18 अप्रैल, 2023 (मंगलवार)
पूज्य सद्गुरु देव आशीषवचनम्

प्रभु प्रेमी संघ

।। श्री: कृपा ।।
🌿 पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – ज्ञान का अभाव दुःख और व्याकुलता की ओर ले जाता है। ज्ञान की खोज करो, यह समाधान, मन की शान्ति और आनन्द प्रदान करेगा ..! ज्ञान ही वह ईंधन है जो मानव जीवन को संचालित करता है, ज्ञान का अभाव दुःख, भय और शंकाओं का कारण है। नैतिकता, सत्यनिष्ठा और पारमार्थिक-भावना जीवन उत्कर्ष के सहज-स्वाभाविक साधन हैं जो हमारे जीवन को आध्यात्मिक मूल्यों से आप्लावित कर जीवन सिद्धि की आधारशिला की भूमिका का निर्वहन करते हैं। मनुष्य की सबसे बड़ी पूँजी ज्ञान है। सद्ज्ञान द्वारा आत्म उत्थान करने का लाभ धन जमा करने के लाभ की अपेक्षा अनेक गुना महत्वपूर्ण है। अतः सद्ज्ञान का संचय करें, क्योंकि सुख, धन के ऊपर निर्भर नहीं, वरन् सद्ज्ञान के ऊपर, आत्म-निर्माण के ऊपर निर्भर है। जिसने आत्मज्ञान से अपने दृष्टिकोण को सुसंस्कृत कर लिया है, वह चाहे साधन-सम्पन्न हो चाहे न हो, हर स्थिति में सुखी रहेगा। परिस्थितियाँ चाहे कितनी ही प्रतिकूल क्यों न हों, वह प्रतिकूलता में भी अनुकूलता का निर्माण कर लेगा। उत्तम गुण और उत्तम स्वभाव वाले मनुष्य बुरे लोगों के बीच रहकर भी अच्छे अवसर प्राप्त कर लेते हैं। जीवन में जब तक ज्ञानयोग और कर्मयोग का समन्वय नहीं होता, न तो हमें अपने व्यक्तिगत जीवन में सफलता मिलेगी और न ही सामाजिक जीवन में सुख शान्ति मिलेगी। सद्ज्ञान से परमात्मा की प्राप्ति होती है। वेद, पुराण आदि अनेक ग्रन्थों का अध्ययन करने से जो सद्ज्ञान प्राप्त हो, वह हमारे अंतःकरण में प्रविष्ट होकर हमारे आचरण का एक भाग बन जाये, तभी विद्या अध्ययन की सार्थकता है। सद्ज्ञान से अपने आचरण को निखारना ही चरित्र निर्माण है। अतः सद्ज्ञानी मनुष्य कभी भी विपति काल मे घबराता नही; क्योंकि वह अपने ज्ञान से सारी समस्याओं का समाधान कर लेता है …।

🌿 पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – संसार में जितना भी दुःख, क्लेश, कलह, रोग, शोक, भय, दैन्य, दारिद्रता फैला हुआ है, उसका मूल कारण ‘अज्ञान’ है। मानसिक दुर्बलता से विचारों में ग्रसित होकर मनुष्य दुष्कार्य करने में प्रवृत्त होता है और उसके फलस्वरूप नाना प्रकार के दुःख भोगता है। शारीरिक बीमारियों की जड़ पेट में होती है। पेट खराब रहने से नाना प्रकार के रोग पैदा होते हैं। यदि पेट साफ रहे तो फिर बीमारी का आक्रमण होने की आशंका नहीं के बराबर रह जाती है। इसी प्रकार सारे मानसिक रोगों की, भावनात्मक व्यवस्थाओं की जड़, मस्तिष्क में रहती है। यदि दिमाग सही हो, सोचने का ढंग सुव्यवस्थित हो तो निश्चय ही मनुष्य की इच्छाएँ, आदतें, अभिरुचियाँ और क्रियाएँ इस प्रकार की होंगी, जिससे वह सदा सुखी रहे और अपने निकटवर्ती लोगों को भी सुखी बना सके। विचारों में गड़बड़ी पड़ जाने से मनुष्य न सोचने लायक बात सोचता है और न ही करने लायक काम करता है। फलस्वरूप जीवन की गति लड़खड़ा जाती है, अनेक गुत्थियाँ और उलझनें सामने आ खड़ी होती हैं। इसलिए दु:ख और सुख का, शान्ति और अशान्ति का यही रहस्य है …।

🌿 पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – सद्ज्ञान ही हमारे मानसिक परिमार्जन का उपचार है। सद्ज्ञान की जितनी ही गहरी स्थापना हमारे मनःक्षेत्र में होती जायेगी, उसी अनुपात से हमारी शारीरिक, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक गुत्थियाँ सुलझेंगी। कुविचारी एवं कुकर्मी लोग न बीमारी से छूट सकते हैं और न ही गरीबी से। न उनमें संगठन हो सकता है न प्रेम, न वे अच्छी सरकार चुन सकते हैं और न अधिकारियों को बिना रिश्वत लेने वाला रहने दे सकते हैं। मात्र पत्तों पर जल छिड़कने से काम नहीं चलेगा, पेड़ को हरा रखना है तो जड़ में पानी देना पड़ेगा। अस्पताल खोलकर, बीमारियों के टीके लगाकर, कानून बनाकर, राजनैतिक परिवर्तन लाकर, समाज सुधार के प्रस्ताव पास कर तथा उद्योग-धन्धे बढ़ाकर अनेक समस्याओं के हल सोचे जा रहे हैं। पर, ये तब तक निष्फल रहेंगे जब तक जनता में नैतिकता न बढ़े, सदाचार, संयम, कर्तव्य परायणता और सद्गुणों को अपनाने की प्रवृत्ति जब तक लोगों में पैदा न होगी तब तक सारे प्रयत्न मात्र मन बहलाने जैसा ही सिद्ध होंगे। प्राचीन काल में तत्वदर्शी ऋषियों ने मानवीय सुख-शान्ति की जड़ को खोज निकाला था और उन्होंने इस बात पर पूरा-पूरा ध्यान दिया था कि मनुष्यों की अन्तरात्मा में किस प्रकार गहराई तक सद्-भावनाओं को प्रतिष्ठापित किया जाये। इसके लिए अध्यात्म का सारा ढाँचा इसी समस्या को हल करने के लिए खड़ा किया गया है। दुर्विचारों के, वासना और तृष्णा के, काम, क्रोध, मोह के बन्धनों से मुक्त होना ही जीवनमुक्ति है। अतः कुविचारों के भवसागर और कुकर्मों की वैतरणी में न डूबने देने के लिए ही बार-बार भगवान को पुकारा जाता है; और, स्तुति-प्रार्थना का, पूजा-अर्चना का मूल मन्तव्य भी यही है …।




Prabhu Premi Sangh , Shri: Please. 🌿 Respected “Sadgurudev” ji said – Lack of knowledge leads to sorrow and distraction. Seek knowledge, it will provide solution, peace of mind and joy..! Knowledge is the fuel that drives human life, lack of knowledge is the cause of sorrow, fear and doubts. Morality, integrity and spiritual-spirit are the natural means of life’s progress, which fill our life with spiritual values ​​and play the role of the foundation stone of life’s achievement. The biggest wealth of man is knowledge. The benefit of self-upliftment through good knowledge is many times more important than the benefit of accumulating wealth. Therefore, accumulate good knowledge, because happiness does not depend on money, but on good knowledge, on self-creation. The one who has cultured his attitude with self-knowledge, he will be happy in every situation whether he is resourceful or not. No matter how unfavorable the circumstances, he will create favorability even in adversity. People with good qualities and good nature get good opportunities even by living among bad people. Unless there is coordination of Gyan Yoga and Karma Yoga in life, neither we will get success in our personal life nor we will get happiness and peace in social life. God is attained through good knowledge. The good knowledge that is obtained by studying Vedas, Puranas etc., should enter our conscience and become a part of our conduct, only then the study of knowledge is meaningful. Improving your conduct with good knowledge is character building. That’s why a wise man never panics in times of calamity; Because he solves all the problems with his knowledge….

🌿 Respected “Acharyashree” ji said – Whatever sorrow, tribulation, discord, disease, grief, fear, poverty, poverty is spread in the world, its root cause is ‘ignorance’. Being engrossed in thoughts due to mental weakness, a person tends to do bad deeds and as a result, suffers various types of sorrows. The root of physical diseases lies in the stomach. Due to bad stomach, many types of diseases arise. If the stomach remains clean, then the possibility of attack of the disease remains negligible. Similarly, the root of all mental diseases, emotional systems, resides in the brain. If the mind is right, the way of thinking is orderly, then certainly the desires, habits, interests and actions of a man will be such that he remains happy forever and can also make the people around him happy. Due to disturbances in thoughts, man neither thinks worth thinking nor does work worth doing. As a result, the pace of life falters, many tangles and complications come to the fore. That’s why this is the secret of sorrow and happiness, peace and restlessness….

🌿 Respected “Acharyashree” ji said – Good knowledge is the cure for our mental improvement. The deeper the establishment of good knowledge becomes in our mental field, in the same proportion our physical, social, economic and political problems will be solved. Evil-minded and evil-doers can neither get rid of disease nor poverty. They can neither have organization nor love, nor can they choose a good government, nor can they allow officials to live without taking bribes. Just sprinkling water on the leaves will not work, if the tree has to be green then it has to be watered at the root. Solutions to many problems are being thought of by opening hospitals, applying vaccines for diseases, making laws, bringing political changes, passing proposals for social reform and increasing industries. But, they will remain fruitless until morality, self-control, dutifulness and the tendency to adopt virtues are born in the public, until then all the efforts will prove to be mere entertainment. In ancient times, the philosopher sages had discovered the root of human happiness and peace and they had paid full attention to how to deeply establish good feelings in the inner soul of human beings. For this, the whole structure of spirituality has been set up to solve this problem. To be free from the bonds of bad thoughts, lust and craving, lust, anger, attachment is the liberation of life. That’s why God is called again and again to not let him drown in the ocean of bad thoughts and the miseries of misdeeds; And, this is also the basic intention of praise-prayer, worship-worship.

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