हम जीवन में रस चाहते हैं रस हमारा स्वास्थ्य बनाता है रस हमारे जीवन का आधार स्तम्भ है। रस के बैगर जीवन अधुरा है।रस हमारे अन्तर्मन को खुशियों से भरता है हम रस की प्राप्ति के नये नये साधन अपनाते हैं।रस की प्राप्ति के लिए हम जीवन में अथक परिश्रम करते हैं रस प्राप्ति की इच्छा पुरण नहीं होती तब तृष्णा बढ जाती है। हमे देखना यह है कोन सा ऐसा रस है जिस से हम तृप्त, शांति मिलती है।हम आनंद प्राप्ति से ऊपर उठ जाते हैं। हम सब बाहर के रस भौतिक सुखों को जीवन समझ बैठे हैं और सहनशीलता हमारे अन्दर प्रकट होती नहीं है। हम खुश होते हैं। खुशी का दायरा बहुत छोटा है खुशी से हम तृप्त नहीं हो सकते हैं। खुशी सैदव की नहीं होती है वह हवा का झोंका है।
संसार में ऐसा कोई भी पदार्थ बना ही नहीं है जिससे हम तृप्त हो जाएगे। तृप्ति श्री हरी के चिन्तन मनन और ध्यान में है। ईश्वर नाम रस अमृत है विरला ही नाम रस से अन्तर्मन के रस को जाग्रत कर पाता है। भगवान की कथा कीर्तन ग्रंथों का अध्ययन करते हुए भी हम समझ नहीं पाते हैं। रस कोन सा प्राप्त हो रहा है। ईश्वर चिन्तन करते हुए भी हम यह नहीं समझ पाते हैं रस बन रहा है। रस दो प्रकार का है बाहरी रस, अंतर्मन का रस। आज मोबाइल TV के माध्यम से हम कथा कीर्तन ग्रथों का रस प्राप्त करते हैं। यह रस बाहरी रस है हम समझते हैं हम बहुत कुछ कर रहे हैं। यह सब करके हम बहुत खुश होते हैं। हम इसमे उलझ कर रह
जाते हैं आनंदित होते हैं। क्या यह रस हमें बना सकता है। नहीं यह एक हवा के झोके जितनी ठण्डक प्रदान करता है यह रस हमें ऊपरी तौर पर ऊर्जा देता है। बाहर की ऊर्जा से क्या कोई बन पाया है हमारे अन्तर्मन को तृप्त नहीं करता है। बाहर का ज्ञान बाहर ही रह जाता है। हमे अपनी परख करनी चाहिए बाहर के ज्ञान से क्या मुझमें कुछ परिवर्तन हुआ क्या मुझे अन्तर्मन मे तृप्ति महसूस हुई क्या मुझमें पवित्र भावना ने जन्म लिया। क्या हम भगवान के नजदीक आए, क्या दिल में प्रेम की मधुर झाँकी सजी, दिल में प्रभु मिलन के सपने सजे, नैनो में प्रभु का नुर समाया। बाहर के रस से यह सब हुआ ही नहीं क्यों की दिल में रस बनता तब यह सब होता है। दिल की धड़कन पुकार लगाती नाम ध्यान चिन्तन करते हुए प्रभु प्रेम में खो जाते तब रस बनता रस से तृप्त होते।
आज हम बाहर के वातावरण के रस को रस समझ बैठे हैं। हम समझते हैं मै बहुत कुछ करता हूँ फिर भी प्रभु कृपा को महसूस नहीं होती है। मन उठा उठा सा रहता है। शक्ति का संचार नहीं होता है कुछ दिन अच्छा लगता है। फिर वही सुबह और शाम है। बाहरी रस आपको मजबूत सहनशील प्रभु प्रेम के मार्ग पर नहीं लेकर जा सकता है। आप अपने दिल में खोज करके देखे क्या परमात्मा से मिलन की आत्म तत्व की जागृति की तङफ है।नाम जप करते हुए हमारे अन्दर रस की उत्पत्ति होती है। हम समझते हैं बस अब मैं बहुत करता हूं।यह रस भी मिश्रित रस है नाम जप रस में भाव की प्रधानता है नाम जप सेभक्त का परिचय अपने भीतर के रस और आनन्द से होता है। कथा के भाव रस से भरे हुए हैं। कीर्तन में रस बरसता है। लेकिन यह सब रस हमारे हृदय में प्रेम को उत्पन्न नहीं करते हैं। अ प्राणी अभी तक तु अन्य साधनों में रस की खोज करता है। तु अनजान ही है तु सोचता है कथा कीर्तन ग्रंथ तुझे पार कर देंगे। यह सब बाहर के रस है। रस में पुरण शुद्धता नहीं है। यह रस कभी-कभी मै का रूप भी लेता है। जब तक मैं है तब तक जो भी हम नाम जप रस भाव प्रधान है। भाव बनता है तब आनंद और प्रेम बनता है। अधिक आनंद आता है तब दर्द पैदा होता है।हम समझ नहीं पाते हैं क्या किया जाए। खोज भीतर से करते हुए आगे बढ़ते हैं। हृदय में भगवान दिखाई देते हैं समझते हैं सब हो गया नहीं हमे अपनी परख करनी है क्या मै शुद्ध भाव हूं ।कुछ समय खोज करने पर आभास होता है यह पुरण दर्शन नहीं है हमारे मार्ग पुरण नहीं हुए हैं। माला मुर्ति मन्दिर ग्रथं से ऊपर उठ , तु अपने अन्दर खोज कर परमात्मा ने तुझे पुरण रूप से बना कर पृथ्वी पर पैदा किया है तु एक बार मनके मणके को घुमा कर देख तु भीतर झांक कर देख अपने भीतर के आत्मविश्वास की जागृति के लिए बाहर के मार्ग से ऊपर उठ जाते हैं। अंतर्मन की यात्रा में शुद्ध रस कैसे बने भक्त देखता है जो भाव भावना बनती और बिगड़ती है। वह सत्य नहीं है। मुझे अन्य मार्ग की खोज करनी है। जंहा एक तरंग है। आनन्द का सागर है। भक्त का दिलुश्री हरि में समर्पित है। भक्त उस सागर में डुबकी लगाना नहीं चाहता है। प्रेम रस में भक्त कुछ भी प्राप्त करना नहीं चाहता है
तेरे अन्तर्मन मे रस के भण्डार है। आत्म चिन्तन के मार्ग पर आने के लिए हमें साधना करते हुए सबकुछ त्याग कर आगे बढते जाए अपने अन्दर आनंद को प्रकट न होने दे। हम सगुण साकार से निराकार रूप में आते हैं कई वर्ष लग जाते हैं। समझ नहीं पाते हैं हमारे मार्ग ठीक है क्या आपको खोज अन्तर्मन से करनी है। बाहर के सहारे पर चलने वालों के मार्ग पुरण नहीं हो सकते हैं। मार्ग की खोज के लिए समभाव की भावना बनना आवश्यक है। रात भर चिन्तन करना मेरा प्रभु प्राण नाथ से साक्षात्कार भी होगा ऐसा कौन सा मार्ग है मार्ग अभी पुरण नहीं हुआ है। एक सच्चा भक्त आनंद रस का त्याग कर देता है। भाव का त्याग कर देता है। वह जानता है यह सब मार्ग के पङाव है। वह रस को पीना नहीं चाहता है। वह जानता है भाव को अपने भीतर समेटने का मार्ग बहुत कठिन और कठोर है। आनन्द को प्राप्त नहीं करना चाहता है। मैं के साथ भाव है मै नहीं हूं में भाव नहीं है। चेतन आत्मा का अनुभव एकत्व की ओर है।।।
आप पूरण बनो पूरण संत की पहचान तभी जान सकते हो। वह परमात्मा जितना मुझमे विराजमान हैं उतना ही अन्य मे विराजमान दिखाई देता है भक्त की सन्त से मिलन की तङफ जितनी होती है उसी के अनुसार सन्त महात्मा आकर हमारी सम्भाल करते हैं।
कुछ प्राप्त करना शेष ही नहीं रहता है सबकुछ ईश्वरमय है हो जाता है अनुभूति बहुत पहले होने लगती है। मै कोन हूं के मार्ग को पकड़ कर सब आत्मरूप है जय श्री राम अनीता गर्ग
हम जीवन में रस चाहते हैं रस हमारा स्वास्थ्य बनाता है रस हमारे जीवन का आधार स्तम्भ है। रस के बैगर जीवन अधुरा है।रस हमारे अन्तर्मन को खुशियों से भरता है हम रस की प्राप्ति के नये नये साधन अपनाते हैं।रस की प्राप्ति के लिए हम जीवन में अथक परिश्रम करते हैं रस प्राप्ति की इच्छा पुरण नहीं होती तब तृष्णा बढ जाती है। हमे देखना यह है कोन सा ऐसा रस है जिस से हम तृप्त, शांति मिलती है।हम आनंद प्राप्ति से ऊपर उठ जाते हैं। हम सब बाहर के रस भौतिक सुखों को जीवन समझ बैठे हैं और सहनशीलता हमारे अन्दर प्रकट होती नहीं है। हम खुश होते हैं। खुशी का दायरा बहुत छोटा है खुशी से हम तृप्त नहीं हो सकते हैं। खुशी सैदव की नहीं होती है वह हवा का झोंका है। संसार में ऐसा कोई भी पदार्थ बना ही नहीं है जिससे हम तृप्त हो जाएगे। तृप्ति श्री हरी के चिन्तन मनन और ध्यान में है। ईश्वर नाम रस अमृत है विरला ही नाम रस से अन्तर्मन के रस को जाग्रत कर पाता है। भगवान की कथा कीर्तन ग्रंथों का अध्ययन करते हुए भी हम समझ नहीं पाते हैं। रस कोन सा प्राप्त हो रहा है। ईश्वर चिन्तन करते हुए भी हम यह नहीं समझ पाते हैं रस बन रहा है। रस दो प्रकार का है बाहरी रस, अंतर्मन का रस। आज मोबाइल TV के माध्यम से हम कथा कीर्तन ग्रथों का रस प्राप्त करते हैं। यह रस बाहरी रस है हम समझते हैं हम बहुत कुछ कर रहे हैं। यह सब करके हम बहुत खुश होते हैं। हम इसमे उलझ कर रह जाते हैं आनंदित होते हैं। क्या यह रस हमें बना सकता है। नहीं यह एक हवा के झोके जितनी ठण्डक प्रदान करता है यह रस हमें ऊपरी तौर पर ऊर्जा देता है। बाहर की ऊर्जा से क्या कोई बन पाया है हमारे अन्तर्मन को तृप्त नहीं करता है। बाहर का ज्ञान बाहर ही रह जाता है। हमे अपनी परख करनी चाहिए बाहर के ज्ञान से क्या मुझमें कुछ परिवर्तन हुआ क्या मुझे अन्तर्मन मे तृप्ति महसूस हुई क्या मुझमें पवित्र भावना ने जन्म लिया। क्या हम भगवान के नजदीक आए, क्या दिल में प्रेम की मधुर झाँकी सजी, दिल में प्रभु मिलन के सपने सजे, नैनो में प्रभु का नुर समाया। बाहर के रस से यह सब हुआ ही नहीं क्यों की दिल में रस बनता तब यह सब होता है। दिल की धड़कन पुकार लगाती नाम ध्यान चिन्तन करते हुए प्रभु प्रेम में खो जाते तब रस बनता रस से तृप्त होते। आज हम बाहर के वातावरण के रस को रस समझ बैठे हैं। हम समझते हैं मै बहुत कुछ करता हूँ फिर भी प्रभु कृपा को महसूस नहीं होती है। मन उठा उठा सा रहता है। शक्ति का संचार नहीं होता है कुछ दिन अच्छा लगता है। फिर वही सुबह और शाम है। बाहरी रस आपको मजबूत सहनशील प्रभु प्रेम के मार्ग पर नहीं लेकर जा सकता है। आप अपने दिल में खोज करके देखे क्या परमात्मा से मिलन की आत्म तत्व की जागृति की तङफ है।नाम जप करते हुए हमारे अन्दर रस की उत्पत्ति होती है। हम समझते हैं बस अब मैं बहुत करता हूं।यह रस भी मिश्रित रस है नाम जप रस में भाव की प्रधानता है नाम जप सेभक्त का परिचय अपने भीतर के रस और आनन्द से होता है। कथा के भाव रस से भरे हुए हैं। कीर्तन में रस बरसता है। लेकिन यह सब रस हमारे हृदय में प्रेम को उत्पन्न नहीं करते हैं। अ प्राणी अभी तक तु अन्य साधनों में रस की खोज करता है। तु अनजान ही है तु सोचता है कथा कीर्तन ग्रंथ तुझे पार कर देंगे। यह सब बाहर के रस है। रस में पुरण शुद्धता नहीं है। यह रस कभी-कभी मै का रूप भी लेता है। जब तक मैं है तब तक जो भी हम नाम जप रस भाव प्रधान है। भाव बनता है तब आनंद और प्रेम बनता है। अधिक आनंद आता है तब दर्द पैदा होता है।हम समझ नहीं पाते हैं क्या किया जाए। खोज भीतर से करते हुए आगे बढ़ते हैं। हृदय में भगवान दिखाई देते हैं समझते हैं सब हो गया नहीं हमे अपनी परख करनी है क्या मै शुद्ध भाव हूं ।कुछ समय खोज करने पर आभास होता है यह पुरण दर्शन नहीं है हमारे मार्ग पुरण नहीं हुए हैं। माला मुर्ति मन्दिर ग्रथं से ऊपर उठ , तु अपने अन्दर खोज कर परमात्मा ने तुझे पुरण रूप से बना कर पृथ्वी पर पैदा किया है तु एक बार मनके मणके को घुमा कर देख तु भीतर झांक कर देख अपने भीतर के आत्मविश्वास की जागृति के लिए बाहर के मार्ग से ऊपर उठ जाते हैं। अंतर्मन की यात्रा में शुद्ध रस कैसे बने भक्त देखता है जो भाव भावना बनती और बिगड़ती है। वह सत्य नहीं है। मुझे अन्य मार्ग की खोज करनी है। जंहा एक तरंग है। आनन्द का सागर है। भक्त का दिलुश्री हरि में समर्पित है। भक्त उस सागर में डुबकी लगाना नहीं चाहता है। प्रेम रस में भक्त कुछ भी प्राप्त करना नहीं चाहता है तेरे अन्तर्मन मे रस के भण्डार है। आत्म चिन्तन के मार्ग पर आने के लिए हमें साधना करते हुए सबकुछ त्याग कर आगे बढते जाए अपने अन्दर आनंद को प्रकट न होने दे। हम सगुण साकार से निराकार रूप में आते हैं कई वर्ष लग जाते हैं। समझ नहीं पाते हैं हमारे मार्ग ठीक है क्या आपको खोज अन्तर्मन से करनी है। बाहर के सहारे पर चलने वालों के मार्ग पुरण नहीं हो सकते हैं। मार्ग की खोज के लिए समभाव की भावना बनना आवश्यक है। रात भर चिन्तन करना मेरा प्रभु प्राण नाथ से साक्षात्कार भी होगा ऐसा कौन सा मार्ग है मार्ग अभी पुरण नहीं हुआ है। एक सच्चा भक्त आनंद रस का त्याग कर देता है। भाव का त्याग कर देता है। वह जानता है यह सब मार्ग के पङाव है। वह रस को पीना नहीं चाहता है। वह जानता है भाव को अपने भीतर समेटने का मार्ग बहुत कठिन और कठोर है। आनन्द को प्राप्त नहीं करना चाहता है। मैं के साथ भाव है मै नहीं हूं में भाव नहीं है। चेतन आत्मा का अनुभव एकत्व की ओर है।।।
You become Puran and only then can you know the identity of a Puran Saint. The more God resides in me, the more he is visible in others. According to the devotee’s desire to meet a saint, the saint and mahatma come and take care of us. There is nothing left to achieve, everything is divine and the realization starts happening much earlier. By following the path of ‘Who am I’, everyone is self-realized Jai Shri Ram Anita Garg