( मैं रामदूत हूँ माँ – हनुमान )
भाग-21
रामदूत मैं मातु जानकी
सत्य सपथ करुणानिधान की…
(रामचरितमानस)
मैं राम दूत हूँ माँ ! मैं सत्य कह रहा हूँ ! मेरी बात पर विश्वास करो !
भरत भैया ! मैंने बहुत कहा… पर माँ सीता मेरे ऊपर विश्वास ही नही कर रहीं थीं ।
मैंने आपको रामकथा सुनाई अभी मैंने कहा ।
माँ सीता हँसीं तू क्या सुनाएगा रामकथा… तुझसे अच्छी और विद्वत्तापूर्ण रामकथा रावण सुनाता है ।
ये मुद्रिका ये अँगूठी ?
ये राक्षस लोग मायावी हैं… ये कुछ भी कर सकते हैं !
माँ वैदेही का मायानगरी लंका में रहते-रहते स्वाभाविक था उनका सबके प्रति अविश्वासी हो जाना ।
फिर एकाएक रोने लग गयीं माँ मैथिली तुम लंका के ही हो… तुम भेष बदल कर आये हो वानर का भेष धारण करके ! तो खा जाओ ना मुझे… मार दो ना मुझे… क्यों खड़े हो इस तरह झूठ क्यों बोल रहे हो ?
भरत भैया ! माँ इस तरह से रोते हुए मुझ से बोल रही थीं कि मुझे उस समय समझ ही नही आ रहा था कि मैं करूँ क्या ?
माँ ! मैं भी बच्चे की तरह बिलख उठा… उनके चरणों में ही बैठ गया… माँ ! मैं क्यों झूठ बोलूंगा… मैं सच कह रहा हूँ मैं सौगन्ध खाता हूँ…। हाँ खाओ सौगन्ध ! रावण की सौगन्ध खाओ… माँ बोलीं… तुम तो रावण के ही…
ओह ! माँ ये क्या बोल रही थीं… भरत भैया ! मुझे बहुत कष्ट हो रहा था उस समय पर मैं क्या करूँ अब !
तभी मैंने ऑंखें बन्द कर लीं… प्रभु श्री राघवेन्द्र सरकार को स्मरण किया और उनसे ही प्रार्थना की
समाधान मिल गया… मिलना ही था…
माँ ! मैंने आँखें खोलते हुए कहा-
मैं सत्य सपथ खाकर कह रहा हूँ… मैं “करुणानिधान’ प्रभु का दूत हूँ !
ओह !… चेहरे पर माँ मैथिली के अब हल्की मुस्कुराहट आई थी ।
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जनकपुर के उस कोहवर में वर और वधू का मिलन हो रहा था ।
श्याम और गौर दोनों एक हो रहे थे अंधकार और प्रकाश मानो दोनों मिल रहे थे… आकाश में मानो बिजुली कौंध रही थी ।
प्रिय ! आज से मैं आपको किस नाम से पुकारूँ ?
सिया सुकुमारी ने अपने प्राणधन राम से पूछा था ।
अंग से लगीं किशोरी को थोड़ा अलग करते हुए… अपनी प्यारी के मुख चन्द्र को देखते हुए राम ने कहा था… जो तुम्हें प्रिय लगे ।
पर ये नाम आप के और मेरे बीच ही रहेगा… ये नाम आपको और मुझे ही पता होगा… सिया रानी ने अपने “प्रेम” से कहा था ।
हाँ हाँ… सिया जू ! आप कहो तो !
आपका एक नाम मैं रखती हूँ “करुणानिधान” ।
आपके नेत्रों में करुणा भरी हुयी है आप करुणा से ओत प्रोत हैं नाथ !
मैं अब तुम्हारा ही हूँ… जो चाहे नाम रख लो… ये कहते हुए फिर अपने बाहु पाश में भर लिया था राम ने अपनी सिया को ।
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आज अशोक वाटिका में
नेत्रों से अश्रु बह चले थे… माँ सीता के… उन बातों को याद करते हुए…।
माँ ! मुझ पर विश्वास करो… मैं करुणानिधान का ही दूत हूँ… भरत भैया ! ये कहते हुए मैं माँ के चरणों में गिर पड़ा था ।
हाँ हाँ… अब मुझे विश्वास हो गया… कि तुम मेरे स्वामी के ही दूत हो ।
पर एक बात समझ में नही आई हनुमान ! तुम वानर… और वानर का मेल मानव से कैसे हुआ ? प्रभु से तुम कैसे मिले ?
भरत भैया ! माँ सीता का ये प्रश्न था..।
माँ ! आपने बाली का नाम सुना होगा ?
हाँ बोलो हनुमान !..
माँ ! बाली का भाई सुग्रीव था… पर बाली ने सुग्रीव को अपने राज्य से निकाल दिया था… मैं सुग्रीव के साथ था ।
भगवान श्रीराम आपको खोजते हुए माता शबरी के यहाँ पहुँच गए थे… तब माता शबरी ने सुग्रीव का पता बताया था ।
भगवान श्रीराम ने सुग्रीव से मित्रता की और बाली का वध किया… फिर सुग्रीव ने अपनी सेना को भेज दिया आपकी खोज में ।
नेत्रों से अश्रु बह चले थे मेरे – भरत भैया !…
माँ ! हम लोगों की क्या औकात कि यहाँ तक आकर आपको खोज लें… बस सब प्रभु श्रीराम की कृपा का ही चमत्कार है कि मेरे जैसा वानर लंका में आ गया… और माँ ! आपका पता भी चल गया ।
हनुमान ! एक महिने का समय दिया है रावण ने।
अगर प्रभु एक महिने के भीतर ही नही आये तो मैं अपने देह को त्याग दूंगी माँ वैदेही ने कहा ।
माँ ! आप क्यों चिन्ता करती हैं प्रभु श्रीराम के पास वानरों की सेना है… वो सेना…
मैं आगे कुछ कहने जा ही रहा था कि… माँ ने मुझे बीच में ही रोक कर कहा- सेना में सब तुम्हारे जैसे ही वानर हैं…? इतने ही छोटे-छोटे ?
मैं हँसा माँ ! आपने इस रामदूत को क्या समझ रखा है !
नही हनुमान ! रावण के राक्षस तो बहुत बड़े-बड़े हैं… पर तुम तो ?
इतना सुनते ही… भरत भैया ! मैंने अपना रूप बढ़ाया… बढ़ाता ही चला गया…
विशाल पर्वताकार शरीर बना लिया था मैंने ।
भरत भैया ! माँ वैदेही ने जैसे ही मुझे देखा… वो आनन्दित हो गयीं… सब तुम्हारे जैसे ही वीर हैं सेना में ?
मेरे जैसे ही नही माँ ! मुझ से भी बड़े-बड़े वीर महावीर हैं ।
मुझे चरणों में ही कुछ समय और बितानें थे माँ के इसलिए भरत भैया ! मैं वापस फिर छोटा हो गया ।
माँ के मैंने चरण पकड़ लिए
आहा ! माँ के वात्सल्य से भरे “कर” मेरे सिर पर जब फिरने लगे…
मेरे नेत्र बह चले थे…
माँ के मुख से आशीर्वाद निकल गया
वत्स हनुमान ! तुम अजर , अमर रहोगे !
माँ ! मुझे ये सब नही चाहिए… मुझे तो एक ही आशीर्वाद दे दो…
मैंने माँगा माँ से ।
क्या माँगा आपने पवनसुत ?
सभी श्रोताओं ने एक साथ प्रश्न किया था हनुमान जी से भरत जी ने भी… और शत्रुघ्न कुमार ने भी और महामन्त्री सुमन्त्र ने भी…
क्या माँगा आपने ?
“जहाँ जहाँ रामकथा हो… जब जब हो… मैं वहाँ रहूँ “
भरत जी के सहित सभी ने तालियाँ बजाकर हनुमान जी का जयघोष किया…।
वाह ! हनुमान जी ! फिर तो आप हर युग में , हर काल में रहते हैं और रहेंगे क्यों कि रामकथा तो होती रहेगी भरत जी ने हँसते हुए ये बात कही थी ।
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प्रभु ने मेरे लिए कुछ कहा है क्या ?
कुछ सन्देश ? मेरे लिए ?
माँ मैथिली ने मुझ से पूछा ।
भरत भैया ! मैंने माँ से कहा…
जब सभी वानर प्रणाम करके प्रभु श्रीराम के पास से चले गए थे… महाराज सुग्रीव भी चले गए थे माँ… तब अंतिम में मैं ही बचा था मैंने प्रणाम किया… तब प्रभु ने मेरा हाथ पकड़ा और एकान्त में ले गए… मुझे जो कहा… मैं उसे अक्षरशः कहूँ ?
हाँ… हाँ ..हनुमान ! जैसे कहा है वैसे ही कहो !
माँ ने बड़ी उत्सुकता के साथ मुझे कहने के लिए प्रेरित किया ।
माँ ! क्षमा कीजियेगा मैं वैसे ही कह रहा हूँ जैसे कहा था प्रभु ने –
हे प्राणप्रिये ! तुम्हारे असह्य वियोग में मेरे ये प्राणपक्षी ठहरेंगे नही ।
हे मेरी हृदयेश्वरी ! तुम्हारे विरह ने मुझे आज प्राणहीन-सा कर दिया है ।
राम का शरीर ही यहाँ है… मुझे पता नही इस शरीर में श्वास कैसे चलते हैं ! मेरा मन अब मेरे पास है कहाँ ? वह तो तुम्हारे पास चला गया है… विरह की अपनी इस स्थिति को मैं क्या गाऊँ किशोरी ! मैं क्या कहूँ ! मेरी स्थिति क्या है तुम्हारे बिना… ये तो मैं ही समझता हूँ… तुम केवल इतना समझ लो… मेरे चित्त में मात्र तुम ही छपी हुयी हो… हृदय में विरह की वो ज्वाला धधक उठी थी जिसने सब कुछ जला कर ख़ाक कर दिया… और अब जब मैं देखता हूँ… तो कुछ बचा ही नही है… बस तुम रह गयी हो…।
मैं किससे कहूँ… लक्ष्मण छोटा भाई है… उससे मैं कुछ कह नही सकता… एक दिन तो ऐसा आया था… जब मैं सब कुछ भूल गया… मैंने तब लक्ष्मण से पूछा था… तुम कौन हो ?
लक्ष्मण ने उत्तर दिया था… आपका भाई छोटा भाई लक्ष्मण ।
मैं कौन हूँ आप श्रीराम हैं ।
हम यहाँ वन में रोते हुए किसे खोज रहे हैं ?
तब लक्ष्मण ने उत्तर दिया था भाभी माँ वैदेही खो गयीं हैं !
ओह ! इतना सुनते ही… मैं मूर्छित हो गया था ।
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माँ ! इतना ही बोल पाये थे प्रभु ! फिर उन्होंने अपने नेत्र बन्द कर लिए थे… अश्रु प्रवाह चल पड़े थे उनके कमल नयन से ।
माँ मैथिली सुबुक रही थीं प्रभु का सन्देश सुनकर ।
शेष चर्चा कल
तत्व प्रेम कर मम अरु तोरा
जानत प्रिया एकु मन मोरा…
(I am Ramdoot Mother – Hanuman) Part-21
Mother Janaki in Ramdoot Satya Sapath Karunanidhan Ki… (Ramcharitmanas)
Mother, I am the messenger of Ram! I’m telling the truth! Trust me!
Brother Bharat! I said a lot… But mother Sita was not believing me at all.
I told you the story of Ram, now I said.
Mother Sita laughed, what will you tell Ramkatha… Ravana narrates better and more learned Ramkatha than you.
This ring, this ring?
These demon people are elusive… They can do anything!
While living in Mayanagari Lanka, it was natural for Maa Vaidehi to become distrustful of everyone.
Then all of a sudden she started crying Mother Maithili, you belong to Lanka only… You have come here disguised as a monkey! So eat me… kill me… why are you standing why are you lying like this?
Brother Bharat! Mother was talking to me crying in such a way that I could not understand at that time what should I do?
Mother ! I too cried like a child… I sat at his feet… Mother! Why would I lie… I am telling the truth I swear…. Yes, swear! Swear by Ravana… Mother said… You belong to Ravana only…
Oh ! What was mother saying… Brother Bharat! I was suffering a lot at that time, what should I do now!
That’s why I closed my eyes… remembered Lord Shri Raghavendra Sarkar and prayed to him only.
Got the solution… Had to meet…
Mother ! I opened my eyes and said-
I am telling the truth by swearing… I am the messenger of the Lord “Karunanidhan”!
Oh!… Mother Maithili now had a slight smile on her face.
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The meeting of bride and groom was taking place in that Kohvar of Janakpur.
Shyam and Gaur both were becoming one, as if darkness and light both were meeting… It was as if lightning was flashing in the sky.
Dear ! By what name should I call you from today?
Siya Sukumari had asked Ram for her life wealth.
Separating the teenager who was attached to the organ a little… Looking at the face of his beloved, Ram had said… whatever you like.
But this name will remain only between you and me… Only you and I will know this name… Siya Rani had said to her “love”.
Yes yes… Siya Joo! You say so!
I keep one name of yours “Karunanidhan”.
Your eyes are filled with compassion, Lord, you are full of compassion!
I am yours now… put whatever name you want… Saying this, Ram again wrapped his arm around his Siya.
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Today in Ashok Vatika
Tears were flowing from the eyes… remembering those things… of Mother Sita….
Mother ! Trust me… I am the messenger of Karunanidhan… Bharat Bhaiya! Saying this, I fell at mother’s feet.
Yes yes… Now I believe… that you are the messenger of my Lord.
But did not understand one thing Hanuman! You monkey… and how did the monkey mix with the human? How did you meet Prabhu?
Brother Bharat! This was the question of Mother Sita.
Mother ! You must have heard the name of Bali?
Say yes Hanuman!..
Mother ! Bali’s brother was Sugriva… but Bali had expelled Sugriva from his kingdom… I was with Sugriva.
Lord Shriram had reached Mata Shabari’s place while searching for you… Then Mata Shabari had told the address of Sugriva.
Lord Shri Ram befriended Sugriva and killed Bali… Then Sugriva sent his army in search of you.
Tears were flowing from my eyes – Bharat Bhaiya!…
Mother ! What is the status of us people to come here and find you… It is only a miracle of Lord Shriram’s grace that a monkey like me has come to Lanka… and mother! Your address is also known.
Hanuman ! Ravan has given one month’s time.
If the Lord does not come within a month, then I will give up my body, said Maa Vaidehi.
Mother ! Why do you worry Lord Shri Ram has an army of monkeys… that army…
I was about to say something further that… Mother stopped me midway and said – Everyone in the army is a monkey like you…? So small?
I laughed mom! What have you understood this Ramdoot!
No Hanuman! Ravan’s demons are very big… but you?
As soon as you hear this… Bharat Bhaiya! I increased my form… went on increasing…
I had made a huge mountain body.
Brother Bharat! As soon as mother Vaidehi saw me… she became happy… are all as brave as you in the army?
Mother is not like me! There are bigger heroes than me, Mahavir.
Bharat Bhaiya, I had to spend some more time at Mother’s feet. I became small again.
I took hold of mother’s feet
Ouch! When “taxes” filled with mother’s affection started roaming on my head…
My eyes watered…
Blessings came out of mother’s mouth
Vats Hanuman! You will remain immortal!
Mother ! I don’t want all this… give me only one blessing…
I asked my mother
What did you ask for?
All the listeners together asked Hanuman ji, Bharat ji also… and Shatrughan Kumar also and General Secretary Sumantra also…
What did you ask for?
“Wherever there is Ramkatha… whenever there is… I will be there”
Everyone including Bharat ji clapped and praised Hanuman ji.
Wow ! Hanuman ! Then you live in every era, in every period and will remain so because the story of Ram will continue to happen, Bharat ji had said this while laughing.
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Has the Lord said anything to me?
some message? For me ?
Mother Maithili asked me.
Brother Bharat! I told mom…
When all the monkeys bowed down and went away from Lord Shriram…Maharaj Sugriva had also gone away mother…then I was the last one left, I bowed down…then the Lord held my hand and took me to solitude … told me what… shall I say it literally?
Yes… yes.. Hanuman! Say it as it is said!
Mother encouraged me to say with great eagerness.
Mother ! Excuse me, I am saying as the Lord said –
O beloved! These birds of my life will not stay in your unbearable separation.
O my Hridayeshwari! Your separation has made me lifeless today.
Only Ram’s body is here… I don’t know how the breath goes on in this body! Where is my mind with me now? He has gone to you… What should I sing about this state of separation, Kishori! What can I say! What is my situation without you… This is what I understand… You only understand this much… Only you are printed in my mind… That flame of separation was burning in my heart which burnt everything to ashes… And now when I see… there is nothing left… only you are left….
To whom shall I tell… Laxman is the younger brother… I cannot say anything to him… One day it came like this… When I forgot everything… I had asked Laxman then… Who are you?
Laxman had replied… Your brother younger brother Laxman.
Who am I, you are Shri Ram.
Who are we looking for here crying in the forest?
Then Laxman replied that sister-in-law, mother Vaidehi is lost!
Oh ! As soon as I heard this… I fainted.
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Mother ! Lord was able to speak only this much! Then he closed his eyes… tears started flowing from his lotus eyes.
Mother Maithili was sobbing when she heard the message of the Lord.
rest of the discussion tomorrow
element love kar mam aru tora Janat Priya Eku Man Mora…