भक्ति भाव की बात है. मनुष्य का अस्तित्व तीन तलों में विभाजित है. शरीर बुद्धि ह्रदय दूसरी तरह से कहें, तो कर्म विचार भाव इन तीनों तलों से स्वयं की यात्रा हो सकती है. स्थूलतम यात्रा होगी कर्मवाद की,
इसलिए ~ धर्म के जगत में कर्मकांड
स्थूलतम प्रक्रिया है.
दूसरा द्वार होगा
ज्ञान विचार चिंतन-मनन का
दूसरा द्वार पहले से ज्यादा सूक्ष्म है. तीसरा द्वार सूक्ष्मातिसूक्ष्म है. भाव प्रीति प्रार्थना का उस तीसरे द्वार का नाम 'भक्तियोग' है. कर्म से भी लोग पहुँचते हैं, लेकिन बड़ी लंबी यात्रा है. ज्ञान से भी लोग पहुँचते हैं, लेकिन यात्रा संक्षिप्त नहीं है. बहुत सीढ़ियाँ पार करनी पड़ती हैं. पहले से कम, लेकिन तीसरे से बहुत ज्यादा. भक्ति छलाँग है. सीढियाँ भी नहीं हैं ~ दूरी भी नहीं है. भक्ति एक क्षण में फलित हो सकती है. भक्ति केवल भाव की बात है. इधर भाव उधर रूपांतरण कर्म में तो कुछ करना होगा, विचार में कुछ सोचना होगा, भक्ति में न सोचना है न करना है. केवल होना है. इसलिए भक्ति को सर्वश्रेष्ठ कहा है.भक्ति क्या है
भक्ति –> हाथ पैरों से नहीं होती है,
वर्ना ~ विकलांग कभी नहीं कर पाते.
भक्ति –> आँखों से भी नहीं होती है,
वर्ना ~ सूरदास जी कभी नहीं कर पाते.
भक्ति. बोलने सुनने से भी नहीं होती है,
वर्ना गूँगे-बहरे कभी नहीं कर पाते. भक्ति धन और ताकत से भी नहीं होती है. वर्ना गरीब और कमजोर कभी नहीं कर पाते.
भक्ति –> केवल भाव से होती है.
एक अहसास है –> भक्ति
जो हृदय से होकर विचारों में आती है,
और हमारी आत्मा से जुड़ जाती है.
भक्ति ~ भाव का सच्चा सागर है
It is a matter of devotion. The existence of man is divided into three planes. Body intellect, heart, to put it in another way, one’s own journey can be done through these three planes. The grossest journey will be of Karmaism,
Therefore ~ rituals in the world of religion is the grossest process. the second door will be contemplation of knowledge The second door is more subtle than the first. The third door is subtle. Bhava, love, prayer, the name of that third door is ‘Bhaktiyoga’. People also reach by karma, but it is a very long journey. People also reach through knowledge, but the journey is not short. Many stairs have to be crossed. Less than the first, but much more than the third. Devotion is a leap. There are no stairs~ there is no distance. Bhakti can bear fruit in a moment. Bhakti is only a matter of emotion. Here, there is a transformation, something has to be done in karma, something has to be thought in thought, one has not to think or do in devotion. only have to be. Therefore, Bhakti is said to be the best. What is Bhakti?
Bhakti –> does not happen with hands and feet, Otherwise, the disabled can never do it.
Bhakti –> does not happen even with the eyes, Otherwise, Surdas ji could never do it.
devotion. Speaking is not even listening, Otherwise the deaf and dumb would never be able to do it. Devotion is not done by money and power. Otherwise the poor and weak can never do it.
Bhakti –> takes place only through emotion. There is a feeling –> devotion Which comes to thoughts through the heart, and connects with our soul. Bhakti is the true ocean of emotion