मीरा चरित भाग 30

‘हाँ हजूर ।’
दासी ने आकर बताया कि स्नानकी सामग्री प्रस्तुत है।

‘मैं जाऊँ स्नान करने?’—उन्होंने अपनी दोनों बेटियों से पूछा।
‘पधारो।’- कहकर दोनों ही हिंडोले से उतर पड़ीं। मीरा श्यामकुँजकी ओर तथा फूलाँ अपनी सखियोंके पास।

रात ठाकुरजी को शयन कराकर मीरा उठ ही रही थी कि गिरजाजी की दासी चन्दन ने आकर धीरे से कहा-
‘बड़ा बावजी हुकम आपने याद फरमावे (बड़े कुँवरसा आपको बुलवा रहे हैं) ।’

‘क्यों? अभी?’–उसने चकित हो पूछा।

दासी के साथ जाकर मीरा ने देखा कि चित्तौड़ी रानी का महल प्रकाश से नहा गया है। नीचे दमामणियाँ गा रही हैं। पूरा महल नीचे से ऊपर तक सुगन्ध से गमगमा रहा है। सभी महलों से न्यौछावरें और मनुहारें आ रही हैं, अतः सेवक दासियाँ इधर से उधर भागते-से चल रहे हैं। छोटे भाई तो स्वयं ही आ गये थे न्यौछावर करने। उसकी बड़ी माँ भी उस बहुमूल्य पोशाक में कितनी सुन्दर लग रही थी! वे घूँघट काढ़े वीरमदेवजी के पास ऊँची गद्दी पर विराजमान थीं। दोनों को देखकर लगता था अभी-अभी विवाह से लौट मौर-कंगन खोलकर बैठे हों। उसे आयी देख वीरमदेव जी ने पुकारा-
‘मीरा! इधर मेरे पास आ बेटी!’

दोनों को प्रणाम कर वह वीरमदेवजी के पास बैठ गयी।
‘तुम्हारी यह माँ कैसी लगती है तुम्हें?’– उन्होंने मुस्कराकर पूछा।
‘माँ तो माँ होती है। माँ कभी बुरी नहीं होती।’-मीराने हँसकर कहा।
‘इनके पीहर का वंश, वह कैसा है?’ ‘यह तो इस विषय में मुझसे अधिक आप जानते होंगे। यदि मुझसे सुनना चाहते हों तो हिन्दुआ सूर्य का वंश संसार में सर्वोपरि है।’
‘क्या हमसे भी अधिक बेटी?’–आज वीरमदेवजी प्रसन्न जान पड़ते थे।

इसपर भी उनसे बात करने की हिम्मत कम से कम बच्चो को नहीं हो पाती थी। केवल मीरा थी जो न किसी से अनावश्यक लाज करती, न उसे भय ही लगता था।

‘मेरी समझ मे तो बावजी हुकुम! आरंभ में सभी वंश श्रेष्ठ ही होते है। उसके किसी वंशज के दुष्कर्म के कारण अथवा हल्की जगह विवाह सम्बन्ध से ही लघुता आती है। होने को तो सिसोदिया वंश में भी उदा हत्यारा जैसे पितृहन्ता और पृथ्वीराज-जगमाल जैसे भाई को मारनेका प्रयत्न करने वाले हुए ही हैं, किन्तु परम्परागत एकलिंग के दीवानों के गुण-गरीमा के सम्मुख वे छोटे-मोटे दूषण दब जाते हैं।’

उसने हँसकर बड़ी माँ की ओर देखा-‘भाभा हुकम! अब तो यहाँ केवल जीजियाँ ही हैं, घूँघट उठा दीजिये न। लग रहा है, जैसे बावजी हुकम अभी-अभी आपको ब्याह के मंडप से उठाकर ले पधारे हों। कोई आयेगा तो पहरेपर खड़ी जीजी आकर बता देगी।’

मीराकी बात का जब वीरमदेवजी ने भी समर्थन किया तो गिरजाजी ने घूँघट सिरपर रख लिया। मीरा ने उनका मुख देखकर कहा-‘कितनी सुन्दर लग रही हैं आप?’
‘तेरे जैसी तो नहीं ! तू तो रूपकी खान है मेरी लाड़ल पूत!’-उन्होंने मीरा के मुख को अंजलि में भरते हुए प्यार से कहा।

‘रूपकी खान’ शब्द सुनते ही मीरा के हृदयमें विद्युत् रेखा लहरा-सी गयी।मुख से कराह निकलते-निकलते रह गयी। मुँह पर आयी विवर्णता को देखकर वीरमदेवजी ने पूछा–’स्वास्थ्य तो ठीक है न?’
‘हुकम।’– मीराने सिर हिलाया।
‘तुम्हारी इन माँ के भतीजे हैं भोजराज। रूप और गुणों की खान….’
‘मैंने सुना है।’–बीचमें ही मीराने कहा।
‘वंश और पात्र में कहीं कोई कमी नहीं है। राणावत जी तुझे अपने भतीजे की बहू बनाना चाहती हैं।’
‘बावजी हुकम!’-मीरा ने सिर झुका लिया—’ये बातें बच्चोंसे करने की तो नहीं हैं?’
‘जानता हूँ बेटी! पर दाता हुकम ने फरमाया है कि मेरे जीवित रहते मीरा का विवाह नहीं होगा। बेटी बाप के घर में नहीं खटती बेटा! यदि तुम मान जाओ तो दाता हुकम को मनाना सरल होगा। बाद में ऐसा घर-वर शायद न मिले। मुझे भी तुमसे ऐसी बातें करना अच्छा नहीं लग रहा है, किन्तु कठिनाई ही ऐसी आ पड़ी है। तुम्हारी माताएँ कहती हैं कि हमसे ऐसी बात कहते नहीं बनती। पहले उसे योग-भक्ति सिखायी, अब विवाह के लिये पूछते फिरते हैं। इसी कारण स्वयं पूछ रहा हूँ बेटी!’
‘बावजी हुकम!’-रुंधे कंठ से मीरा केवल सम्बोधन ही कर पायी। ढलने को आतुर आँसुओं से भरी बड़ी-बड़ी आँखें उठाकर उसने अपने बड़े पिताकी ओर देखा। हृदय के आवेग को अदम्य पाकर वह एकदम से उठकर माता-पिता को प्रणाम किये बिना ही दौड़ती हुई कक्षसे बाहर निकल गयी।

वीरमदेवजी ने देखा-मीरा के रक्तविहीन मुख पर व्याघ्र के पंजे में फँसी गाय के समान भय, विवशता और निराशा के भाव और मरते पशु के आर्तनाद-सा विकल स्वर ‘बावजी हुकम’ कानों में पड़ा तो वे विचलित हो उठे। वे रण में प्रलयंकर बनकर शवों से धरती पाट सकते हैं; वे व्याघ्र, हाथी और भैंसे से, साँड़ से, निःशस्त्र केवल भुजबल से युद्ध करके उन्हें यमलोक पहुँचा सकते हैं; किन्तु… किन्तु…. किसी अवश-विवश प्राणी की ऐसी आँखें वे नहीं देख सकते, नहीं सह सकते…। उन्हें तो ज्ञात ही न हुआ कि मीरा ‘बावजी हुकम’ कहते ही दौड़ के कक्ष से बाहर कब चली गयी।
मीरा शीघ्रतापूर्वक सीढ़ियाँ उतरती चली गयी। वह नहीं चाहती थी कि कोई उसकी आँखों में आँसू देखे, अतः जितना शीघ्र हो सके, इस जगमगाते महल और चौक को वह पार कर जाना चाहती थी। जिसने भी उसे दौड़ते हुए देखा, चकित रह गया। किसी किसीने तो पुकारा भी—’क्या हुआ बाईसा! इतनी तेजीसे कहाँ पधार रही हैं?’

मीरा ने न पुकारनेवालों को उत्तर दिया और न उन चकित आँखों की ओर देखा। वह तो दौड़ती हुई अपने कक्ष में गयी और धम्म से पलंग पर औंधी गिर पड़ी। हृदय का बाँध तोड़कर रुदन उमड़ पड़ा—’यह क्या हो रहा है मेरे सर्वसमर्थ स्वामी! अपनी पत्नी को दूसरे के घर देने अथवा जाने की बात तो साधारण-से-साधारण, कायर-से-कायर राजपूत भी नहीं कर सकता। शायद तुमने मुझे स्वीकार ही नहीं किया, अन्यथा…तो….. । यदि तुम अल्पशक्ति होते तो मैं तुम्हें दोष नहीं देती। तब यही सच है कि तुमने स्वीकार ही नहीं किया… न किया हो, सर्वतन्त्र स्वतन्त्र हो तुम; किसी की मेख तो है नहीं तुम पर। पर मैंने तो स्वीकार कर लिया है तुम्हें; अपने पति के रूप में।
क्रमशः



‘Yes sir.’ The maid came and told that the bath material is presented.

‘Shall I go for a bath?’—he asked his two daughters. ‘Come.’- Saying both of them got down from the carousel. Meera towards Shyamkunj and Phoolan with her friends.

Meera was just getting up after putting Thakurji to bed at night when Girjaji’s maid Chandan came and said softly- ‘Bada Bavji Hukam Aapne Yaad Farmawe (The big bachelor is calling you)’.

‘Why? Now?’-he asked in astonishment.

Meera went with the maid and saw that the palace of the Chittori queen was bathed in light. Damanis are singing downstairs. The whole palace is burning with fragrance from bottom to top. Sacrifice and favors are coming from all the palaces, so the servants and maids are running from here to there. The younger brothers themselves had come to sacrifice. Her older mother also looked so beautiful in that expensive dress! She was sitting on a high throne near Veeramdevji wearing a veil. Looking at both of them, it seemed that they had just returned from marriage and were sitting with peacock bracelets open. Seeing her coming, Veeramdev ji called out- ‘Meera! Come here to me daughter!’

After saluting both of them, she sat down near Veeramdevji. ‘How do you like this mother of yours?’- he asked with a smile. ‘A mother is a mother. Mother is never bad.’-Mira said laughing. ‘How is his paternal lineage?’ ‘You must know more about this than I do. If you want to hear from me, Hindus are the descendants of Surya, the most important in the world.’ ‘Is there more daughter than us?’- Today Veeramdevji seemed happy.

Even then, at least the children could not muster the courage to talk to him. Meera was the only one who neither embarrassed anyone unnecessarily, nor did she feel afraid.

‘In my understanding, it is bad order! In the beginning all clans are best. Due to the misdeeds of any of his descendants, or in a minor place, the shortness comes from the marriage relationship itself. Even in the Sisodia dynasty, there have been those who try to kill their brothers, such as the murderers like Pitrihanta and Prithviraj-Jagmal, but those minor defects get buried in front of the virtues and dignity of the lovers of traditional monogamy.’

He smiled and looked at the elder mother – ‘Bhabha Hukam! Now there are only sisters-in-law here, please lift the veil. Looks like Bavji Hukam has just picked you up from the wedding hall and brought you here. If someone comes, the sister-in-law standing on guard will come and tell.’

When Veeramdevji also supported Meera’s talk, Girjaji put a veil on her head. Meera looked at his face and said – ‘How beautiful you are looking?’ ‘Not like you! You are Roopki Khan, my dear son!’-He said lovingly while filling Meera’s face with Anjali’s.

Meera’s heart fluttered as soon as she heard the words ‘Roopki Khan’. Moans kept coming out of her mouth. Seeing the discolouration on the face, Veeramdevji asked – ‘Is your health fine, isn’t it?’ ‘Hukam.’- Meera nodded. ‘Bhojraj is your mother’s nephew. Mine of form and qualities…. ‘I have heard.’- said Meera in between. There is no shortage in lineage and character. Ranaut ji wants to make you the daughter-in-law of his nephew. ‘Bavji Hukam!’-Meera bowed her head-‘These things are not to be said to children, are they?’ I know daughter! But Data Hukam has said that Meera will not get married while I am alive. Daughter does not sit in father’s house, son! If you agree then it will be easy to follow the order of the bestower. Later, such a husband and wife may not be found. I too do not like talking to you like this, but the difficulty has come like this. Your mothers say that it is not possible to say such things to us. First taught her Yoga-Bhakti, now keeps asking for marriage. That’s why I am asking myself daughter!’ ‘Bavji Hukam!’- Meera could only address with a hoarse voice. He looked at his elder father with wide eyes full of tears eager to fall asleep. Finding the impulse of the heart uncontrollable, she immediately got up and ran out of the room without saluting her parents.

Veeramdevji saw- the expression of fear, helplessness and despair on Meera’s bloodless face like that of a cow trapped in the claws of a tiger and when ‘Bavji Hukam’, like the cry of a dying animal, sounded in his ears, he was distraught. They can bridge the earth with dead bodies by becoming a destroyer in the battle; They can take them to Yamaloka by fighting with tiger, elephant and buffalo, bull, unarmed only with Bhujbal; But… but…. They cannot see such eyes of a helpless creature, cannot tolerate…. They didn’t even know when Meera went out of the race room as soon as she said ‘Bavji Hukam’. Meera hurriedly went down the stairs. She didn’t want anyone to see the tears in her eyes, so she wanted to cross the shining palace and the square as soon as possible. Whoever saw him running was amazed. Some even called out – ‘What happened Baisa! Where are you coming so fast?’

Meera neither answered the callers nor looked at those astonished eyes. She ran to her room and fell down on the bed with Dhamma. Breaking the dam of the heart, crying erupted – ‘ What is happening my all-powerful lord! Even the most ordinary, the most cowardly Rajput cannot talk about giving his wife or going to someone else’s house. Perhaps you have not accepted me at all, otherwise… then…. I wouldn’t blame you if you were underpowered. Then this is the truth that you have not accepted… you have not accepted, you are independent; No one is in love with you. But I have accepted you; as your husband. respectively

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