[11]हनुमानजी की आत्मकथा

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(गौरांगी के साथ “हनुमत्साधना” सम्बन्धी कुछ चर्चा…)

महावीर विक्रम बजरंगी…
(हनुमान चालीसा)

हरि जी ! क्या लड़कियों को
उपासना करनी चाहिए ?

गौरांगी ने कल मुझ से पूछा था ।

मैं हँसा… क्या बाप की उपासना बेटी नही कर सकती ?

क्या पिता का नाम बेटी नही ले सकती ?

क्या पिता के दर्शन करने के लिए बेटी नही जा सकती ?

कैसी बात कर रही हो गौरांगी ! मैंने कहा ।

नहीं वो ब्रह्मचारी हैं ना ? गौरांगी ने फिर वही बात उठाई ।

तो ?

देखो गौरांगी ! मैं नही जानता तांत्रिक लोग क्या कहते हैं ?

हाँ… एक घटना मेरे सामने की है और प्रत्यक्ष है ।

एक लड़का मेरे मोहल्ले में रहता था उसे तंत्र के बारे में जानने का बड़ा शौक था ।

एक दिन मेरे पास आया और बोला- महाराज जी ! अभी मैं मसान से आ रहा था मुझे एक तांत्रिक मिले… उन्होंने कहा- अमावस्या को जब शनिवार पड़े… उस रात को मात्र लँगोटी पहन कर… पीपल वृक्ष के नीचे खड़े होकर… शरीर में सरसों का तेल लगाकर बजरंग बाण का जो 108 बार पाठ करता है… उसके लिए कुछ भी दुर्लभ नही है ।

मैंने जब सुना उसके मुँह से ये सब… तो मैंने उसे समझाया था… इन सबके चक्कर में मत पड़… प्रेम से उपासना कर हनुमान जी की… या सबसे बढ़िया है… “विजयमन्त्र” का जाप करके हनुमान जी को चढ़ा दे… इससे हनुमान जी जल्दी प्रसन्न भी हो जाते हैं… और मनोवांछित फल भी दे देते हैं ।

हनुमान चालीसा का पाठ करो… पर ये “बजरंग बाण” मुझे अच्छा नही लगता ।

साधकों ! आप कहोगे क्यों अच्छा नही लगता…?

इसलिये कि इसमें प्रभु राम की कसम दी गयी है हनुमान जी को… और राम की कसम देकर कहा है… मेरा ये काम पूरा होना चाहिए… नहीं तो तुम्हें राम की कसम है ।

अब बताओ… ये भक्त के लक्षण तो नही हैं उपासक तो वह होता है जो उपास्य की इच्छा में अपनी इच्छा मिला दे ।

गौरांगी ने कहा- पर बजरंग बाण तुलसी दास जी ने ही तो लिखी है ?

हाँ लिखी है… पर मुझे लगता है तंत्र उच्चाटन वशीकरण… उन सबमें प्रयोग किया जा सकता है… बजरंग बाण का ।

पर प्रेमाभक्ति को जो आधार बनाकर उपासना कर रहे हैं उनको बजरंग बाण करनी ही नहीं चाहिए ।

हाँ, तो मैं कह रहा था उस युवक ने मुझ से कहा… और ये भी कहा… कि आने वाली जो अमावस्या है… वह शनिचरी है यानि शनिवार को है ।

उस युवक ने चारों ओर घूम फिर कर ये निर्णय भी लिया था कि… पास में ही एक पीपल का पेड़ है उसी में अमावस्या की रात को अनुष्ठान करूँगा ।

साधकों ! मेरे मना करने के बाद भी उसने ये सब किया… तांत्रिक पद्धति में थोड़ी भी गलती हो जाए तो उसका असर उल्टा पड़ता है ।

उसके साथ यही हुआ… सुबह जब उसके घर वालों ने देखा तो वह पागल हो गया था ये प्रत्यक्ष बात है ।

मैंने गौरांगी को समझाया तांत्रिक विधि क्या कहती है मैं उस तरफ नही जा रहा… न हमें तांत्रिक पद्धति की आवश्यकता है ।

हो सकता है… इन सब विधियों में हनुमान जी की उपासना स्त्री न करे ऐसा विधान हो ।

पर गौरांगी ! मैं कोई कामना के अनुसार प्रेम तो करता नही हूँ…

ऐसे ही निष्काम भाव से अपने बड़े भाई… अपने पिता… अपने अभिभावक… ऐसे सम्बन्ध बनाकर अगर तुम आराधना करो उपासना करो… हनुमान जी की… तो हनुमान जी बहुत प्रसन्न होंगे और वैसे भी देह ही तो स्त्री और पुरुष है पर मूल रूप से तो हम सब आत्मतत्व ही हैं ।

क्या हरि जी ! अनन्यता में बाधक नही है हनुमत् उपासना ?

गौरांगी श्री कृष्ण की परम अनन्य भक्त है… अनन्य माने अपने इष्ट को छोड़कर ये किसी अन्य को मानती ही नही है ।

मैंने गौरांगी से कहा – गौरांगी ! हनुमत् उपासना एक ऐसी उपासना है… जिसे हर सम्प्रदाय का व्यक्ति कर सकता है… उसके इष्ट चाहे कोई भी हों… पर हनुमान जी की उपासना कोई भी कर सकता है ।

पता है गौरांगी ! हनुमान की उपासना करने से… इष्ट के प्रति और श्रद्धा बढ़ती है… विश्वास और बढ़ता है ।

ये पवनपुत्र हैं ना… हमें पीछे से धकेल-धकेल कर इष्ट के महल तक पहुँचा देते हैं ।

इनसे प्रार्थना करके तो देखो… ये तुम्हें कृष्ण से भी मिला देंगे ।

मैं हँसा… गौरांगी ! मैंने श्री धाम वृन्दावन में एक ऐसे महात्मा जी के दर्शन किये… जिनके इष्ट तो थे बाल कृष्ण… पर हनुमान चालीसा दिन में कई बार पढ़ते थे ।

एक बार मैंने पूछा- आप तो अनन्य हैं फिर ये हनुमत् आराधना क्यों ?

तो उन्होंने रोते हुए कहा था- मेरा लाला छोटा है… कहीं इसे कुछ हो न जाए… इसलिए मैं हनुमान चालीसा पड़ता हूँ और हनुमान जी से माँगता हूँ कि मेरे लाला कन्हैया की रक्षा करना ।

आपके इष्ट कोई भी हों… पर हनुमत् उपासना से आपको साधना में लाभ ही मिलेगा ।

हरि जी ! क्या हनुमान जी की छवि का भी उपासना में महत्व है ?

मतलब हरि जी ! कैसा चित्र रखें हनुमान जी का ?

गौरांगी ने पूछा ।

गौरांगी ! हनुमान जी ध्यान में बैठे हैं… शान्त मुद्रा है… ऐसे हनुमान जी की छवि रखनी चाहिए ।

लंका जलाने वाले हनुमान जी नही… क्रोध में भरे हुए हनुमान जी नही… गौरांगी ! समझो बात को जैसा देवता होगा… जैसा देवता का रूप होगा साधक भी वैसा ही बनता जाता है ।

इसलिये हनुमान जी की छवि रखो… जो छवि शान्त है… ध्यान की मुद्रा में हैं… या बड़े प्रेम से करताल बजा रहे हैं ।

मैंने गौरांगी को कहा- गौरांगी ! ये बात याद रखना… जीवन में ग्रह गोचर का भी असर होता है… हम माने या न माने ।

इसलिये हनुमान जी को मानने से ग्रहों का जो खेल है वह समाप्त हो जाता है… फिर ग्रहों की नही चलती है ।

शनि की साढ़े साती जिसके ऊपर है… वह अगर हनुमान चालीसा नित्य पढ़े… तो शनि का प्रकोप कम हो जाता है ।

ये पक्की बात है… गौरांगी ! नवग्रहों का अनिष्ट रुक जाता है… हनुमान चालीसा नित्य पढ़ने से ।

गौरांगी सुन रही है मेरी बातें बड़े ध्यान से ।

मैंने कहा इतना ही नही… हनुमान जी बड़े प्रेमी भी हैं… रसिक भी हैं… रस में इनका अधिकार है ।

गौरांगी ! निकुञ्ज लीला में हनुमान जी चारु शीला नाम की सखी के रूप में सेवा करते हैं ।

और यही रूप जनकपुर में भी है वहाँ कोहवर की लीला में पुरुष का प्रवेश कहाँ ? हनुमान जी वहाँ भी सहचरी भाव से युगल सरकार की लीला में सदैव तत्पर रहते हैं ।

गौरांगी ! ये बात समझना… हनुमान जी की उपासना कोई भी कर सकता है… किसी भी सम्प्रदाय का… या किसी भी मजहब का ।

कोई भी कर सकता है… स्त्री या पुरुष कोई भी…

गौरांगी के साथ बैठ कर मैंने काफी बातें शेयर की… आज ।

बहुत अच्छा लगा…।

शेष चर्चा कल…

” चारों युग परताप तुम्हारा “

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