अक्सर श्री गणेश की प्रतिमा लाने से पूर्व या घर में स्थापना से पूर्व यह सवाल सामने आता है कि श्रीगणेश की कौन सी सूंड किस तरफ होनी चाहिए? क्या कभी आपने ध्यान दिया है कि भगवान गणेश की तस्वीरों और मूर्तियों में उनकी सूंड दाई या कुछ में बाई ओर होती है। सीधी सूंड वाले गणेश भगवान दुर्लभ हैं। इनकी एक तरफ मुड़ी हुई सूंड के कारण ही गणेश जी को वक्रतुण्ड कहा जाता है।
गणेश भगवान के वक्रतुंड स्वरूप के भी कई भेद हैं। कुछ मूर्तियों में गणेशजी की सूंड को बाई को घुमा हुआ दर्शाया जाता है तो कुछ में दाई ओर। गणेश की अधिकतर मूर्तियां सीधी या उत्तर की ओर सूंड वाली होती हैं। मान्यता है कि गणेश की मूर्ति जब भी दक्षिण की ओर मुड़ी हुई बनाई जाती है तो वह टूट जाती है। कहा जाता है कि यदि संयोगवश आपको दक्षिणावर्ती मूर्त मिल जाए और उसकी विधिवत उपासना की जाए तो अभिष्ट फल मिलते हैं। गणपति जी की बाईं सूंड में चंद्रमा का और दाईं में सूर्य का प्रभाव माना गया है।
इसका है प्रभाव
गणेश जी की सीधी सूंड तीन दिशाओं से दिखती है। जब सूंड दाईं ओर घूमी होती है तो इसे पिंगला स्वर और सूर्य से प्रभावित माना गया है। ऐसी प्रतिमा का पूजन विघ्न-विनाश, शत्रु पराजय, विजय प्राप्ति, उग्र तथा शक्ति प्रदर्शन जैसे कार्यों के लिए फलदायी माना जाता है। वहीं बाईं ओर मुड़ी सूंड वाली मूर्त को इड़ा नाड़ी व चंद्र प्रभावित माना गया है। ऐसी मूर्त की पूजा स्थायी कार्यों के लिए की जाती है। जैसे शिक्षा, धन प्राप्ति, व्यवसाय, उन्नति, संतान सुख, विवाह, सृजन कार्य और पारिवारिक खुशहाली।सीधी सूंड वाली मूर्त का सुषुम्रा स्वर माना जाता है और इनकी आराधना रिद्धि-सिद्धि, कुण्डलिनी जागरण, मोक्ष, समाधि आदि के लिए सर्वोत्तम मानी गई है। संत समाज ऐसी मूर्त की ही आराधना करता है। सिद्धि विनायक मंदिर में दाईं ओर सूंड वाली मूर्त है इसीलिए इस मंदिर की आस्था और आय आज शिखर पर है।
Often before bringing the idol of Shri Ganesha or before establishing it in the house, the question comes that which side should be the trunk of Shri Ganesha? Have you ever noticed that in the pictures and idols of Lord Ganesha, his trunk is on the right or left side in some. Lord Ganesha with straight trunk is rare. Lord Ganesha is called Vakratunda because of his trunk bent on one side.
There are many differences in the Vakratund form of Lord Ganesha. In some idols, the trunk of Ganesha is shown rotating to the left and in some to the right. Most of the idols of Ganesha are straight or with trunk facing north. It is believed that whenever the idol of Ganesha is made facing south, it breaks. It is said that if by chance you find a Dakshinavarti idol and worship it properly, then you get auspicious results. In the left trunk of Ganapati ji, the effect of the Moon and in the right is believed to be the effect of the Sun.
it’s effect
The straight trunk of Ganesh ji is visible from three directions. When the trunk is turned to the right, it is said to be influenced by Pingala Swara and Surya. Worshiping such an idol is considered fruitful for tasks like destruction of obstacles, defeat of enemies, attainment of victory, fierce and show of power. On the other hand, the idol with the trunk bent to the left is considered to be affected by Ida Nadi and Moon. Such an idol is worshiped for permanent works. Such as education, wealth attainment, business, progress, child happiness, marriage, creation work and family happiness. The idol with a straight trunk is considered to be the Sushumra tone and its worship is considered best for Riddhi-siddhi, Kundalini awakening, salvation, samadhi etc. Is. Sant Samaj worships only such an idol. Siddhi Vinayak temple has an idol with trunk on the right side, that is why the faith and income of this temple is at the peak today.