is not full. The devotee becomes one day and night. Prabhu Pran Nath’s love interest gets awakened in the light of donation. Then the feeling of worshiping God deepens. Breath calls out to God with breath. The rays of the moon create peace in the heart. I bow to Gurudev. Anjuli is not admitted in the love of Prabhu Pran Nath, the thirst of the heart increases. Ram Naam in Rom Rome can be inscribed only when the devotee has a strong desire to meet God. When the devotee worships the Lord while doing his work, then he sees his conscience groping. When does one become pure by worshiping God? He sees the purest feeling while doing action. Because devotees do not worship God at all. This kind of work of such a devotee continues for years, the devotee does not worship God for worldly happiness. The devotee wants to be absorbed in the Lord. The devotee knows the happiness that is seen in the world. It is the hunger of the mind. All the pleasures of the world have faded in front of the taste of God’s joy and love. I will drown in your joy. I will become yours. While doing such Lord Ram Ram Simran, one day the name of Ram is inscribed in Rome. Ram Ram Shri Ram, the guards stand standing while worshiping Ram. They do not allow the Lord to chant deeply. The praise of Lord Nath appears in the heart. The devotee wants to get lost in God. The heartbeat calls out to you. where have you hid The devotee then calls out to God and says that O Nath, you hide in these nanos. I will make you sit on the throne of the heart. I will give money by offering my body and mind. The devotee is remembering the Lord. There is a devotee in Simran. There is not only a devotee in remembrance, everything is the Supreme God, Jai Shri Ram Anita

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