आज के विचार
(मुझे श्रीराम से प्रेम हो गया – हनुमान)
पुलकित तन मुख आव न वचना…
( रामचरितमानस )
मुझे प्रेम हो गया था श्री राम से…
भरत जी को अपनी आत्मकथा सुना रहे हैं हनुमान जी ।
उस समय मैं कुछ बोल न सका… जब मेरे श्री राम प्रभु ने मुझ से कहा- गुरुआज्ञा का पालन करने के लिए तुम किष्किन्धा जाओ !
ओह ! भरत भैया ! मैं तो वानर था न… हृदय की पीर को क्या समझता ! पर लग रहा था हृदय में बहुत कुछ हो रहा है ।
आज्ञा पालन करना ही तो मेरा कर्तव्य था… मुझे ऐसा लग रहा था कि… मैं क्या करूँ…? कहाँ जाऊँ…? इन साँवरे… घुँघराले बालों वाले पीताम्बर धारी “प्राणधन” को छोड़कर… कहाँ जाऊँ ?
किष्किन्धा ? अरे ! मुझे क्या लेना-देना था किष्किन्धा से !
हाँ… गुरुदेव सूर्य ने आज्ञा तो दी थी… पर आज्ञा पालन करने की क्षमता ही न रहे… तब कोई क्या करे ?
मैं तो अपनी सम्पूर्ण क्षमता ही खो चुका था… मैं “राममय” बनता जा रहा था ।
जब मैं अयोध्या से चला… अपने स्वामी के चरणों को छोड़कर… अपने माँ और पिता जी के पास जब चला… तब मेरी दशा ही विचित्र-सी हो गयी थी… शरीर में थकान सी लग रही थी…।
भरत भैया ! मैं ब्रह्माण्ड को तोड़ने की हिम्मत रखता हूँ…
पर ये क्या हो गया था मुझे… थोड़ा चलता था फिर बैठ जाता ।
किधर जाना है… ये भी भूल गया था ।
“श्री राम जय राम जय जय राम”
इसका उच्चारण करने लगा था… पर ये क्या ! मुझ से ये भी उच्चारण नही हो रहा था… “राम” कहते ही… मुझे रोना आ रहा था… फिर अपने आपको रोक लेता था…
पर इस भाव के वेग को कितना रोकता ?
जैसे-तैसे अपने माता-पिता के पास गया…
पर…
एक दिन मेरी माँ अंजनी ने पिता केसरी से कहा था- हनुमान तो अपना उत्साह खो चुका है… हाँ मैं भी देख रहा हूँ इसे… अयोध्या जब गया था ये… तब इसमें जो ऊर्जा थी… अब नही रही है… इसका ध्यान कहीं और लगाओ… नही तो ये कहीं का नही रहेगा… मेरे पिता जी ने कहा था… भरत भैया ! मैं सुन रहा था पिता जी की बातें ।
इसका विवाह करा दें ?
अरे ! ये क्या कह रहे थे मेरे पिता जी ।
मैं तुरन्त गया सामने… और पूरी दृढ़ता से कहा… मैं प्रण ले चुका हूँ… मैं आजीवन ब्रह्मचारी ही रहूंगा ।
इतना कहकर मैं अपनी गुफा में आ गया… और लेट गया ।
बाहर से आवाज आ रही थी… मेरी माँ कह रही थीं… आप विवाह की बातें न कीजिये इससे… कहीं ऐसा न हो… ये हमसे दूर चला जाए… हनुमान की कोई रूचि नही है भोग विलासिता में… आप देखते नही है… बन्दर कितना कामुक होता है… पर ये हमारा हनुमान… निष्काम है… पूर्ण निष्काम ।
नही… देवी अंजनी ! मैं तो ऐसे ही कह रहा था… शायद इसका मन बहल जाए इसलिए…।
इसे राघवेन्द्र से प्रेम हो गया है… वो हैं हीं प्रेममूर्ति… प्रेम के सागर… और जगत में प्रेम करने जैसा कोई है तो वह “राम” ही तो हैं ।
ओह ! ये बात है… वानर राज केसरी मुस्कुराते हुए चल दिए थे ।
भरत भैया ! मैं कैसे कहूँ – प्रेम हो गया था मुझे…
पर मेरे जैसे को ये पावन प्रेम कैसे हो सकता है ?
मैं तो कामी क्रोधी वानर… कैसे हो सकता है मुझे प्रेम !
और वो भी प्रभु श्री राम से ?
प्रेम आपको नही होगा… तो किसे होगा पवनसुत !
भरत जी ने कहा ।
प्रेम देवता आपके जैसे पवित्र हृदय को नही चुनेंगे तो किसे चुनेंगे ?
राम किसके वश में है ? ज्ञान के वश में कहाँ ? योग के वश में कहाँ ?
ये तो प्रेम के ही वश में हैं… और आपने अपने वश में कर लिया है ।
धन्य हैं आप ! आपके जैसा भक्त कौन हुआ है आज तक ?
भरत जी ने प्रणाम किया हनुमान जी को ।
अवध के उद्यान में थोड़ी देर चुप्पी छाई रही… कुछ-कुछ सोचते हुए मन ही मन मुस्कुरा रहे थे… हनुमान जी और भरत जी भी ।
फिर हनुमान जी ने बोलना शुरू किया- मेरी दशा बिगड़ती जा रही थी… जब देखो तब मेरे नेत्रों में अश्रु भरे रहते थे… मुझे रोमांच होता रहता… मुझे एकान्त प्रिय लगने लगा था ।
भरत भैया ! बन्दर शान्त हो जाए तो समझना चाहिए वो रोगी है ।
हाँ… मुझे रोग लग गया था… प्रेम का रोग… जो जगत पिता से हो गया… ये प्रेम – जगत पिता राघवेन्द्र सरकार से प्रेम था ।
भरत भैया ! एक साधारण प्रेम में भी कैसी स्थिति होती है… फिर ये प्रेम तो दिव्य और असाधारण है…
मैं एकान्त में बैठा रहता था… कभी रोने का मन करता… तो कभी राम लला को याद करके… उनकी कोई भी बालचापल्य लीला याद करके हँसता था ।
कहीं घूमने का… कहीं जाने का… उठने और बैठने का… कभी जी नही करता था… ये वानर बालक के लिए असाधारण स्थिति थी ।
ये प्रेम व्रेम आप मनुष्यों में तो होता है… पर हम वानरों में कहाँ !
हाँ एक बात तो है… उस विरह ने मुझे एक महानिधि दे दी थी ।
राम नाम… मैं हर समय राम नाम का ही मन्त्र जाप करता था ।
पर राम नाम जपते ही… फिर सावन भादों नयनों से बहने शुरू हो जाते थे…।
हनुमान जी अपने आँसुओं को पोंछ रहे हैं… फिर बोले…
प्रेम की वेदना सच में ही बड़ी मीठी होती है… इस रोग की प्यारी मिठास को कामान्ध व्यक्ति क्या जाने ?
भरत भैया ! ये प्रेम दुनियादारों के हिस्से की चीज थोड़े ही है… इस दर्द के भेद को ये संसारी क्या समझें ?
प्रेम की इस कसक को कोई दीवाना ही समझ सकता है ।
मैं किससे कहूँ ? कि मुझे क्या हो गया है ?
और कौन समझेगा कि एक वानर को भी प्रेम हो सकता है ?
लोग तो हंसेंगे ही ना ?
मैं पहाड़ों पर चलता था… तो पद डगमगा जाते थे मेरे… मैं खाई में गिर पड़ता था… पर मेरे पवन देव जो पिता भी हैं मेरे… वो मेरी रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहते थे ।
प्रेम ऐसा होता है… मुझे कुछ पता नही था ।
एक दिन – मेरे पास मेरे माता-पिता जी आ गये…
पुत्र ! हम दोनों ने विचार किया है कि तुम… कुछ समय के लिए किष्किन्धा जाकर रह लो… मेरी माँ ने मुझे समझाया ।
हाँ… इस अवस्था में परिवर्तन भी आवश्यक है… वो चाहे स्थान का ही परिवर्तन हो ।
मुझे बात ठीक लगी… और मेरे गुरु ने भी यही आज्ञा दी है… और मेरे स्वामी श्री राम ने भी तो यही कहा है ।
फिर मेरे स्वामी की बातों को मैं भला कैसे काट दूँ…
पिता जी मैं जाऊँगा किष्किन्धा ।
माँ अंजनी ने सोचा नही था कि मैं चलने के लिए राजी हो जाऊँगा ।
वो बहुत प्रसन्न हुयीं… मुझे मेरे पिता जी लेकर किष्किन्धा चल दिए थे ।
हम लोगों को कहीं भी जाना हो… स्थल कितना भी दूर हो… मात्र दो घड़ी ही लगते हैं ।
पहुँच गया था मैं… किष्किन्धा में ।
मेरे पिता का कितना आदर किया था उस बाली ने ।
बाली के पुत्र अंगद से तो मेरी अच्छी खासी दोस्ती ही हो गयी थी ।
हाँ… बाली के भाई थे सुग्रीव… वो शान्त थे… बाली आक्रामक था ।
सुग्रीव चाहते थे मैं उनके पास ही रहूँ… पर बाली चाहता था कि मैं उसकी बात ही मानूँ ।
पर भरत भैया ! मेरा वो जो भावावेश था ना… रोना… तड़फना… ये सब… बहुत कुछ कम हो गया था ।
किष्किन्धा में मेरे और भी मित्र बन गए थे… सुग्रीव तो मुझ से ही चिपके रहते थे… पर बाली ?
अरे ! भरत भैया ! ये बाली तो बड़ा खतरनाक था…
कैसे…? भरत जी ने पूछा ।
शेष चर्चा कल …
साधकों ! ये प्रेम की अगन हनुमान को ही नही लगी है… प्रभु श्री राम को भी इसने छूआ है… तभी तो… भगवान श्री राम की वाणी हैं…
“कपि से उऋण हम नाहीं”
प्रेम में कोई भला उऋण हो सका है आज तक ?
Harisharan
thoughts of the day
(I fell in love with Shriram – Hanuman)
Pulkit tan mukh aav na vachana… (Ramcharitmanas)
I fell in love with Shri Ram…
Hanuman ji is narrating his autobiography to Bharat ji.
At that time I could not say anything… When my Lord Shri Ram said to me – You go to Kishkindha to obey the orders of the Guru!
Oh, is that so ! Brother Bharat! I was a monkey, wasn’t I… What would you have understood the pain of the heart! But it seemed that a lot was happening in the heart.
It was my duty to obey… I was feeling like… what should I do…? Where do I go…? Where should I go leaving these handsome… curly haired Pitambar Dhari “Pranadhan”?
Kishkindha? Hey ! What did I have to do with Kishkindha!
Yes… Gurudev Surya had given orders… but there is no ability to obey… then what can one do?
I had lost all my potential… I was becoming “Rammay”.
When I left Ayodhya… leaving the feet of my master… when I went to my mother and father… then my condition had become strange… I was feeling tired in my body….
Brother Bharat! I dare to break the universe…
But what had happened to me… used to walk for a while and then sit down.
Where to go… had forgotten this too.
“Shri Ram Jai Ram Jai Jai Ram”
Started pronouncing it… but what is this! I could not even pronounce this… As soon as I said “Ram”… I was feeling like crying… Then I used to stop myself…
But how much can stop the speed of this emotion?
Somehow went to his parents…
On…
One day my mother Anjani said to father Kesari- Hanuman has lost his enthusiasm… yes I am also seeing him… when he went to Ayodhya… the energy he had then… is no longer there… focus his attention elsewhere … Otherwise it will be of no use… My father had said… Bharat Bhaiya! I was listening to father’s words.
Get her married?
Hey ! What was my father saying?
I immediately went in front… and said very firmly… I have taken a vow… I will remain a celibate for life.
Having said this, I came to my cave… and lay down.
A voice was coming from outside… my mother was saying… don’t talk about marriage with her… lest this happen… she may go away from us… Hanuman has no interest in indulgence… you don’t see… monkey is so sensual It happens… but this is our Hanuman… he is selfless… completely selfless.
No… Goddess Anjani! I was saying just like that… maybe his mind will get carried away, that’s why….
She has fallen in love with Raghavendra… He is the idol of love… the ocean of love… and if there is anyone in the world to love, then it is “Ram”.
Oh, is that so ! Here’s the thing… Vanar Raj Kesari had walked away smiling.
Brother Bharat! How can I say – I had fallen in love…
But how can someone like me have this pure love?
I am a lustful angry monkey… how can I be loved!
And that too from Lord Shri Ram?
If you don’t have love… then who will be a fan?
Bharat ji said.
If the god of love does not choose a pure heart like yours then whom will he choose?
In whose control is Ram? Where under the control of knowledge? Where under the control of yoga?
They are under the control of love only… and you have brought them under your control.
Blessed are you! Who has become a devotee like you till date?
Bharat ji bowed down to Hanuman ji.
There was silence in the garden of Awadh for a while… Thinking about something, the mind was smiling… Hanuman ji and Bharat ji too.
Then Hanuman ji started speaking – My condition was getting worse… My eyes used to fill with tears whenever I saw… I used to get thrilled… I started liking solitude.
Brother Bharat! If the monkey becomes calm, then it should be understood that he is sick.
Yes… I had a disease… the disease of love… which happened to Jagat Pita… this love was love for Jagat Pita Raghavendra Sarkar.
Brother Bharat! What is the condition even in an ordinary love… Then this love is divine and extraordinary…
I used to sit in solitude… sometimes I felt like crying… sometimes remembering Ram Lala… I used to laugh remembering any of his childhood pastimes.
To roam somewhere… to go somewhere… to get up and sit… never used to live… This was an extraordinary situation for the monkey child.
This love and affection is there in you humans… but where in us monkeys!
Yes, there is one thing… that separation had given me a great treasure.
The name of Ram… I used to chant the mantra of the name of Ram all the time.
But as soon as the name of Ram was chanted… Then the rain started flowing from the eyes….
Hanuman ji is wiping his tears… then said…
The pain of love is really very sweet… How can a lustful person know the sweet sweetness of this disease?
Brother Bharat! This love is not a thing for the worldly people… How should this worldly people understand the difference between this pain?
Only a crazy person can understand this pain of love.
who do i tell what happened to me?
And who would have thought that even a monkey can fall in love?
People will laugh, right?
I used to walk on the mountains… then my feet used to stagger… I used to fall into the ditch… but my Pawan Dev who is also my father… He was always ready to protect me.
Love is like this… I didn’t know anything.
One day my parents came to me…
Son ! Both of us have thought that you… go and stay in Kishkindha for some time… My mother explained to me.
Yes… change is also necessary in this stage… even if it is a change of place.
I liked the point… and my Guru has also given the same order… and my Lord Shri Ram has also said the same.
Then how can I cut off my master’s words…
Father, I will go to Kishkindha.
Mother Anjani did not think that I would agree to walk.
She was very happy… My father had taken me to Kishkindha.
We want to go anywhere… no matter how far the place is… it only takes two hours.
I had reached… in Kishkindha.
That Bali had respected my father so much.
I had become good friends with Bali’s son Angad.
Yes… Sugriva was the brother of Bali… He was calm… Bali was aggressive.
Sugriva wanted me to stay with him… but Bali wanted me to obey him only.
But brother Bharat! The emotion that I had… crying… yearning… all this… had reduced a lot.
I had made more friends in Kishkindha… Sugriva used to stick to me only… but Bali?
Hey ! Brother Bharat! This earring was very dangerous…
how…? Bharat ji asked.
Rest of the discussion tomorrow…
Seekers! This fire of love has not only touched Hanuman… It has also touched Lord Shri Ram… That is why… Lord Shri Ram has said…
“Kapi Se Urun Hum Nahin”
Has there been any good debt in love till date?
Harisharan