भोली-भाली माई ‘पंजीरी

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वृंदावन के पास एक गाँव में भोली-भाली माई ‘पंजीरी’ रहती थी। दूध बेच कर वह अपनी जीवन नैया चलाती थी। वह मदनमोहन जी की अनन्य भक्त थी। ठाकुर मदनमोहन लाल भी उससे बहुत प्रसन्न रहते थे। वे उसे स्वप्न में दर्शन देते और उससे कभी कुछ खाने को माँगते, कभी कुछ। पंजीरी उसी दिन ही उन्हें वह चीज बनाकर भेंट करती।वह उनकी दूध की सेवा नित्य करती थी, सबसे पहले उनके लिए प्रसाद निकालती, रोज उनके दर्शन करने जाती और दूध दे आती।लेकिन गरीब पंजीरी को चढ़ावे के बाद बचे दूध से इतने पैसे भी नहीं मिलते थे कि दो वक्त का खाना भी खा पाये, अतः कभी कभी मंदिर जाते समय यमुना जी से थोड़ा सा जल दूध में मिला लेती। फिर लौटकर अपने प्रभु की अराधना में मस्त होकर बाकी समय अपनी कुटिया में बाल गोपाल के भजन कीर्तन करके बिताती।कृष्ण कन्हैया तो अपने भक्तों की टोह में रहते ही हैं, नित नई लीला करते हैं।
एक दिन पंजीरी के सुंदर जीवन क्रम में भी रोड़ा आ गया। जल के साथ-साथ एक छोटी सी मछली भी दूध में आ गई और मदनमोहन जी के चढ़ावे में चली गई।दूध डालते समय मंदिर के गोसाईं की दृष्टि पड़ गई। गोसाईं जी को बहुत गुस्सा आया, उन्होंने दूध वापस कर दिया,
पंजीरी को खूब डाँटा फटकारा और मंदिर में उस का प्रवेश निषेध कर दिया।पंजीरी पर तो आसमान टूट पड़ा। रोती-बिलखती घर पहुँची-ठाकुर; मुझसे बड़ा अपराध हो गया, क्षमा करो, पानी तो रोज मिलाती हूँ, तुमसे कहाँ छिपा है, ना मिलाओ तो गुजारा कैसे हो ? और उस बेचारी मछली का भी क्या दोष ? उस पर तो तुम्हारी कृपा हुई तो तुम्हारे पास तक पहुँची।लेकिन प्रभु, तुमने तो आज तक कोई आपत्ति नहीं की, प्रेम से दूध पीते रहे, फिर ये गोसाईं कौन होता है मुझे रोकने वाला। और मुझे ज़्यादा दुख इसलिए है कि तुम्हारे मंदिर के गोसाईं ने मुझे इतनी खरी खोटी सुनाई और तुम कुछ नहीं बोले। ठाकुर, यही मेरा अपराध है तो मैं प्रतिज्ञा करती हूँ कि तुम अगर रूठे रहोगे, मेरा चढ़ावा स्वीकार नहीं करोगे तो मैं भी अन्न-जल ग्रहण नहीं करुंगी।यहीं प्राण त्याग दूंगी। भूखी प्यासी, रोते रोते शाम हो गई।तभी पंजीरी के कानों में एक मधुर कंठ सुनाई दिया- माई ओ माई, उठी तो दरवाजे पर देखा कि एक सुदर्शन किंतु थका-हारा सा एक किशोर कुटिया में झाँक रहा है।

“कौन हो बेटा…???”

“मैया, बृजवासी ही हूँ, मदन मोहन के दर्शन करने आया हूँ। बड़ी भूख लगी है कुछ खाने का मिल जाए तो तुम्हारा बड़ा आभारी रहूँगा।”
पंजीरी के शरीर में ममता की लहर दौड़ गई और बोली– “कोई पूछने की बात है बेटा, घर तुम्हारा है। ना जाने तुम कौन हो जिसने आते ही मुझ पर ऐसा जादू बिखेर दिया है। बड़ी दूर से आए हो क्या ? क्या खाओगे ? अभी जल्दी से बना दूँगी।”
“अरे मैया, इस समय क्या रसोई बनाओगी, थोड़ा सा दूध दे दो वही पी कर सो जाउँगा। “

दूध की बात सुनते ही पंजीरी की आँखें डबडबा आयीं, फिर अपने आप को सँभालते हुए बोली- “बेटा, दूध तो है पर सवेरे का है, जरा ठहरो अभी गैया को सहला कर थोड़ा ताजा दूध दुह लेती हूँ।”
“अरे नहीं मैया, उसमें समय लगेगा। सवेरे का भूखा प्यासा हूँ, दूध का नाम लेकर तूने मुझे अधीर बना दिया है, अरे वही सुबह का दे दो, तुम बाद में दुहती रहना।”

डबडबायी आँखों से बोली… “थोड़ा पानी मिला हुआ दूध है।अरे मैया तुम मुझे भूखा मारोगी क्या ? जल्दी से दूध छान कर दे दो वरना मैं यहीं प्राण छोड़ दूंगा।”

पंजीरी को बड़ा आश्चर्य हुआ कि ये बालक कैसी बात कर रहा है, दौड़ी-दौड़ी गई और झटपट दूध दे दिया।
दूध पीकर बालक का चेहरा खिल उठा और बोला –“मैया, कितना स्वादिष्ट दूध है। तू तो यूँ ही ना जाने क्या-क्या बहाने बना रही थी, अब तो मेरी आँखों में नींद भर आई है, अब मैं सो रहा हूँ, इतना कहकर वो वहीं सो गया।”

पंजीरी को फ़ुरसत हो गई तो दिन भर की थकान, दुख और अवसाद ने उसे फिर घेर लिया। जाड़े के दिन थे ,भूखे पेट उसकी आँखों में नींद कहाँ से आती। जाडा़ बढ़ने लगा तो अपनी ओढ़नी बालक को ओढ़ा दी। दूसरे प्रहर जो आँख लगी कि ठाकुर श्री मदन मोहन लाल जी को सम्मुख खड़ा पाया।
ठाकुर जी बोले,” मैया, मुझे भूखा मारेगी क्या ? गोसाईं की बात का बुरा मान कर रूठ गयी। खुद पेट में अन्न का एक दाना तक न डाला और मुझे दूध पीने को कह रही है। मैंने तो आज तेरे घर आकर दूध पी लिया अब तू भी अपना व्रत तोड़ कर कुछ खा पी ले और देख, मैं रोज़ तेरे दूध की प्रतीक्षा में व्याकुल रहता हूँ, मुझे उसी से तृप्ति मिलती है। अपना नियम कभी मत तोड़ना। गोसाईं भी अब तेरे को कुछ ना कहेंगे। दूध में पानी मिलाती हो, तो क्या हुआ ? उससे तो दूध जल्दी हज़म हो जाता है। अब उठो और भोजन करो। “

पंजीरी हड़बड़ाकर उठी, देखा कि बालक तो कुटिया में कहीं नहीं था।सचमुच लाला ही कुटिया में पधारे थे। पंजीरी का रोम-रोम हर्षोल्लास का सागर बन गया।
झटपट दो टिक्कड़ बनाए और मदन मोहन को भोग लगाकर आनंदपूर्वक खाने लगी। उसकी आंखों से अश्रुधारा बह रही थी।थोड़ी देर में सवेरा हो गया पंजीरी ने देखा कि ठाकुर जी उसकी ओढ़नी ले गये हैं और अपना पीतांबर कुटिया में ही छोड़ गए हैं।इधर मंदिर के पट खुलते ही गोसाईं ने ठाकुर जी को देखा तो पाया की प्रभु एक फटी पुरानी सी ओढ़नी ओढ़े आनंद के सागर में डूबे हैं। उसने सोचा कि प्रभु ने अवश्य फिर कोई लीला की है, लेकिन इसका रहस्य उसकी समझ से परे था।
लीला-उद्घाटन के लिए पंजीरी दूध और ठाकुर जी का पीताम्बर लेकर मंदिर के द्वार पर पहुँची और बोली, -“गुसाईं जी, देखो तो लाला को, पीतांबर मेरे घर छोड़ आये और मेरी फटी ओढ़नी ले आये। कल सवेरे आपने मुझे भगा दिया था, लेकिन भूखा प्यासा मेरा लाला दूध के लिये मेरी कुटिया पर आ गया।”

गोसाईं जी पंजीरी के सामने बैठ गए और बोले -“भक्त और भगवान के बीच मैंने क्या कर डाला, भक्ति बंधन को ठेस पहुंचा कर मैंने कितना बड़ा अपराध कर डाला, माई, मुझे क्षमा कर दो। “

पंजीरी बोली.. “गुसाई जी, देखी तुमने लाला की चतुराई, अपना पीतांबर मेरी कुटिया मे जानबूझकर छोड़ दिया और मेरी फटी-चिथड़ी ओढ़नी उठा लाये। भक्तों के सम्मान की रक्षा करना तो इनकी पुरानी आदत है।”

ठाकुर धीरे-धीरे मुस्कुरा रहे थे, अरे मैया तू क्या जाने कि तेरे प्रेम से भरी ओढ़नी ओड़ने में जो सुख है वो पीतांबर में कहाँ..???



In a village near Vrindavan, innocently Mai ‘Panjiri’ lived. She used to make her living by selling milk. She was an exclusive devotee of Madan Mohan ji. Thakur Madan Mohan Lal was also very pleased with him. They appeared to him in a dream and asked him to eat something, sometimes something. Panjiri would make and present that thing to him on the same day. She used to serve his milk regularly, first of all took out prasad for him, went to see him daily and gave milk. It was not possible to eat even two meals a day, so sometimes while going to the temple, Yamuna used to mix a little water in milk. Then after returning, being engrossed in the worship of her Lord, she spent the rest of the time in her hut by chanting the hymns of Bal Gopal. Krishna Kanhaiya always lives in the reconnaissance of his devotees, constantly doing new leela. One day Panjiri’s beautiful life sequence also got a hindrance. Along with the water, a small fish also came into the milk and went into the offering to Madanmohan. Gosain ji got very angry, he returned the milk, He scolded Panjiri a lot and prohibited his entry in the temple. The sky broke on Panjiri. Reached home crying – Thakur; I have committed a big crime, sorry, I mix water everyday, where is it hidden from you, if you do not mix then how are you living? And what’s wrong with that poor fish? If you were kind to him, then it reached you. But Lord, you have not objected till date, keep drinking milk with love, then who is this cowboy who is going to stop me. And I am very sad because the gosain of your temple told me such a lie and you did not say anything. Thakur, this is my crime, so I promise that if you remain angry, if you do not accept my offerings, then I will also not take food and water. I will give up my life here. It was evening, hungry and thirsty, weeping. Then a sweet voice was heard in Panjiri’s ears – Mai O Mai, got up and saw at the door that a handsome but exhausted teenager was peeping into the hut.

“Who are you son????”

“Maya, I am a Brijwasi, I have come to see Madan Mohan. I am very hungry, if I get something to eat, I will be very grateful to you.” A wave of Mamta ran in Panjiri’s body and said – “There is something to ask son, the house is yours. Don’t know who you are who has spread such magic on me as soon as you come. Have you come from a long distance? What will you eat? ? I’ll make it soon.” “Hey Maia, what kitchen will you make at this time, give me some milk and I will sleep after drinking that.”

Panjiri’s eyes twitched as soon as she heard about the milk, then she said, taking care of herself, “Son, there is milk, but it is morning, just wait, now I take some fresh milk after caressing the cow.” “Oh no my mother, it will take time. I am hungry and thirsty in the morning, you have made me impatient by taking the name of milk, oh give it to the morning, you keep on milking later.”

She said with tearful eyes… “Some water is mixed with milk. Oh my mother, will you starve me? Filter the milk quickly or else I will leave my life here.”

Panjiri was very surprised how this boy was talking, ran and gave milk immediately. After drinking milk, the child’s face blossomed and said – “Miya, what a delicious milk. You just don’t know what excuses you were making, now my eyes are full of sleep, now I am sleeping, so much Saying that he slept there.”

When Panjiri got free time, the day’s fatigue, sadness and depression again surrounded him. It was winter, where would the sleep in his eyes come from a hungry stomach. When the winter started increasing, she covered the child with her veil. The second watch that the Thakur saw standing in front of Shri Madan Mohan Lal ji. Thakur ji said, “Maya, will I starve to death? She got angry at Gosain’s words. She herself did not put even a grain of food in her stomach and is asking me to drink milk. I came to your house today and drank milk. Now you also break your fast and eat and drink something and see, every day I am anxious waiting for your milk, I get satisfaction from it. Never break your rule. Even the cows will not say anything to you now. Water in milk If you mix, then what happened? Milk gets digested quickly. Now get up and have food.

Panjiri got up agitated, saw that the child was nowhere in the hut. Lala was really the only one who had come to the hut. The romance of Panjiri became an ocean of joy. Quickly made two tikkads and offered it to Madan Mohan and started eating it happily. Tears were flowing from his eyes. After a while, it was early morning when he saw that Thakur ji had taken her veil and left his Pitambar in the hut. The Lord is immersed in an ocean of bliss, clad in a torn old veil. He thought that the Lord must have performed some pastime again, but the mystery of this was beyond his understanding. For the inauguration of Leela, Panjiri reached the door of the temple with milk and Thakur ji’s Pitambar and said, “Gusain ji, look at Lala, Pitambar left my house and brought my torn veil. Yesterday morning you drove me away. But my Lala, hungry and thirsty, came to my hut for milk.”

Gosain ji sat in front of the register and said – “What have I done between the devotee and God, what a great crime I have committed by hurting the bond of devotion, Mai, forgive me.”

Panjiri said.. “Gusai ji, you saw Lala’s cleverness, deliberately left your pitambar in my hut and brought my torn rags. Protecting the honor of the devotees is their old habit.”

Thakur was smiling slowly, oh my mother, what do you know that where is the happiness in wearing your veil full of love, where is it in Pitambar..???

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