दो बाते याद रखो


प्रत्येक मनुष्य स्वयं को दूसरे से श्रेष्ठ समझता है।और दूसरों से आशा भी रखता है।इसलिए वह दूसरे व्यक्ति में दोष ढूंढता है, जबकि सर्व सत्य है, कि कोई भी निपुण नही है।और हम स्वयं दूसरो के लिए कुछ न करके भी उन्ही से अपने लिए आशा रखते हैं, हमारी सोच भी हमारे दुख का कारण है।जब मनुष्य परमात्मा पर भरोसा करता है,और उसका चिंतन करता है, तो उसे विवेक आ जाता है।और विवेक से सद बुद्धि आती है।सद बुद्धि से मनुष्य विकारों से बच जाता है।इसलिए सदैव प्रभू का चिंतन करो,सांसारिक ग्रहस्थ के कार्यो को पूर्ण करते रहो।जब आपको किसी से चिड़चिड़ाहट या नफरत होती हो तो उस समय आपका मन अशांत होकर तनावपूर्ण हो जाता है। इसके विपरीत जब आप दूसरों की श्रेष्ठता या विशिष्ट क्षमताओं की ओर ध्यान देकर उन्हें स्वीकार करते हैं तो स्वतः ही चिड़चिड़ाहट एवं नफरत कम होने लगती है। आपके दिल में दूसरों के प्रति सम्मान पैदा होता है और दूसरे भी आपके सम्मान का उत्तर सम्मान से देते हैं।दूसरों की श्रेष्ठता को पहचानना और उसे स्वीकार करना बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य है। इसके लिए मन को समझाना पड़ता है, जो बहुत कठिन कार्य है और कभी-कभी तो यह कार्य जहर पीने के समान लगता है, परंतु परिणाम में यह अमृत हो जाता है।जीवन की सच्चाई समझने के लिए पढ़े।
एक संत जीवन की अंतिम कड़ी में मृत्युशैय्या पर थे। तो उनके शिष्यों ने उनसे कहा:- गुरुदेव जाने से पहले हमारा मार्गदर्शन करिये, जिससे हमारा कल्याण हो सके ।
संत ने कहा- मैंने जिन्दगी भर जो कुछ कहा है,उपदेश किया है, आप लोगों को समझाया है, उसका सार यह है की दो बातें याद रखो औरदो भूल जाओ.
सदा याद रखने वाली बात है “मृत्यु” और “परमात्मा”. “मृत्यु” को याद रखोगे तो पाप से बचे रहोगे और “परमात्मा को याद रखोगे तो प्रेम से भर जाओगे ।
हमेशा भूल जाने वाली दो बातें हैं “अपने द्वारा करी हुई नेकी और दूसरे के दोष”। कहा भी गया है दान, पुण्य,परोपकार करते समय हमारे दूसरे हाथ को भी पता नही चलना चाहिए।
जय जय श्री राधेकृष्ण जी।श्री हरि आपका कल्याण करें।



Every man thinks himself better than others. And also keeps hope from others. That’s why he finds fault in other person, whereas it is true that no one is perfect. We keep hope for ourselves, our thinking is also the reason for our sorrow. When a man trusts God, and thinks about him, he gets discretion. And with discretion comes good intelligence. That’s why always think about the Lord, keep completing the tasks of the worldly householder. When you get irritated or hate someone, then your mind becomes restless and tense. On the contrary, when you accept others by paying attention to their superiority or special abilities, automatically irritation and hatred starts reducing. Respect for others arises in your heart and others also respond to your respect with respect. Recognizing and accepting the excellence of others is a very challenging task. For this one has to convince the mind, which is a very difficult task and sometimes this task seems like drinking poison, but in result it becomes nectar. Read on to understand the truth of life. A saint was on his deathbed in the last episode of his life. So his disciples said to him :- Before going to Gurudev, please guide us, so that we can be well. Saint said- Whatever I have said, preached, explained to you people throughout my life, its essence is that remember two things and forget two. The thing to always remember is “death” and “divine”. If you remember “death” then you will be saved from sin and if you remember “God” then you will be filled with love. There are two things that are always forgotten “the good done by oneself and the faults of others”. It has also been said that while doing charity, virtue, charity, our other hand should not even know. Jai Jai Shri Radhekrishna ji. May Shri Hari bless you.

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