आज के विचार
(अशोक वाटिका में माँ वैदेही के दर्शन…)
भाग-18
कृस तनु सीस जटा एक बेनी,
जपति हृदयँ रघुपति गुन श्रेनी…
(रामचरितमानस)
सन्ध्या होने से पूर्व ही अयोध्या के उस राजउद्यान में आज राजपरिवार के कुछ लोग और भी आ गये थे… बात राजपरिवार में फैलती जा रही थी कि हनुमान जी अपनी आत्मकथा भरत जी को सुना रहे हैं ।
तो किसे उत्सुकता नही होगी… हनुमान जी के मुख से उस लीला का वर्णन ! लीला भी आँखों देखी ।
और उसमें भी रावण ! रावण एक कौतुहल का विषय तो था ही… फिर उसकी लंका ?…उसमें कैसे रहीं महारानी सीता ?
रात्रि में ही भरत जी को महामन्त्री सुमन्त्र ने कहा था… जब हनुमान जी की आत्मकथा सुनकर वापस महल की ओर लौट रहे थे तब… कल हम भी आयेंगे… आपकी आज्ञा हो तो भरत जी !
महामन्त्री ने हाथ जोड़कर ये विनती की थी… पवनपुत्र की आत्मकथा सुनने का अवसर कहाँ मिलता है ! और वो भी स्वयं उन्हीं के मुखारविन्द से ! महामन्त्री सुमन्त्र ने कहा था
मैं भी चलूँगा… महामन्त्री के पुत्र ने भी चलने की बात की थी ।
भरत जी ने मुस्कुराकर आज्ञा दी थी कल उस उद्यान में चलने की ।
भगवान श्री राघवेन्द्र ने मुझे आज्ञा दी है कि मैं मथुरा जाऊँ !
दुःखी होकर शत्रुघ्न कुमार ने कहा ।
पर क्यों ? भरत जी ने पूछा ।
वहाँ कोई लवणासुर नामक राक्षस आ गया है… जिसके कारण प्रजा वहाँ की त्रस्त है भगवान श्री राघवेन्द्र ने मुझे मथुरा जाने के लिए कहा है शत्रुघ्न कुमार ने कहा ।
ठीक है… तुम चले जाओ… भरत जी ने इतना ही कहा था ।
पर मेरी इच्छा है… पवनपुत्र की आत्मकथा पूरी हो… तब जाऊँ !
वैसे भी भैया ! मुझे जाने के लिए कहा है… कब ? ये नही बताया ।
इसलिये मैं भी कल से आपके साथ, सन्ध्या के समय, उद्यान में हनुमान जी के मुख से उनकी आत्मकथा सुनने चलूँगा !
भरत जी ने मुस्कुरा कर… “ठीक है”… इतना ही कहा था ।
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आज तो उद्यान लगभग भर गया
क्यों कि शत्रुघ्न कुमार के साथ भी चार-पाँच उनके मित्र आ गये थे ।
और महामन्त्री सुमन्त्र के साथ उनके कुछ मित्र, सचिव सुमन्त्र के पुत्र साथ में हैं उनके भी कुछ संग के साथी… ।
बड़े ही प्रेम से धरती में अपना मस्तक रखकर हनुमान जी ने सबको प्रणाम किया
और कथा की धारा फिर बहने लगी थी ।
भरत भैया ! लंका में विभीषण से विदा लेकर मैं वानर रूप से आगे की ओर बढ़ चला था… ।
ब्रह्ममुहूर्त की वेला थी… पर राक्षस लोग तो ब्रह्ममुहूर्त में ही सोते हैं ।
इसलिए मुझे कोई दिक्कत नही हुयी मैं सीधे – विभीषण ने जो स्थान बताया था “अशोक वाटिका” – उस स्थान पर पहुँच गया ।
हनुमान जी ! हमने सुना है… स्वर्ग के उद्यान… नन्दन वन के अधिदैव तत्व को ही रावण ने खींच लिया था लंका में ।
भरत जी के इस प्रश्न पर हनुमान जी कुछ देर मौन रहे फिर बोले… क्षमा करें भरत भैया ! मैंने स्वर्ग का नन्दन वन भी देखा है… पर अशोक वाटिका के आगे नन्दन वन कुछ नही था ।
सुबेल नामक पर्वत से एक नदी निकलती है… मैंने देखा था…
उस नदी की धारा को लंका के नगर से होकर अशोक वाटिका में लाया गया था…
भरत भैया ! उस नदी के जो घाट थे… जो अशोक वाटिका में बनाये गए थे वह घाट – मणि माणिक्य मोतियों हीरों पन्नों से जड़े हुए थे ।
हाँ… आपकी बात सत्य है भरत भैया ! कि स्वर्ग में जाकर नन्दन वन के अधिदैव तत्व को रावण खींच कर ले आया था ।
( हमारे सनातन धर्म में हर वस्तु का अपना एक “अधिदैव” होता है )
पर लंका में लाने पर इसके पुत्र मेघनाद ने नन्दन वन के अधिदैव को लंका से निकाल दिया था… और अपने पिता से बोला था-
नन्दन वन आपको कैसे सुंदर लग गया… मैं स्वयं आपके लिए एक वाटिका बनवाता हूँ कहते हैं भरत भैया ! ये वाटिका स्वयं मेघनाद ने अपने पिता को बनाकर दिया था… ।
भरत भैया ! मैंने विश्व में बहुत बाग़ बगीचे देखे हैं… नन्दन वन में भी खूब घूमा हूँ… पर अशोक वाटिका के सामने सब तुच्छ हैं ।
उस वाटिका के मध्य में देवी का एक मन्दिर था… और उस मन्दिर के चारों ओर से नदी को घुमाया गया था ।
वाटिका बनाई थी अपने पिता के लिए मेघनाद ने… पर वो स्वयं कभी नही आया… न कोई और पुरुष आता था इस वाटिका में ।
ये मात्र रावण और उसके काम क्रीड़ा की स्थली थी…
मैंने चारों ओर देखा… चार परकोटे थे उस अशोक वाटिका के… ।
पहला जो परकोटा था उसमें पुरुष सैनिक थे… पर उसके बाद के जो तीन परकोटे थे उनमें स्त्रियां ही थीं… राक्षसियाँ ।
मैं तो वानर… मुझे कौन रोक सकता है भला !…
मैं उछलते हुए अशोक वाटिका के भीतर चला गया था…
चारों ओर अशोक के वृक्ष थे…
नाना प्रकार के पुष्प खिले थे… उन फूलों में भौरों का झुण्ड गुनगुन कर रहा था उन्हीं की गुनगुनाहट से… एक कर्णप्रिय संगीतमय वातावरण का निर्माण हो रहा था ।
भीनी-भीनी सुगन्ध छाई हुयी थी उस वाटिका में ।
भरत भैया ! एक बात और… मैंने वहाँ देखा उस अशोक वाटिका की देख-रेख में कोई माली नही था रावण के पुत्र मेघनाद ने देवों को ही लगा दिया था… वाटिका को सम्भालने के लिए ।
वायु देवता वाटिका में स्वच्छता का ध्यान रखते थे… जल की व्यवस्था में स्वयं वरुण देवता को लगा दिया था मेघनाद ने ।
विचित्र और अद्भुत थी अशोक वाटिका रावण की ।
भरत भैया ! मैंने चारों ओर दृष्टि घुमाई… मेरा लक्ष्य ये सब देखकर रम जाना तो नही था… मेरा लक्ष्य तो माँ वैदेही की खोज करना था ।
मैंने चारों ओर देखा… ओह ! एक विशाल अशोक वृक्ष है… उस वृक्ष के चारों ओर राक्षसियाँ घेर कर बैठी हुयी हैं…
किसको घेर के बैठी हैं वो !… मैंने ध्यान से देखना चाहा… तो मुझे एक ज्योति ही दिखाई दी… आकार इतनी दूर से देख पाना सम्भव नही था ।
मैं उछलते कूदते हुए… वही पहुँच गया… और उस वृक्ष पर ही चढ़ गया था ।
ऊपर से मैंने देखा… ओह !
क्या सौंदर्य था…
हनुमान जी याद कर रहे हैं ।
भरत भैया ! मुझे अपनी मूर्खता पर अब हँसी आ रही थी… मैं रावण के महल में सो रही उस मन्दोदरी को माँ मैथिली समझ बैठा था ।
पर मेरी माँ मैथिली तो ऐसी थीं… आहा ! आज अपनी माँ के दर्शन करके मेरा जीवन धन्य हो गया था ।
माँ वैदेही पवित्रता की, शोक की, वात्सल्य की – साक्षात् मूर्ति थीं ।
सृष्टि की समस्त पवित्रता इन्हीं के चरणों से प्रकट हो रही थी…
उस समय हे भरत भैया ! मेरे मन में यही बात आई… कि मुझे ये कार्य देकर… स्वामी श्रीराम ने मेरे ऊपर कितनी बड़ी कृपा की थी ।
ये कहते हुये हनुमान जी रो दिए थे… नेत्रों से झर-झर अश्रु प्रवाहित हो रहे थे हनुमान जी के ।
मेरी माँ !… भरत भैया ! मुझे कभी अपनी माँ अंजनी के प्रति भी इतनी श्रद्धा नही उमड़ी थी जितनी श्रद्धा आज माँ मैथिली के प्रति उमड़ रही थी आहा !
मुझे ये डर न होता कि ये भयभीत हो जायेंगी… या अन्य राक्षसियाँ देख लेंगी… मुझे डर न होता यही कि ये राक्षसियाँ उत्पात नहीं करेंगी तो मैं तुरन्त अपनी माँ वैदेही के चरणों में लोट जाता ।
भरत भैया ! मेरी दृष्टि जैसे ही पड़ी माँ के ऊपर… बस मेरे मन ने पुकारना शुरू कर दिया था… हनुमान ! तुझे आज वास्तविक माँ के दर्शन हुए हैं जय हो… जय हो…।
मेरा मन आज नाच रहा था।
मैं वृक्ष के पत्तों में छुपा सोच ही रहा था कि ये राक्षसियाँ कब हटेंगी… और मैं तब अपनी माँ वैदेही की चरण वन्दना करूँगा…
पर एकाएक मैंने देखा राक्षसियाँ सब एक तरफ जाकर खड़ी हो गयी… मैं खुश हुआ… पर ये क्या ! मेरी माँ राक्षसियों के दूर जाते ही सिकुड़ कर बैठ गयीं थीं…।
वे इतनी भयभीत हो गयी थीं कि जैसे सिंह को देखकर कोई हिरणी भयभीत हो जाए
भरत भैया ! मेरे समझ में नही आ रहा था… कि ये क्या हो रहा है !
या अब क्या होने वाला है !
तभी मैंने सामने से देखा… दशानन रावण चला आ रहा है…
ओह ! ये कारण है
उसके साथ अनेक स्त्रियां थीं… जो सीधे ही सोकर उठते ही चली आई थीं दशानन के साथ… भरत भैया ! जिसे मैंने रावण के कक्ष में देखा था वो रावण के साथ-साथ ही चल रही थी ।
ये मन्दोदरी है… मैं इसे सुंदर कह रहा था !
ये तो मेरी माँ के सामने तुच्छ है… पद धूल भी नही है ।
भरत भैया ! विश्व में मैंने दो ही सुंदरियाँ देखी थीं… देखी तो और भी थीं… पर ये दो ही सुंदरियाँ इनके आगे इंद्र की पत्नी शची भी कुछ नही थी ।
बाली की पत्नी तारा… और रावण की पत्नी मन्दोदरी ।
पर ये दोनों ही माँ मैथिली के आगे दासी बनने योग्य भी नही थीं ।
बाली की पत्नी तारा में एक गरिमा थी… सौंदर्य की गरिमा ।
जैसे उसका जन्म सौंदर्य की देवी के रूप में ही हुआ हो ।
और मन्दोदरी का सौंदर्य मानो अत्यंत मादकता लिए हुए हो…।
पर आहा ! ये मेरी माँ मैथिली… इनके श्री विग्रह की ओर तो दृष्टि भी नही उठती… इन्हें देखकर तो मन शान्त, निर्विकार हो रहा है ।
और
कितना अद्भुत रूप लावण्य है !… मानो अखिल सृष्टि का सौंदर्य इनमें ही समा गया हो… ।
ये मेरी आराध्या हैं…
मैथिली ! दशानन से मत डरा करो… क्यों डरती हो… तुम जब चाहो इसे मार सकती हो… ये तुम्हें छू भी नही सकता…
जाते-जाते एक वृद्धा राक्षसी माँ मैथिली के कान में फुसफुसा कर चली गयी… मैंने सोचा कौन है ये…? सात्विक ऊर्जा प्रवाहित हो रही थी उसमें से तीन चोटी की हुयी थी ये राक्षसी ।
तभी रावण आ गया हाथ में तलवार है इसके ।
शेष चर्चा कल…
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता
अस वर दीन्ह जानकी माता
thoughts of the day
(Darshan of Maa Vaidehi in Ashok Vatika…) Part-18
Kris thin sees jata ek beni, Japati Hridayan Raghupati Gun Shreni. (Ramacharitmanas)
Even before the evening, some more people of the royal family had also come to that royal garden of Ayodhya… The word was spreading in the royal family that Hanuman ji was narrating his autobiography to Bharat ji.
So who would not be curious… Description of that Leela from the mouth of Hanuman ji! Leela was also seen by the eyes.
And Ravan in that too! Ravana was a matter of curiosity… Then his Lanka?… How did Queen Sita live in it?
In the night itself, General Secretary Sumantra had told Bharat ji… When he was returning back to the palace after listening to the autobiography of Hanuman ji… Tomorrow we will also come… Bharat ji, if you allow!
The General Secretary had made this request with folded hands… Where does one get the opportunity to listen to the autobiography of Pawanputra! And that too from his own spokesperson! General Secretary Sumantra had said
I will also go… The son of the General Secretary had also talked about going.
Bharat ji had given permission to walk in that garden tomorrow with a smile.
Lord Shri Raghavendra has ordered me to go to Mathura!
Saddened, Shatrughan Kumar said.
But why ? Bharat ji asked.
There a demon named Lavanasura has come… because of which the people there are suffering. Lord Shri Raghavendra has asked me to go to Mathura. Shatrughan Kumar said.
Okay… you go… Bharat ji had said only this much.
But I wish… the autobiography of Pawanputra should be completed… then I will go!
Anyway brother! I have been asked to leave… when? Didn’t tell this.
That’s why I will also go with you from tomorrow, in the evening, to the garden to listen to Hanuman ji’s autobiography from his mouth!
Bharat ji smiled… “Okay”… that was all he had said.
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today the garden is almost full
Because four-five of his friends had come along with Shatrughan Kumar.
And along with General Secretary Sumantra, some of his friends, Secretary Sumantra’s son are also with him and some of his associates….
Hanuman ji bowed to everyone by keeping his head on the ground with great love.
And the stream of the story started flowing again.
Brother Bharat! Taking leave of Vibhishan in Lanka, I went ahead in the form of a monkey.
It was the time of Brahmamuhurt… but the demons sleep only in Brahmamuhurt.
That’s why I didn’t have any problem, I directly reached the place – Ashok Vatika – which was told by Vibhishan.
Hanuman ! We have heard… The gardens of heaven… The Adhidaiva element of the Nandan forest was dragged by Ravana to Lanka.
On this question of Bharat ji, Hanuman ji remained silent for some time and then said… Sorry Bharat brother! I have also seen the Nandan forest of heaven… But the Nandan forest was nothing in front of Ashok Vatika.
A river emerges from a mountain named Subel… I had seen…
The stream of that river was brought to Ashok Vatika through the city of Lanka.
Brother Bharat! The ghats of that river… which were made in Ashok Vatika, those ghats were studded with gems, rubies, pearls, diamonds and pages.
Yes… Your words are true Bharat Bhaiya! That Ravana had dragged the Adhidaiva element of Nandan forest after going to heaven.
(In our Sanatan Dharma, everything has its own “Adhidaiva”)
But on being brought to Lanka, his son Meghnad had expelled the Adhidaiva of Nandan forest from Lanka… and said to his father- How beautiful did you find Nandan Van… I myself make a garden for you says Bharat Bhaiya! Meghnad himself had built this garden and given it to his father.
Brother Bharat! I have seen many gardens and gardens in the world… I have also visited Nandan Van a lot… But in front of Ashok Vatika, all are insignificant.
There was a temple of the goddess in the middle of that garden… and the river was made to go around that temple.
Meghnad had made a garden for his father… but he himself never came… nor any other man used to come to this garden.
This was only the place of Ravana and his lustful play…
I looked around… there were four walls of that Ashok Vatika….
There were men soldiers in the first wall… but in the three walls after that there were only women… demons.
I am a monkey… who can stop me!
I went inside the Ashok Vatika jumping…
There were Ashoka trees all around.
Various types of flowers were in bloom… a herd of bumblebees was humming in those flowers, due to their humming… a melodious musical atmosphere was being created.
There was a wet fragrance in that garden.
Brother Bharat! One more thing… I saw there that there was no gardener in the care of that Ashok Vatika, Ravana’s son Meghnad had engaged the gods only… to take care of the Vatika.
The god of air took care of the cleanliness in the garden… Meghnad had put Varuna himself in the water system.
Ravana’s Ashok Vatika was strange and wonderful.
Brother Bharat! I looked around… My aim was not to get carried away by seeing all this… My aim was to search for Maa Vaidehi.
I looked around… Oh! There is a huge Ashoka tree… Demons are sitting surrounded around that tree…
Whom is she sitting surrounded by!… I tried to see carefully… then I could see only a light… It was not possible to see the shape from such a distance.
Jumping and jumping… I reached there… and had climbed that tree itself.
From above I saw… Oh!
what a beauty…
Remembering Hanuman ji.
Brother Bharat! I was now laughing at my stupidity… I had taken that Mandodari sleeping in Ravana’s palace as Mother Maithili.
But my mother Maithili was like this… Aha! Today my life was blessed by seeing my mother.
Maa Vaidehi was the embodiment of purity, sorrow and love.
All the sanctity of the universe was being manifested from his feet.
At that time O brother Bharat! This thing came to my mind… that by giving me this task… Swami Shriram had blessed me so much.
Hanuman ji had cried while saying this… Tears were flowing from the eyes of Hanuman ji.
My mother!… Brother Bharat! I had never had so much respect for my mother Anjani as I was feeling today for mother Maithili.
I would not have been afraid that she would get scared… or other demons would have seen… had I not been afraid that these demons would not have created trouble, I would have immediately returned at the feet of my mother Vaidehi.
Brother Bharat! As soon as my vision fell on the mother… just my mind started calling… Hanuman! Today you have seen the real mother, Jai Ho… Jai Ho…
My mind was dancing today.
I was hiding in the leaves of the tree thinking that when these demons will be removed… and then I will worship the feet of my mother Vaidehi…
But suddenly I saw all the demons standing on one side… I was happy… But what is this! My mother had shrunk and sat down as soon as the demons went away.
She was so scared that a deer gets scared at the sight of a lion.
Brother Bharat! I could not understand… what is happening!
Or what is going to happen now!
That’s why I saw from the front… Dashanan Ravana is coming…
Oh ! this is the reason
There were many women with him… who had come straight after waking up with Dashanan… Bharat Bhaiya! The one whom I saw in Ravana’s room was walking along with Ravana.
This is Mandodari… I was calling it beautiful!
This is insignificant in front of my mother… the post is not even dust.
Brother Bharat! I had seen only two beauties in the world… I had seen more… but in front of these two beauties even Indra’s wife Shachi was nothing.
Bali’s wife Tara… and Ravana’s wife Mandodari.
But both of them were not even eligible to be maidservants in front of Maithili.
Bali’s wife Tara had a dignity…the dignity of beauty.
As if she was born as a goddess of beauty.
And the beauty of Mandodari is as if you are extremely intoxicated….
But aha! This is my mother Maithili… I can’t even look at her idol… Seeing her, my mind is becoming peaceful and free from vices. And What a wonderful graceful form!… As if the beauty of the entire creation is contained in it only.
This is my idol…
Maithili ! Don’t scare Dashanan… Why are you afraid… You can kill him whenever you want… He can’t even touch you…
While leaving, an old demonic mother went away whispering in Maithili’s ear… I thought who is this…? Sattvic energy was flowing, out of that this Rakshasi was of three peaks.
That’s why Ravana came with a sword in his hand.
Rest of the discussion tomorrow…
Donor of Ashta Siddhi Nine Fund As Var Dinh Janaki Mata