शुद्ध ही बुद्ध है -बौद्ध दर्शन  पर

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सर्वे भवंतु सुखिनः

जो  गुरू उपदेश के अनुरूप हो ग्रहण करें।

भगवान बुद्ध का संदेश है कि

उस दिव्‍य सुख की तुलना में
सांसारिक सुख धूल के समान हैं।

भगवान बुद्ध ने इशारा किया है कि
उस दिव्‍य सुख को प्राप्‍त करो,
जिससे बढकर दूसरा सुख
इस प्रकृति में अन्‍य कुछ भी नहीं।

लेकिन जो वास्‍तव में बुद्धिमान है
वह इस बात को स्‍वीकार करता है  और
इस प्रकृति के माया जाल में नहीं फंसता है।

बुद्ध और शुद्ध
दो शब्‍द हैं

जब तक दोनों का मेल नहीं होगा
तब तक उस दिव्‍य सुख की
प्राप्ति भी नहीं हो सकती।

यदि बुद्धि है
तो शुद्धि भी हो सकती है,

बुद्धि को यदि शरीर का
प्रतीक माना जाये तो
शुद्धि इस शरीर के प्राण का प्रतीक है।

इस पथ में अंतकरण की शुद्धि के बिना
यह बुद्धि भी मृत शरीर की तरह निष्‍प्राण हैं।

बुद्धिमान तो सभी धर्मों में मिलेंगे,
लेकिन बुद्धिमता के साथ साथ
शुद्धता/पवित्रता/पाकता रखने वाले इस संसार में न्‍यूनतम है,

जैसा कि किसी ज्ञानी ने कहा है कि
जो अज्ञानी है और अज्ञानतावश
अज्ञानमय कर्म करता है
वह तो अंधकार में है,
लेकिन जिसने गुरू से ज्ञान अर्जित किया है और
ज्ञानवान होने के बावजूद
सबकुछ जानते हुए समझते हुए भी
जो ज्ञान के विपरीत कर्म कर रहा है,
वह महाअंधकार में है।

जहां शुद्धता है वहां पर
प्रेम है,
करूणा है,
मैत्री है,
मुदिता है

वहां पर
नफरत का
स्‍वार्थ का
अहंकार का
नामोनिशान नहीं है,

वहां तो
क्षमा भाव है,
सत्‍यता का वास है,
अहिंसा का वास है,
संयम का वास है,
परमार्थ का वास है,
संतोष का वास है।

भगवान यानि कि‍
परम सौभाग्‍यशाली,
परम ऐश्‍वर्यवान और
ऐसा भगवान बनने के लिये
पहले अपने अंदर के
शैतान/राक्षस/असुर को मारना होता है,
भग्‍न करना होता है,

जब यह मन के अंदर विद्यमान
शैतान/राक्षस/असुर मर जाता है,
तो वह इंसान बनता है

फिर इंसान बनने के बाद ही
समस्त दुर्गुणों को भग्‍न करके/ त्‍याग करके
वह शीलवान,
गुणवान,
प्रज्ञावान बनता है और
ऐसा गुणवान ही देव यानि के
देने वाला बन जाता है,

वह अपना तन और मन
लोकहित के लिये समर्पित कर देता है।

यह भगवान बुद्ध की वाणी का ही दान था,
जिसने हिंसक अंगुलिमाल को
अहिंसक बना दिया था।

यह उनकी वाणी का ही दान था,
जिसने सम्राट अशोक को
हिंसक से अहिंसक बना दिया।

यह उनके ज्ञान का ही दान था कि
सम्राट अशोक ने
सत्‍यमेव जयते को अत्‍यंत महत्‍व दिया और
आज वह सत्‍यमेव जयते विद्यमान तो है,
लेकिन वह केवल निर्जीव वस्‍तुओं पर ही
लिखा हुआ देखने को मिलता है,



May everyone be happy

Take whatever is in accordance with the Guru’s instruction.

The message of Lord Buddha is that

than that divine happiness Worldly pleasures are like dust.

Lord Buddha indicated that get that divine happiness, second happiness Nothing else in this nature.

but who is really wise He accepts this and One does not get entangled in the illusionary web of this nature.

Buddha and pure there are two words

until the two match till that divine happiness Can’t even get it.

if there is wisdom So there can be purification,

if the body as a symbol Shuddhi symbolizes the vitality of this body.

In this path without purification of conscience This intellect is also lifeless like a dead body. The wise will be found in all religions, but with wisdom The one who has purity/purity/purity is the minimum in this world,

As some wise man said one who is ignorant and ignorant acts ignorant He’s in the dark But one who has acquired knowledge from the Guru and despite being knowledgeable knowing everything and understanding One who is acting contrary to knowledge, He is in great darkness.

where there is purity is love, is compassion, is friendship, Mudita is

over there of hate selfish egoistic no trace,

there then apologetics, Truth resides, non-violence is the abode of sobriety, the abode of charity, There is a sense of satisfaction.

god means that very lucky, most opulent and to be such a god inside you first Shaitan/demons/asuras have to be killed, to be broken,

when it exists inside the mind The devil/demons/asura dies, so he becomes human

only after becoming human By fracturing all the bad qualities he polite, virtuous, become intelligent and Such a virtuous god means the giver becomes

his body and mind Dedicated to the public interest.

It was the gift of the voice of Lord Buddha. who killed the violent Angulimal was made non-violent.

It was the gift of his voice, who gave Emperor Ashoka From violent to non-violent.

It was the gift of his knowledge that Emperor Ashoka gave great importance to Satyamev Jayate and Today that Satyamev Jayate is present, but that only on inanimate objects can be seen written,

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