*उपद्रवी कन्हैया* एक सहज लीला *

lake mood meditate


अच्छा उपद्रव किया आज तो इस नन्द के लाल नें ….
उद्धव हँस रहे हैं ।

ऐसा क्या हुआ ? क्या किया नन्दनन्दन नें ऐसा कि तुम अकेले ही हँस रहे हो उद्धव ! विदुर जी नें प्रश्न किया था ।

तात ! एक प्रसंग स्मरण हो आया…..ओह ! उद्धव फिर हँसनें लगे ।

यमुना के तट पर बादल घुमड़ आये थे ………कपि आनन्दित हो उठे थे ….मोर नाच रहे थे …..कोयल, पपीहा , शुक सब अपनें अपनें राग अलाप रहे थे………..श्रीकृष्ण स्मृति नें सब को आनन्द से भर दिया था ………और क्यों न आनन्द आये ? ये स्वयं आनन्द के ही तो साकार रूप हैं……..कन्हैया ।

उद्धव उस लीला को सुनानें लगे थे ……….पर लीला को सुनानें से पहले उद्धव बहुत हँसे ………..तन पर ओढ़े हुए चादर को मुँह पर रखते हुये हँस रहे थे ……..हँसी संक्रामक होती है ……..हाँ ये फैलती है ।

तो विदुर जी भी हँस पड़े थे ।

उदासी छाई है आज ग्वाल मण्डली में ………….सब सुस्त हैं ………मध्य में कन्हैया बैठे हैं और सब को देख रहे हैं ……….चारों ओर सखा बैठे हैं ………..गोलाकार ।

मनसुख, मधुमंगल, तोक, भद्र सब थे ……..पर उदास से थे ।

अब यमुना के जल में कंकड़ फेंक रहे हैं कन्हैया ……………सब ग्वाल उसी को देख रहे हैं …………..क्या करें ।

कपि भी आकर बैठ गए ……..मोर आये तो हैं ……पर अपनें “घनश्याम” को गम्भीर देखकर ये भी चुप्प बैठ गए ।

चल कन्हैया ! चल ! यहाँ बैठ के कहा करेगो ?

मनसुख नें कन्हैया को झँकझोरा ।

कहाँ जायगो दारिके ! मधुमंगल नें व्यंग किया ।

गोपियन के यहाँ ……….चल ! माखन खायेगें ……मनसुख नें फिर हाथ पकड़ा, और कन्हैया को उठाना चाहा ।

डण्डा ते अपनी पूजा करवाय लीयो………समझे नायँ का ? अब सब सावधान है गयीं हैं गोपियाँ……अपनें घरन में घुसवे हूँ नायँ देंगी …..खायेगो माखन ! मधुमंगल नें समझाया ।

अरे ! कितनों हूँ सावधान है जाएँ …………पर कन्हैया के सामनें उनकी कछु नाय चलेगी ………चौं लाला कन्हैया ? मनसुख , कन्हैया के पीठ में हाथ मारते भये बोलो ।

सुनो सुनो ! एक उपाय है …….कन्हैया उछलते हुए बोले ।

हाँ का उपाय है ? मनसुख के साथ साथ सबनें पूछा ।

चलो ! पीताम्बरी सम्भालते हुए कन्हैया उठे ।

उनके साथ सब ग्वाल बाल उठ गए …………..

पर ………..तुम लोग छिप जाना ……….मैं जब दो बार ताली बजाऊं तब तुम आना …………अभी चलो मेरे साथ ……..ये कहकर कन्हैया ग्वालों के साथ चल दिए ।……..किसके यहाँ जाऊँ ! किसके जाऊँ ! ……..विचार करते रहे ……..सामनें एक गोपी दीखी ………ग्वालों को छुपनें के लिये कह दिया और स्वयं चले उसी गोपी के यहाँ ।

गोपी तो प्रसन्न हो गयी ………देख रही है ….शान्त भाव से चले आरहे हैं कन्हैया ……मुखचन्द्र आज गम्भीर है …………गोपी देख रही है …….मुख में कोई भाव भी नही दिखाई दे रहे ………बस शान्त से चले आये गोपी के पास …………..

भाभी, राम राम ! उसी गम्भीर मुद्रा में ही कहा ।

गोपी हँसी …………कैसे आये आज यहाँ ?

“हम अपनी इच्छा से अब कहीं जाते आते नही हैं आज कल” …………बड़ों की तरह बतिया रहे हैं कन्हैया ।

गोपी तुरन्त बैठ गयी द्वार पर ही……..कपोल में हाथ रख लिया मुग्ध सी हो कर बस कन्हैया को देखती जा रही है ।

अच्छा ! तो बता दो फिर किसकी इच्छा से हमारे यहाँ पधारे हो ?

मैया नें भेजा है हमें……….कन्हैया नें उत्तर दिया ।

क्यू ? क्यू भेजा है मैया नें ? गोपी नें पूछा ।

वो इसलिये कि……..”.हमारे यहाँ बड़े बड़े सन्त महात्मा आये हैं” …..कन्हैया अपनी हँसी छुपा रहे हैं……..”.बड़े बड़े सन्त महात्मा ……जोगी, सन्यासी, बैरागी, सब आये हैं” ……….

तो ? गोपी नें पूछा ।

सिर खुजलाते हुये कन्हैया बोले ……..तो ! मेरी मैया नें मुझ से कहा है ………इन सन्तों की सेवा के लिये प्रत्येक गोपी के यहाँ से माखन की एक एक मटकी ले आ ।

क्यों ? कपोल में हाथ रखे रखे ही गोपी पूछ रही है ।

इसलिये कि ……….तुम सबन कूँ पुण्य मिलेगो ।

गोपी प्रसन्न हुयी……….ओह ! ये तो बढ़िया काम है ………और आज अमावस्या भी है………दान को पुण्य मिलेगो ……….

भाभी ! ज्यादा मिलेगो …..कन्हैया खुश होते हुए बोले ।

दो मटकी ले जाओ माखन की ………गोपी नें कहा ।

अब ये तो तुम्हारी श्रद्धा है ………दो, दो या चार दो ……….वैसे मैया नें एक ही मंगायो है ।

ले के कौन जावेगो ? गोपी नें प्रश्न किया ।

अरे ! सब व्यवस्था है भाभी ! तू दे दे माखन की मटकी …….

ये कहते हुए कन्हैया नें ताली बजाई……दो ताली बजाई ……..

सोई ग्वाल सखा सब आगये………….

इनके मूड में धर दो , भाभी ! कन्हैया नें हँसते हुए कहा ।

अरी ! जि कहा दे रही है तू ? पड़ोस की गोपी नें पूछा ………

पहली गोपी नें सारी बात बता दी …..सन्तों और महात्माओं के लिये माखन जा रहा है मेरे यहाँ से ……गोपी प्रसन्नता में बोली ।

तो मेरे यहाँ से भी ले लो , लालन ! …………उस गोपी नें भी अपनें यहाँ से माखन की भरी मटकी दे दी ………….

हँसते हुए उद्धव बोले – इस तरह से दस प्रमुख घरों से मटकी उठा ली इन लोगों नें………अब कन्हैया से पूछनें लगे कहाँ चलें ?

कन्हैया बोले ……..चिन्ताहरण महादेव के पास …………..वहीँ चलो …..वहीँ बैठेंगे ……..और वहीँ माखन खाएंगे …………

तात ! सब ग्वाल बाल माखन की मटकी लेकर यमुना के किनारे आगये थे ……..और सब बैठ गए ……….मध्य में कन्हैया ………चारों ओर ग्वाल बाल ……….सब हंस रहे हैं ………कन्हैया हँसा रहे हैं ।
सुन वीर ! कन्हैया माखन ले गयो है ……आज मावस भी है ………सन्त महात्मा बृजरानी जु के यहाँ आये हैं ……..क्यों न हम भी चलें उन सबके दर्शन करवे कूँ ?

दूसरी बोली ……….विचार तो उत्तम हैं तेरे ………..तीसरी गोपी बोली ……हमारे यहाँ ते माखन गयो है ….तो हमें जानो ही चहिए ……….

सब तैयार होनें लगी ……..सुन्दर सुन्दर लंहगा पहनें, फरिया……..सुन्दर चोली …….पूरा सोलह श्रृंगार किया …….और अपनें अपनें घरन ते निकसीँ ………..खिलखिलाती भयी ……….आनन्द और उमंग मन में धारण करके ……..नन्द महल में पहुँची ।

नन्द महल में आज अकेली बृजरानी ही थीं …………..

पाँय लागूं बृजरानी जु ! गोपिन नें प्रणाम कियो …….पाँव छूए ।

जीती रहो …..खुश रहो …………और बताओ कैसे आई हो ?

बृजरानी नें पूछ लिया ।

कहाँ हैं ? गोपियाँ पूछनें लगीं ।

कौन ? बृजरानी नें भी प्रतिप्रश्न किया ।

सन्त महात्मा कहाँ हैं ? गोपियों नें अब स्पष्ट किया ।

मेरे पास कहा धरे हैं सन्त महात्मा ? बृजरानी को अजीब लगा ।

री गोपी ! मेरे पास कहाँ हैं सन्त महात्मा ?

तो, दो दो माखन की मटकी ले के गयो है तेरो छोरा …….और कह रो कि – सन्त महात्मा आये हैं घर में ….बेचारी गोपी समझ तो गयी कि कन्हैया नें आज फिर हमें बनाय दियो……..

देखो गोपियो ! मेरे पास तो सन्त महात्मा हैं नायँ ……आये नायँ ……अब लाला के पास आये हों तो मोय पतो नायँ ………..ये कहते हुए बृजरानी भी भीतर चली गयीं ।

अब सजी धजी गोपियाँ अपनें आपको ठगी अनुभव करनें लगीं थी….

एक गोपी नें दूसरी ते कही ……….तुम चलो मेरे साथ ……आज हम उसे छोड़ेंगी नही……….सब गोपिन नें हाथ में एक एक डण्डा ले लियो …….और खोजती भई वहीँ पहुँच गयीं ……..यमुना किनारे ।

चारों ओर ग्वाल सखा बैठे हैं …………सबके पीले वस्त्र हैं …….पगड़ी बंधी है पीली ………..मस्त – अलमस्त स्थिति है सबकी ।

मध्य में विराजे हैं कन्हैया………….

मैने कही …..सन्त आये हैं मेरे घर ……….तो कहवे लगी वो गोपी ……..दो दो मटकी माखन ले जाओ ….एक क्यों ?

मैने भी कही ………..मनसुख ! सुन ! मोय हँसी आरही ………पर मैने हँसी कूँ रोक लियो…….मैने कही – मैया नें एक ही मटकी की कही है …..ज्यादा श्रद्धा होय तो दो मटकी दे दे ।…..ये कहते हुए कन्हैया हँसे…..खूब हँसे……सखा सब लोट पोट हो रहे हैं यमुना की बारू में ।

भैया लाला ! वाह ! आनन्द आगो …………..माखन खाते हुए मनसुख बोल रहा है ……और बड़ा प्रसन्न हो रहा है ।

देख भैया ! तेनें ब्राह्मण देवता की आत्मा तृप्त कर दई ……पर तोय पतो है …..ब्राह्मण कूँ जिमायवे के बाद दक्षिणा देनी पड़े…….दे दक्षिणा ।

मनसुख के मुख से जैसे ही कन्हैया नें ये सुनी ………….तभी मनसुख के पीछे एक गोपी आके ठाड़ी है गयी …….वा के हाथ में डण्डा ।

कन्हैया हँसे ………खूब हँसे ……और बोले ……..मनसुख ! चिन्ता मत करे ….दक्षिणा देवे वारी तेरे पीछे ही खड़ी है ।

अब वो गोपी सामनें आयी …………कन्हैया ! लाल जी !, बताओ कहाँ हैं सन्त ? कहाँ हैं तुम्हारे महन्त ! पीछे से अन्य गोपियाँ भी आगयी थीं ।……………कन्हैया उठकर खड़े है गए ……….

गोपियों ! मैं झुठ नही बोलूँ हूँ ………..कन्हैया चंचल निगाह से इधर उधर देखते हुए बोले ।

हाँ हाँ ………तो बताओ ! कहाँ हैं सन्त ?

कन्हैया नें कहा ………गोपियों ! ये सब हैं सन्त ……..ग्वाल बाल, इनसे बड़ा कौन सन्त होगा……..ये सबसे बड़े सन्त हैं …….और मैं हूँ इनको महन्त……कन्हैया की बात सुनकर गोपियाँ हंस पडीं ………ग्वाल सखा हँसते हुए भागे ……कन्हैया नें भागते हुए कहा ……….

हमारी पूजा करो ……….इनकी पूजा करो ……जो भी सन्त महन्त हैं हम ही हैं …..इधर उधर मत भटको ……………हँसते हुए सब भाग गए थे ……गोपियाँ भी कुछ दूर भागीं ……पर फिर वहीँ यमुना के कूल में बैठ कर खूब हँसती रहीं ……….खूब हँसती रहीं ।

विदुर जी के तो हंस हंसकर अब आँसू भी बहनें लगे थे ।

उत्तमा सहजावस्था – यही है सहज अवस्था …..सहज रहो तात !

उद्धव आनन्दित हैं ये कहते हुए ।

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