सिन्धु तरे पाषाण…
(रामचरितमानस)
भरत भैया ! सागर में सेतु बाँधनें का कार्य शुरू हो गया था ।
सागर पार कैसे जाएँ… इस का उत्तर विभीषण से माँगा प्रभु श्रीराम ने…
पर उत्तर बड़ा ही अजीब दिया था विभीषण ने…
आपके पूर्वज सगर ने इस सागर को प्रकट किया है… इसलिए ये आपके पूज्य हैं… आपको इनसे प्रार्थना करनी चाहिये…।
जड़ के अधिदैव प्रार्थना से प्रसन्न नही होते…
मुझे विभीषण की बातों पर हँसी आई… पर प्रभु कितने सरल है इस बात पर मैं गदगद् था… विभीषण की ऐसी बातों को भी प्रभु ने स्वीकार किया ।
और तीन दिन और तीन रात्रि तक सागर किनारे भूखे प्यासे रहकर प्रभु श्रीराम सागर से प्रार्थना करते रहे ।
लक्ष्मण जी को ये बात अच्छी नही लगी थी… उनका कहना था बाण का सन्धान करो… समुद्र को सुखा दो… और सेना लेकर चलो ।
पर प्रभु को विभीषण की बातों का आदर करना था…
आज तीन दिन हो गए…
तब प्रभु श्रीराम क्रोधित हो उठे थे… उनकी आँखें अंगार उगलने लगी थीं… समुद्र जलने लगा था… समुद्र के जीव-जन्तु… मरने लगे थे…
और तभी प्रभु ने बाण का सन्धान करने के लिए… मन्त्रोच्चार करना प्रारम्भ कर दिया था…
त्राहि माम् ! त्राहि माम् !…
किनारे पर हीरे मोती माणिक्य रत्न उपरत्न इन सबका ढेर लगना शुरू हो गया था…
आकार लेकर समुद्र देवता प्रकट हुए…
क्षमा करे प्रभु ! क्षमा करें !…
आप मुझे न सुखाएं… अपितु नल-नील जिस पाषाण को छूकर जलधि में छोड़ देंगे वो तैर जाएगा ।
आप नल नील से ये कार्य कराएं… मेरे ऊपर सेतु का निर्माण करें ।
सागर की बातों से भगवान प्रसन्न हुए… और उन्होंने तुरन्त आदेश दे दिया… “नल नील के द्वारा पत्थर तैराये जाएँ”।
करोड़ों वानर थे… सब पर्वतों को उखाड़-उखाड़ कर लाने लगे… और नल नील के हाथों में देने लगे थे ।
सेतु का कार्य इतनी शीघ्रता से हो जाएगा… किसी को पता नही था ।
एक ही दिन में 60 योजन का सेतु तैयार कर दिया था नल नील ने ।
भरत भैया ! दूर बैठे हैं प्रभु श्रीराम… और सेतु का कार्य दूर से ही देख रहे हैं ।
मैं उनके पास गया था…
एकाएक हँसनें लगे थे …
क्या हुआ भगवन् ! आप क्यों हँस रहे हैं… क्या ऐसा देख लिया आपने ।
एक जीव है… हनुमान ! विलक्षण सेवा भाव से भरा हुआ है वो … और मैं तो कहूँ उसकी सेवा भावना के आगे तुम सब भी…
भरत भैया ! मुझे उत्सुकता होने लगी थी… कौन है ऐसा प्राणी जो इस महान कार्य में अपनी सेवा दे रहा था… और प्रभु उसे ही केंद्र में रख रहे थे कौन है वो ?
मैंने आकाश की ओर देखा… स्वाभाविक था इतने विशाल सागर में सेतु बाँधनें के कार्य में महत्वपूर्ण सेवा देने वाला जीव कोई सामान्य तो हो नही सकता था ।
पर हँसते हुए प्रभु ने मुझ से कहा- वो सेवा धर्म के मर्म को जानने वाला जीव… ऊपर नही है… नीचे देखो… हनुमान ! नीचे…
मैंने फिर नीचे देखा… शायद कोई विशाल जीव हो… जो धरती पर चलने वाला हो… पर मुझे नही दीखा ।
तब प्रभु श्रीराघवेंद्र ने… मुझे इशारे से दिखाया…
एक छोटी-सी गिलहरी…
भरत भैया ! मैं हँसा… अच्छा भरत भैया ! सुनो… वो कर क्या रही थी… समुद्र में डूब जाती थी… फिर निकलती… और फिर रेती में लोटती थी… और फिर सेतु में जाकर अपने शरीर को झाड़ देती थी ।
मैं गया उसके पास… और उसको मैंने अपनी हथेली में उठा लिया ।
बड़े रोष से उस नन्ही गिलहरी ने मुझे देखा था… और चूं चूं करते हुए मुझसे बोली… मेरे काम में विघ्न क्यों डाल रहे हो ।
मैंने उसी की भाषा में उसे कहा… तुम क्यों बेकार में यहाँ घुस रही हो… जाओ अपना काम करो… यहाँ वानर लोग अपना काम कर रहे हैं… ।
चूं चूं करते हुए वो बोली… क्यों भगवान श्रीराम केवल तुम वानरों के ही हैं क्या ?
अरे ! ये सम्पूर्ण जगत उन्हीं का तो है… और यहाँ रह रहे समस्त जीव उन्हीं के हैं… फिर तुम्हारा ये कहना कि वानर ही सेवा करेंगे ये तो व्यर्थ की बातें हुयी तुम्हारी ।
भरत भैया ! उस नन्ही गिलहरी की सेवा भावना देखकर मैं दंग रह गया था…।
नही… ऐसी बात नही है… पर तुम यहाँ कर क्या रही हो ?
मैंने उस गिलहरी से पूछा था ये… ।
तब उस नन्ही गिलहरी ने मुझे उत्तर दिया…
मेरे प्रभु श्रीराम के चरण कोमल हैं… और ये वानर ऊटपटांग ढंग से पहाड़ को समुद्र में बिछा रहे हैं… उन पाषाण में से होकर मेरे प्रभु के कोमल चरण चलेंगे… आहा ! छाले पड़ जायेंगे मेरे प्रभु के चरणों में… वो कुछ देर मुँह लटकाये दुःखी होती रही ।
फिर बोली… मैंने सोचा क्यों न कोमल बालू इस सेतु में बिझा दूँ ।
इसलिए मैं… इतना बोलकर फिर वो मेरे हथेली से कूदने लगी… मानो वो कह रही हो… मेरे सेवा में क्यों विघ्न डाल रहे हो … मुझे जाने दो… काम बहुत है… और समय कम है।
भरत भैया !… मैं आनन्दित था उसे देखकर…
मैंने उससे कहा… अरे ! छोड़ो… ये सब क्या कर रही हो… किसी वानर के पैरों के नीचे अगर तुम आ गयी ना… तो मर जाओगी…।
मेरी बात सुनकर … वो मुझे देखने लगी… फिर बोली…
तुम पवनपुत्र हो ना ?… हनुमान हो ना तुम ?
मैंने हाँ… कहा ।
तब वो बोली… अजर अमर तो तुम हो… मैं तो मरने वाली ही हूँ… क्या फर्क पड़ता है… दो मास बाद मरुँ या अभी मरुँ ।
और हे पवनपुत्र ! अगर श्रीराम की सेवा करते हुए मरूंगी ना… तो मेरे लिए इससे बड़ा सौभाग्य और क्या होगा ?
और मैं मरूँगी तो पुल में ही मरूँगी… मेरे ऊपर प्रभु अपने चरण रखते हुए जाएंगे… आहा ! ये तुच्छ गिलहरी का देह भी धन्य हो जाएगा… ।
मेरे नेत्रों से अश्रु बह चले थे भरत भैया !
देखो गिलहरी ! उधर देखो… प्रभु श्रीराम बैठे हैं… वहाँ जाओ… और बड़े प्रेम से प्रभु को निहारती रहो… ये सेवा छोड़ो ।
हँसी गिलहरी… और मुझ से बोली… हे पवनपुत्र ! इस देह को तो सेवा में ही लगाना चाहिए… नही तो इस देह की सार्थकता क्या ?
मन तो मेरा लगा ही है ना रघुनाथ जी में… बस… मन लगना चाहिए प्रभु में… और तन लगना चाहिए सेवा में… पवनपुत्र ! सेवा नही होगी ना इस तन से… तो आलसी हो जायेंगे हम… और भक्त को कभी आलस्य नही करना है ।
पवनपुत्र !…
मैंने पीछे मुड़कर देखा तो प्रभु श्रीराम जी मेरे पीछे ही खड़े थे ।
बड़े प्रेम से मैंने उन्हें गिलहरी को देखते हुए… देखा था ।
फिर अपनी हथेली आगे की… मैंने प्रभु की हथेली में उस गिलहरी को रख दिया… गिलहरी प्रभु की हथेली में जाकर… कभी शरमावे… कभी उछले…
बड़े प्रेम से अपनी उँगलियाँ उस गिलहरी के देह पर घुमाया था प्रभु ने…
वह तो शान्त हो गई… मानो उसकी समाधी ही लग गयी थी ।
तुम धन्य हो गिलहरी… तुम धन्य हो…
सेवा के प्रति तुम्हारी जो भावना है… वो अत्युत्तम है… दिव्य है ।
तभी वो गिलहरी प्रभु की हथेली से कूद कर भाग गयी…
प्रभु हँसे… वो बार-बार प्रभु को देखते हुए जा रही थी…
अरे ! ध्यान से… आगे देखो… किसी वानर के पैर के नीचे मत आ जाना… मैंने कहा… पर उसे क्या परवाह थी ।
फिर वही काम शुरू किया था उसने… समुद्र में डुबकी लगाती थी… फिर बाहर आती… बालू में लोट जाती… फिर उस बालू को… सेतु में लगे पत्थर पर जाकर अपना शरीर झाड़ देती ।
प्रभु श्रीराम बहुत हँसे… अभी तक के समय में मैंने प्रभु को इस तरह हँसते हुए नही देखा था…
भरत भैया ! मैंने अपनें दोनों हाथ जोड़कर उस गिलहरी को प्रणाम किया था ।
शेष चर्चा कल…
“भक्त बड़े भगवान से “
Harisharan
Stones across the Indus… (Ramacharitmanas)
Brother Bharat! The work of building a bridge across the sea had started.
How to cross the ocean… Lord Shri Ram asked the answer from Vibhishan…
But Vibhishan gave a very strange answer.
Your ancestor Sagar has manifested this ocean… so he is your worship… you should pray to him….
The supernatural gods of the root are not pleased with prayer…
I laughed at Vibhishan’s words… but I was overwhelmed by how simple GOD is… GOD accepted such things of Vibhishan.
And for three days and three nights, being hungry and thirsty on the sea shore, Lord Shriram prayed to the ocean.
Lakshman ji didn’t like this thing… He said, do the research of the arrow… dry the sea… and take the army.
But the Lord had to respect Vibhishan’s words…
Today is three days…
Then Lord Shri Ram got angry… his eyes started spewing embers… the sea started burning… the creatures of the sea… started dying…
And only then the Lord had started chanting… to heal the arrow…
Save me! Save me!.
Diamonds, pearls, rubies, gems and jewels all started piling up on the shore…
The ocean god appeared after taking shape…
Pardon me Lord! Excuse me !…
You don’t dry me… but the stone which Nal-Neel will touch and leave in the water will float.
You get this work done with Nal Neel… Build a bridge over me.
God was pleased with Sagar’s words… and he immediately ordered… “Let the stones be floated by Nal Neel”.
There were crores of monkeys… all the mountains were uprooted and brought… and the taps were handed over to Neel.
The work of the bridge would be done so quickly… no one knew.
Nal Neel had prepared a bridge of 60 schemes in a single day.
Brother Bharat! Lord Shri Ram is sitting far away… and is watching the work of the bridge from a distance.
I went to him…
Suddenly started laughing…
What happened God! Why are you laughing… Have you seen this?
There is a living being… Hanuman! He is filled with an extraordinary sense of service… and I must say that in front of his sense of service, you all too…
Brother Bharat! I was getting curious… who is such a creature who was giving his service in this great work… and God was keeping him in the center. Who is he?
I looked at the sky… It was natural that the life giving important service in the task of building a bridge across such a vast ocean could not have been ordinary.
But laughingly the Lord said to me – That creature who knows the meaning of service religion… is not above… Look below… Hanuman! Below…
I looked down again… maybe there is some huge creature… who is going to walk on the earth… but I did not see it.
Then Lord Shriraghavendra… showed me by gesture…
A little squirrel…
Brother Bharat! I laughed… Ok brother Bharat! Listen… what was she doing… used to drown in the sea… then came out… and then used to roll back in the sand… and then went to the bridge and washed her body.
I went near him… and I lifted him in my palm.
That little squirrel looked at me with a lot of anger… and while babbling said to me… why are you creating obstacles in my work.
I told him in the same language… why are you unnecessarily entering here… go do your work… here the monkeys are doing their work….
While whispering, she said… why Lord Shri Ram belongs only to you monkeys?
Hey ! This whole world belongs to him only… and all the living beings living here belong to him only… Then your saying that only monkeys will serve you, these are your useless words.
Brother Bharat! I was stunned to see the service spirit of that little squirrel….
No… It’s not like that… But what are you doing here?
I had asked that squirrel…
Then that little squirrel answered me…
The feet of my Lord Shriram are soft… and these monkeys are spreading the mountain in the sea in a ludicrous manner… the soft feet of my Lord will walk through those stones… Aha! Blisters will appear at the feet of my Lord… She kept on feeling sad for some time.
Then she said… I thought why not sprinkle soft sand on this bridge.
That’s why I… after saying this she started jumping from my palm… as if she is saying… why are you creating obstacles in my service… let me go… there is a lot of work… and time is short.
Bharat Bhaiya!… I was happy to see him…
I told him… Hey! Leave it… What are you doing all this… If you come under the feet of a monkey… then you will die….
After listening to me… she started looking at me… then said…
You are the son of Pawan, aren’t you?… You are Hanuman, aren’t you?
I said yes….
Then she said… you are immortal… I am about to die… what difference does it make… should I die after two months or die now.
And oh son of Pawan! If I die while serving Shri Ram, then what will be a greater fortune for me than this?
And if I die, I will die in the bridge itself… God will go on me keeping His feet… Aha! This insignificant squirrel’s body will also be blessed….
Tears were flowing from my eyes Bharat Bhaiya!
Look squirrel! Look there… Lord Shri Ram is sitting… Go there… and keep looking at the Lord with great love… Leave this service.
Laughing squirrel… and said to me… O son of wind! This body should be engaged in service only… otherwise what is the significance of this body?
My mind is already engaged in Raghunath ji… just… mind should be engaged in God… and body should be engaged in service… son of Pawan! Service will not be done from this body… then we will become lazy… and the devotee should never be lazy.
Pawanputra!…
When I looked back, Lord Shri Ram was standing behind me.
With great love I had seen him looking at the squirrel.
Then I put my palm forward… I put that squirrel in the palm of the Lord… The squirrel went into the palm of the Lord… sometimes blushed… sometimes jumped…
With great love the Lord moved His fingers over the body of that squirrel…
She became calm… as if her samadhi had taken place.
You are blessed squirrel… you are blessed…
The feeling you have towards service… it is excellent… it is divine.
That’s why that squirrel ran away by jumping from the palm of the Lord.
Prabhu laughed… She was going again and again looking at Prabhu…
Hey ! Carefully… look ahead… don’t come under the feet of a monkey… I said… but what did he care.
Then she started the same work… used to take a dip in the sea… then came out… returned to the sand… then that sand… used to wash her body by going to the stone on the bridge.
Prabhu Shri Ram laughed a lot… I had never seen Prabhu laughing like this in the past…
Brother Bharat! I bowed down to that squirrel with folded hands.
Rest of the discussion tomorrow…
“Devotee to the Big God”
Harisharan