गुरु को कीजिए बंदगी।
बार बार दंडवत प्रणाम।।
खंड और ब्राह्मड में।
नहीं कोई गुरु समान।।
देवी देवता मन कल्पना।
एक गुरु ही है भगवान।।
ब्रह्मा विष्णु महेश देवा।
रज तम सत गुण जान।।
एक अविनाशी अलख को।
अगर तू चाहे लखना।।
और कोई नहीं जान।
परम पुरुष को गुरु में पहचान।।
पांच तत्व का बना पुतला।
सोहम में आप विराजमान।।
गरीबदास सतगुरु आप मिले।
कर दिया आप सामान।।
चेतन दास जगत सब सपना।
गुरु देव में समरूप पहचान।।
इधर कबीर साहेब कहते हैं।
जो कहे गुरु को और।
सत्य में वह नर अंधे हैं।
उनको कभी नहीं मिले।
तीन लोक में ठोर।।
इस संसार के अंदर अगर कोई परमात्मा है। वह हे गुरु। अगर गुरु में परमात्मा नहीं तो कहीं संसार में भी नहीं मिलेगा। नानक देव जी संत जी कहते हैं।
अगर उस अविनाशी परमात्मा को जानना चाहता है। तो कोई संत के अंदर पहचान। अगर कोई भगवान है तो है। गुरु देव है। शरीर की 3 शाखाएं हैं।
रजोगुण तमोगुण सतोगुण। रजोगुण का प्रधान ब्रह्म इंद्री है। तमोगुण का प्रधान मन शिव है। सतोगुण में प्रधान विष्णु नाभि कमल पेट से है। मां के गर्भ में थे तब भी नाभि कमल से ही भोजन मिलता था। बर्मा विष्णु महेश यह शरीर के अंगों के नाम है ।
कोई देवी देवता भगवान नहीं। अगर तुम इन नाम के भगवान को बाहर खोजना चाहते हो तो तुम्हें कभी नहीं मिलेंगे। ना जाने कितने कितने ऋषि मुनि ने अपनी काया किसी ने हिमालय पर गला दी। किसी ने जंगलों में तपकर। फिर भी परमात्मा की प्राप्ति नहीं हुई। परमात्मा की प्राप्ति जभी होती है ।जब कोई पूर्ण सतगुरु अविनाशी आलेख गुरु मिले।। कोई बहुत ही बड़ा कर्म भाग्य उदय होता है। ऊसे परमात्मा गुरु आप मिलते हैं।
भजन का भावार्थ है। ईश्वर नाम की कोई चीज कहीं खंड ब्राह्मड हवा में नहीं है। चाहे कितनी ही खोज कर ले। आज तक किसी संत को कोई परमात्मा के दर्शन हुए हैं।
तो है उसे अपने गुरु में हुए हैं ।और कहीं नहीं। इस जगत संसार में। जो और कहीं का दावा करते हैं। वह सब झूठ बोलते हैं।।
क्योंकि यह संसार तो है ही झूठा सपना। मनुष्य अपने अज्ञानता में।
संसार को भगवान को चमत्कार कहता है।
पर जो अंदर बैठा है। उसकी कोई खबर नहीं।। वह तो जब चेतन होगा ।जब कोई पूर्ण सतगुरु मिले। मिलेगा उसे ही। जिसने जतन किया है।जिसकी सत करम गति पूर्ण हो चुकी है। ऊसका पूर्वला भाग्य जाग चुका है। ऊन को पूर्ण सतगुरु मिलता है।
क्योंकि भाग्यवान के द्वार पर।
सतगुरु आप खड़े हैं गुणवान।।
इस संसार में कोई भ्रम में मत रहना।
मनुष्य अपने कर्मों से अपना भाग्य खुद बनाता है।उसे ही भाग्यवान कहते हैं।
जी संतो सतगुरु देव आनंद जी।